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    Bareilly: 80 की उम्र में भी नहीं टूटा हौंसला, 38 साल से लड़ रही इंसाफ की लड़ाई; कानूनी मामला बताकर टालमटोल कर रहा बैंक

    By Rajnesh SaxenaEdited By: riya.pandey
    Updated: Sun, 10 Dec 2023 01:52 PM (IST)

    कुसुमलता तोमर फरीदपुर कस्बा के बक्सरिया मुहल्ले की रहने वाली हैं। उनकी पति की मृत्यु के बाद जो रकम मिली उसमें से कुसुमलता ने 25 हजार रुपये की एफडी वर्ष 1978 में सात साल के लिए इलाहाबाद बैंक की कुतुबखाना शाखा कर दी। उन्हें एफडी को इस उम्मीद से किया था ताकि बुढ़ापा अच्छा कट जाए लेकिन ऐसा ना हो सका। सात साल बाद जब कुसुमलता बैंक पहुंचीं तो

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    कानूनी दांव पेंच का हवाला देकर पैसे देने से इनकार कर रहा बैंक

    जागरण संवाददाता, बरेली। 80 साल की कुसुमलता की कहानी हर किसी को झकझोर देने वाली है। अपने पति की खून पसीने की रकम पाने के लिए वह पिछले 38 वर्षों से लड़ाई लड़ रही है। मगर बैंक उन्हें वह रुपये देने के लिए तैयार नहीं हैं जबकि कोर्ट ने हर बार उन्हीं के पक्ष में फैसला सुनाया। इसके बाद भी कानूनी दांव पेच बताकर बैंक हर बार रुपये देने से मना कर देती है।

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    कुसुमलता तोमर फरीदपुर कस्बा के बक्सरिया मुहल्ले की रहने वाली हैं। उनके पति जगवीर पाल तोमर गन्ना विभाग में कर्मचारी थे। उनकी मृत्यु के बाद जो रकम मिली उसमें से कुसुमलता ने 25 हजार रुपये की एफडी वर्ष 1978 में सात साल के लिए इलाहाबाद बैंक की कुतुबखाना शाखा कर दी। उन्हें एफडी को इस उम्मीद से किया था ताकि, बुढ़ापा अच्छा कट जाए, लेकिन ऐसा ना हो सका।

    सात साल बाद जब कुसुमलता बैंक पहुंचीं तो उन्हें बताया गया कि उनकी एफडी बैंक के अभिलेखों में दर्ज ही नहीं है। यहीं से कुसुमलता के ऊपर परेशानियों का पहाड़ टूट पड़ा। चार साल बैंक के चक्कर लगाने में गुजर गए, मगर कोई नतीजा नहीं निकला। जब हर तरफ से कुसुमलता को निराशा हाथ लगी तो उन्होंने कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।

    वर्ष 1989 से अब तक कुसुमलता अदालत के चक्कर काट रही हैं। उन्हें अभी भी आस है कि इंसाफ मिलेगा। मगर हर बार उन्हें सिर्फ निराशा ही हाथ लगती है।

    आंखों ने भी दे दिया जबाव

    कुसुमलता की उम्र के साथ उनकी आंखों ने भी जवाब दे दिया है। हाथ पैर भी साथ नहीं दे रहे। बैंक के कानूनी दांव पेच के बाद बैंक ने अदालत में भी जाना बंद कर दिया। तब अदालत को इकतरफा फैसला सुनाना पड़ा। वर्ष 1992 में सिविल कोर्ट ने बैंक को 10 प्रतिशत चक्रवृद्धि ब्याज सहित 51 हजार रुपये अदा करने का आदेश दिया।

    बैंक ने मुकदमा रिस्टोर करने की अर्जी दी। जिसे कोर्ट ने खारिज कर दिया। तब बैंक ने आदेश के विरुद्ध जिला जज की कोर्ट में अपील दायर की। बैंक अपील भी हार गया। वर्ष 2013 में कोर्ट ने 9.77 लाख रुपये वसूली का परवाना बैंक भेजा।

    बैंक अधिकारियों ने परवाना रिसीव करके कहा कि इतनी बड़ी रकम अदा करना उनके अधिकार क्षेत्र में नहीं है। हालात यह है कि वर्तमान में भी मामला कोर्ट में विचाराधीन है। इलाहाबाद बैंक का नाम अब इंडियन बैंक हो गया है।

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