Urs E Razvi: गणित-विज्ञान समेत 55 विषयों में माहिर थे आला हजरत, विश्व की 100 यूनिवर्सिटी में उनके जीवन पर हो रहे शोध
Knowledge of Imam Ala Hazrat मरकजी दारूल इफ्ता के वरिष्ठ मुफ्ती मुहम्मद अब्दुर्रहीम नश्तर फारुकी ने कहा कि दुनिया की तकरीबन सौ यूनिवर्सिटी में आला हजरत की जिंदगी और खिदमात (कारनामों) पर तहकीक (शोध) हो रही है। जैसे-जैसे तहकीक आगे बढ़ रही है
बरेली, (पीयूष दुबे)। Dargah Ala Hazrat News: आला हजरत इमाम अहमद रजा खां फाजिले बरेलवी ऐसी शख्शियत थे, जिन्होंने देश दुनिया की तमाम समस्याओं को हल कर दिया था। वह समसायिक विषयों पर काफी प्रखर होकर तर्कों के साथ विचार व्यक्त करते, जिसका अनुसरण अब तक लोग कर रहे हैं। आज से आला हजरत का 104वां उर्स-ए-रजवी दरगाह और मदरसा जामियातुर रजा में शुरू हो रहा है। वह गणित और विज्ञान समेत 55 विषयों में माहिर थे।
मरकजी दारूल इफ्ता के वरिष्ठ मुफ्ती मुहम्मद अब्दुर्रहीम नश्तर फारुकी ने कहा कि दुनिया की तकरीबन सौ यूनिवर्सिटी में आला हजरत की जिंदगी और खिदमात (कारनामों) पर तहकीक (शोध) हो रही है। जैसे-जैसे तहकीक आगे बढ़ रही है, आपकी जिंदगी और इल्मी कारनामों के नई-नई बातें सामने आ रही हैं। दुनिया के बड़े-बड़े दानिशवर (बुद्धिजीवी) ये देख कर हैरान हैं कि इमाम अहमद रजा की जाते गिरामी इतने विषयों में कैसे माहिर थे। ऐसी शख्सियत सैकड़ों साल बाद कोई एक पैदा होती है। उन्होंने बड़े से बड़े विज्ञानियों के नजरियात (विचारों) को बदल दिया, मगर अब तक किसी भी विज्ञानी ने उनके दलाइल (दलीलों) को चैलेंज नहीं दिया है।
आला हजरत के ज्ञान को इस बात से भी आंक सकते हैं कि सिर्फ साढ़े सात घंटे में कुराने करीम के 30 पारे याद कर लिए थे, उनका फरमाना था कि कोई भी शख्स कोई भी किताब एक बार मुझ को पढ़ कर सुना दे और दोबारा पूरी किताब मुझ से हूबहू सुन ले। आला हजरत ने दुनिया की कई बड़ी समस्याओं पर पर अपने विचार व्यक्त किये और उनको हल करते हुए दुनिया के सामने पेश किया।
करंसी के प्रयोग को बताया था जायज
दुनिया में एक वक्त ऐसा आया कि सिक्के कम होने लगे और करंसी नोटों को बढ़ावा मिलने लगा। उस समय कई बड़े आलिमों ने करंसी के नोटों का प्रयोग करना हराम बता दिया था। इसके बाद आला हजरत ने शरीयत की रोशनी में एक किताब लिखकर करंसी नोटों के प्रयोग को जायज बताया था।
मनी आर्डर के बदले दी जाने वाली रकम बताई थी जायज
एक समय पर बड़े बड़े मुफ्तियों ने मनी आर्डर को हराम बताया था, क्योंकि एक स्थान पर जो रुपये दिये जाते थे तो वहां से दूसरे रुपये मिलते थे। मनी आर्डर पर लगने वाले चार्ज को अन्य आलिमों ने सूद बताया था। इसके बाद आला हजरत ने मनी आर्डर को जायज बताने के साथ ही कहा था कि इस पर लगने वाला चार्ज भी मजदूरी की श्रेणी में आता है और मजदूरी के बदले दी जाने वाली रकम जायज होती है। आला हजरत ने इसका ऐसा फैसला किया कि पूरी दुनिया ने इसे तस्लीम (स्वीकार) किया। इस सिलसिले में उनकी तहकीकात और किताबें देखी जा सकती हैं।