Crime Flashback: 29 लोगों की सामूहिक हत्या से सिहर उठा था प्रदेश, पढ़िए पीलीभीत के जंगल की खौफनाक दास्तां
Pilibhit massacre बात तीस साल पुरानी है। उस समय तराई में आतंकवाद जोरों पर था। 31 जुलाई 1992 को गांव घुंघचाई व शिवनगर के 29 ग्रामीण माला रेंज के सिघाई ...और पढ़ें

पीलीभीत, जागरण संवाददाता। 30 साल पहले पीलीभीत के जंगल में हुए 29 लोगों के सामूहिक हत्याकांड का मंजर याद कर आज भी ग्रामीण सिहर उठते हैं। जंगली सब्जी कटरूआ बीनने गए 29 ग्रामीणों की आतंकियों ने बर्बरता पूर्वक गोली मारकर हत्या कर दी थी। आज भी कटरूआ का नाम सुनते ही लोगों को वह मंजर याद आ जाता है। इस हत्याकांड के बाद तत्कालीन मुख्यमंत्री कल्याण सिंह खुद पीलीभीत पहुंचे थे।
बात तीस साल पुरानी है। उस समय तराई में आतंकवाद जोरों पर था। 31 जुलाई 1992 को गांव घुंघचाई निवासी ग्रामीण बांकेलाल, छोटेलाल, रघुवीर, बाबू, छबीले, भूरे वर्मा, पूत्तुलाल, रामश्री, सुशीला देवी, बाबूराम, रामस्वरूप, गंगाराम, छोटेलाल पासवान, भूटानी, बुद्धसेन, प्रकाश, बहादुर, जशोदा देवी, भूरे पासवान और गजरौला थाना क्षेत्र के गांव शिवनगर निवासी दस महिला-पुरूष सहित कुल 29 ग्रामीण माला रेंज के सिघाई घाट के जंगल जो अब पीलीभीत टाइगर रिजर्व में पड़ता है, में कटरूआ बीनने गए थे। वहां मौजूद आतंकियों ने सभी ग्रामीणों के हाथ-पैर बांधकर सिर में लकड़ी फंसाने के बाद सभी की गोली मारकर हत्या कर दी थी। चार दिन बाद तीन जुलाई को जंगल से सभी के शव बरामद हुए थे। इस सामूहिक नरसंहार से पूरा प्रदेश दहल उठा था।
शवों के लग गए थे ढेर
हत्या के बाद आतंकियों ने 22 लोगों के शव पानी में डाल दिए थे जबकि सात लोगों के शव जमीन पर पड़े थे। जब सभी शव एकत्र किए गए तो ढेर लग गया, जिसने में भी उस मंजर को देखा आज भी नहीं भूल पाया है। जहां ग्रामीणों की हत्या की गई थी, उससे कुछ दूरी पर ही आतंकियों के खाना बनाने के लिए ईंटों के बनाए गए चूल्हे भी रखे हुए थे। लोग आज भी उस जगह जाने से खौफ खाते हैं।
सभी आरोपितों को मिली क्लीनचिट
29 लोगों की हत्या में आतंकियों से मिले होने के शक में सात लोगों के विरूद्ध कार्रवाई की गई थी। यह मामला न्यायालय में कई सालों तक विचाराधीन रहा। पुलिस की विवेचना में लापरवाही रही। साक्ष्यों के अभाव में हत्याकांड में नामजद सभी आरोपितों को न्यायालय की तरफ से बरी कर दिया गया। आखिरी इस नरसंहार को अंजाम देने वाले कौन लोग थे, यह आज भी सवाल है।
बदहाली की जिंदगी जी रहे स्वजन
सामूहिक नरसंहार का शिकार हुए ग्रामीणों के स्वजन को कई तरह की सुविधाएं देने का आश्वासन दिया गया लेकिन, उनमें से कई बेसहारों को कोई सुविधा नहीं मिल सकी। आज भी उनके स्वजन बदहाली और तंगहाली से मेहनत मजदूरी कर जीवन यापन कर रहे हैं। इस नरसंहार में किसी ने अपना बेटा खोया था तो किसी ने पिता और पति। घुंघचाई निवासी तीन सगे भाई बांकेलाल, छोटेलाल और रघुवीर की हत्या होने से आज भी उनकी पत्नियां बदहाली की जिंदगी जी रही हैं।
कई साल तक तैनात रही सेना
इस हत्याकांड की यूपी ही नहीं पूरे देश में गूंज सुनाई दी थी। तराई में आतंकवाद को देखते हुए घुंघचाई में सेना की तैनाती की गई थी। सेना ने यहां के जंगलों से आतंकवाद को मिटाने का काम शुरू किया था। आखिरी जब तराई से आतंकवाद को पूरी तरह खत्म करके ही सेना यहां से लौटी थी।
चौकी को मिला रिपोर्टिंग का दर्जा
सामूहिक हत्याकांड के शिकार ग्रामीणों के शव घुंघचाई चौकी पर लाए गए थे। शवों को देखने के लिए बड़ी संख्या में क्षेत्र की जनता पहुंच गई। उस समय चौकी पर गश्त के लिए पुलिस कर्मियों की तैनाती थी। हत्याकांड के बाद चौकी को रिपोर्टिंग चौकी का दर्जा दिया गया। अब चौकी को परिवर्तित कर माडल थाना बनाया जा रहा है।
हत्याकांड में अपनों को खोने वालों का दर्द
नरसंहार में जान गंवाने वाले बाबूराम की पत्नी रामवती ने कहा कि पति की जंगल में हत्या के बाद कोई भी सरकारी सुविधा नहीं मिली। जंगल से लकड़ी लाकर गुजर बसर होती रही। अब मजदूरी कर जीवन यापन कर रहे हैं। शंकुतला देवी पत्नी बांकेलाल ने कहा कि आतंकवादियों ने पति के साथ ही दोनों देवरों की हत्या कर दी थी। घरों में छोटे बच्चों को पालना मुश्किल हो गया। वादे किए गए लेकिन वह कोरे साबित हुए।
सुरजा देवी ने कहा कि पति की मौत के बाद विधवा पेंशन शुरू की गई लेकिन अन्य कोई योजना का लाभ नहीं मिला। वह दिन मरते दम तक जेहन में रहेगा। मेहनत मजदूरी कर परिवार चल रहा है। पार्वती पत्नी छोटेलाल ने बताया कि लाशों के ढेर से पति के शव को निकाला गया था। कई अधिकारी और जनप्रतिनिधि आए। सुविधाओं को देने का वायदा कर गए लेकिन कोई सुविधा नहीं मिली।

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