Allahabad High Court: मुआवजे के मुद्दों के निर्धारण में जिला न्यायाधीश प्राधिकारी, ना कि डीएम- हाई कोर्ट
हाई कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में कहा है कि टेलीग्राफ अधिनियम 1885 की धारा 16(3) के तहत मुआवजे की पर्याप्तता से संबंधित मुद्दों को निर्धारित करने के लिए जिला न्यायाधीश उपयुक्त प्राधिकारी हैं ना कि जिलाधिकारी। इस फैसले का संबंध बरेली जिले के कुछ किसानों की याचिका से है जिन्होंने 400 केवी बरेली-काशीपुर-रुड़की-सहारनपुर ट्रांसमिशन लाइन बिछाने के लिए अपनी भूमि अधिग्रहण के मुआवजे को लेकर याचिका दायर की थी।
विधि संवाददाता, प्रयागराज। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने एक निर्णय में कहा है कि टेलीग्राफ अधिनियम 1885 की धारा 16(3) के तहत मुआवजे की पर्याप्तता से संबंधित मुद्दों को निर्धारित करने के लिए जिला न्यायाधीश उपयुक्त प्राधिकारी हैं, ना कि जिलाधिकारी।
बरेली जिले के कतिपय किसानों की याचिका निस्तारित करते हुए न्यायमूर्ति शेखर बी सराफ तथा न्यायमूर्ति विपिन चंद्र दीक्षित की खंडपीठ ने याचीगण को जिला न्यायाधीश के पास जाने का निर्देश दिया है।
यह प्रकरण उत्तरी क्षेत्र प्रणाली सुदृढ़ीकरण योजना के तहत 400 केवी बरेली-काशीपुर-रुड़की-सहारनपुर ट्रांसमिशन लाइन बिछाने से संबंधित है। पावर ग्रिड कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (पीजीसीआइएल) ने ट्रांसमिशन लाइन बिछाने के लिए अन्य लोगों के साथ याचीगण राजेंद्र प्रसाद व अन्य की भूमि को भी चुना।
परियोजना को 2019 में पूरी होनी थी
परियोजना 2011 में शुरू हुई जो 2019 में पूरी होनी थी। ट्रांसमिशन लाइन बिछाने के लिए पेड़ों को कटाई की जानी थी, इसलिए पीजीसीआइएल ने 2014 में याचीगण को नोटिस भेजा। साथ ही तहसीलदार से अनुरोध किया कि वह देय मुआवजे का निर्धारण करें। वर्ष 2015 में पीजीसीआईएल ने देय मुआवजे के बदले कुछ किसानों को चेक जारी किए।
असंतुष्ट किसानों ने हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया और दावा किया कि उन्हें अन्य की तुलना में कम मुआवजा मिला है। हाई कोर्ट ने बरेली के जिलाधिकारी से संपर्क का निर्देश दिया। मुआवजा भुगतान में असमानता देख जिलाधिकारी ने पीजीसीआइएल को बरेली और रामपुर के किसानों को एक समान मुआवजा देने का आदेश दिया।
पीजीसीआइएल ने आदेश को चुनौती दी
पीजीसीआइएल ने इस आदेश को याचिका दायर कर चुनौती दी। इसे इस आधार पर खारिज कर दिया गया कि जिलाधिकारी ने इसी हाई कोर्ट के निर्देशों के अनुरूप प्रशासनिक आदेश पारित किया है। इसके बाद विभिन्न किसानों ने ट्रांसमिशन लाइन बिछाने के लिए काटे गए पेड़ों के मुआवजे के संबंध में निर्णय के लिए हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।
इसी दौरान केंद्र सरकार ने 2015 में खंभों/टावरों के निर्माण के कारण भूमि को हुए नुकसान के लिए मुआवजा देने की नीति बनाई। इसके तहत मुआवजा जिला मजिस्ट्रेट को तय करना था। यह नीति 2019 में उत्तर प्रदेश में लागू की गई, तब याचीगण ने नई नीति के अनुसार क्षतिपूर्ति का दावा जिलाधिकारी के पास किया। अभ्यावेदन पर निर्णय नहीं लिया गया तो हाई कोर्ट की शरण ली।
खंडपीठ ने अपने आदेश में कहा है कि टेलीग्राफ अधिनियम की धारा 16(3) के खंड (घ) में प्रावधान है कि यदि टेलीग्राफ अधिनियम की धारा 10 (घ) के अंतर्गत मुआवजे की पर्याप्तता के संबंध में कोई विवाद उत्पन्न होता है, तो पीड़ित पक्ष उक्त क्षेत्राधिकार के जिला न्यायाधीश से संपर्क कर सकते हैं, जहां प्रभावित संपत्ति है। कोर्ट ने पावर ग्रिड कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (पीजीसीआइएल) बनाम सेंचुरी टेक्सटाइल्स एंड इंडस्ट्रीज लिमिटेड मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का भी उल्लेख किया है।
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