कटरूआ... एक स्वादिष्ट जंगली सब्जी, जिसके लिए चली गई थी 29 लोगों की जान, कीमत जानकर उड़ जाएंगे होश
Wild Vegetable katrua कटरूआ सूखे स्थान पर निकलता है। गीली और दलदली जगह पर यह नहीं पाया जाता। बरसात के बाद हल्की धूप निकलने पर जमीन की ऊपरी परत नरम होत ...और पढ़ें

पीलीभीत, (उमेश शर्मा)। Wild Vegetable katrua: जीएसटी लगने के बाद खाने-पीने की कुछ चीजों पर महंगाई का मुद्दा गर्म है। वैसे, रसोई में यह सामान किराने की दुकान से आता है लेकिन पिछले दिनों नींबू पर छाई महंगाई ने भी जब दांत खट्टे किए, तब भी जमकर हंगामा बरपा था। खैर, आम जनता की ढीली होती जेब के बीच हम आपको उत्तर प्रदेश के पीलीभीत और लखीमपुर खीरी जिलों के जंगल में मिलने वाली खास सब्जी के बारे में बताते हैं, जिसका जिक्र आते ही 29 लोगों की सामूहिक हत्या का मंजर ताजा हो जाता है। नाम है-कटरूआ (katrua)।
30 साल पहले पीलीभीत में हुए नरसंहार (massacre) की वजह से यह सब्जी चर्चा में आ गई थी। खाने में इसका स्वाद मशरूम की तरह होता है। प्रोटीन की प्रचुरता और पौष्टिकता भी भरपूर है लेकिन, इसके भाव आपके पसीने छुड़ा देंगे। सीजन और जंगल की बहुलता वाले जिलों में ही यह 800 रुपये प्रति किलो बिक रहा है। दिल्ली, मुंबई समेत देश की अन्य मंडियों में तो इसके दाम हजार रुपये प्रति किलो से ऊपर रहते हैं।
जानें क्या है कटरूआ, कहां मिलता
पीलीभीत टाइगर रिजर्व (Pilibhit Tiger Reserve) की महोफ रेंज जंगल में कटरूआ सबसे ज्यादा मिलता है। यह जंगल पूरी तरह साल का है। एक्सपर्ट बताते हैं कि जून और जुलाई में जब बरसात होती है तो साल के पत्तों का पानी उसकी जड़ों सहित आस पास गिरता है। कटरूआ (सब्जी) की जड़ जमीन में दबी रहती हैं। पानी गिरते ही वह दो से तीन दिन में कटरूआ तैयार हो जाता है। बरसात के बाद धूप निकलने पर यह तेजी के साथ जमीन के ऊपर आ जाता है।
कटरूआ सूखे स्थान पर निकलता है। गीली और दलदली जगह पर यह नहीं पाया जाता। बरसात के बाद हल्की धूप निकलने पर जमीन की ऊपरी परत नरम होते ही यह दिखने लगता है। कटरूआ को जानने वाले घने जंगल में जाकर उसकी पहचान कर जमीन से खोद लेते हैं। इसके अलावा लखीमपुर खीरी के जंगल में भी यह पनपता है।
इन जानवरों का सबसे पसंदीदा भोजन
इंसानों की स्वादिष्ट सब्जी के रूप में मशहूर हो चुका कटरूआ वास्तव में कुछ शाकाहारी वन्यजीवों के लिए पसंदीदा भोजन है। कटरूआ को सेही और भालू बड़े ही चाव से खाते हैं। सुअर भी इसको खा लेता है लेकिन सेही के लिए यह बेहद अच्छा भोजन है। कटरूआ के साथ ही जंगल में बने छोटे छोटे मिट्टी के टीले (बांवी) के पास धरती फूल भी मिलता है, जिसे बड़े चाव से शाकाहारी वन्यजीव खाते हैं।
आठ सौ रुपये तक कीमत
जंगली सब्जी कटरूआ मानसून की शुरुआत के साथ ही जून में आना शुरू हो जाता है। अगर अच्छी बरसात होती है तो यह बड़ी मात्रा में जंगल में पैदा होता है। शुरुआत में इसकी कीमत आठ सौ रुपये प्रति किलो रहती है। अब बरसात हो हो रही है तो दाम कुछ घट गए हैं।
अवैध तरीके से होती है निकासी
कटरूआ की जंगल से निकासी प्रतिबंधित है। फिर भी यह अवैध तरीके से निकाला जाता है। तड़के ही लोग जान जोखिम में डालकर जंगल में घुस जाते हैं। इससे जहां शाकाहारी वन्यजीवों की खाद्य श्रंखला की चेन टूट रही है वहीं हिंसक पशुओं के हमले की घटना की आशंका रहती है। जंगल में प्रवेश पर प्रतिबंध के बाद भी कटरूआ निकल रहा है। अब तो बाकायदा इसका व्यापार होने लगा है चोरी-छिपे। व्यापारी 100 से 150 रुपये प्रति किलो खरीदते हैं। एक व्यक्ति पूरे दिन में 1500 रुपये तक का कटरूआ जंगल में बीन लाता है।
कटरूआ हासिल करना खतरनाक
यह प्रोटीन से भरपूर एक तरह का मशरूम होता है। इसे खाने के शौकीन सालभर बारिश का इंतजार करते हैं। जानकार बताते हैं कि कटरूआ का स्वाद ही इसे महंगी सब्जी बनाता है। इसे हासिल करना भी कम खतरनाक नहीं है। यह घने जंगल में उन स्थानों पर मिलता है, जहां अक्सर बाघ डेरा डाले रहते हैं। यूं तो जंगल में कटरुआ बीनने पर रोक है, लेकिन वन विभाग की साठगांठ से यह धंधा खूब चल रहा है।
ऐसे बनती सब्जी
शाकाहारियों के नानवेज के नाम से मशहूर कटरूआ को बाजार से घर लाकर साफ करने में चिकन की तरह घंटाभर लगता है। इसकी सफाई चिकन की सफाई से ज्यादा समय ले लेती है। फिर इसके टुकड़े किये जाते हैं। चाहें तो कटरूआ समूचे भी बना सकते हैं। धोने के बाद इसे बनाने में आपको ढेर सारा मसाला चाहिए। इसमें हल्दी, नमक, चिकन मसाला, प्याज का पेस्ट, तीखा मसाला भूना जाता है। फिर उसमें इसे डालकर उबाला जाता है। पीलीभीत के अलावा आसपास के जिलों के व्यापारी जंगली सब्जी खरीदकर चोरी-छिपे बिक्री करते हैं। पीलीभीत जिले के महोफ के जंगल में कटरूआ सबसे अधिक मिलता है। शाहजहांपुर, मैलानी और लखीमपुर के व्यापारी इसे ग्रामीणों से खरीदते हैं।
इस तरह से चर्चा में आया था कटरूआ
बात करीब 30 साल पुरानी है। उस समय तराई में उग्रवाद का जोर था। आतंकी लगातार घटनाओं को अंजाम दे रहे थे। 31 जुलाई 1992 को पूरनपुर तहसील क्षेत्र के गांव घुंघचाई और गजरौला थाना क्षेत्र के गांव शिवनगर निवासी 10 महिलाओं समेत 29 ग्रामीण माला रेंज के गढ़ा वीट के सिघई घाट के जंगल जो वर्तमान में पीलीभीत टाइगर रिजर्व है, में कटरूआ बीनने गए थे। तभी वहां छिपे आतंकवादियों ने सभी 29 ग्रामीणों को लाइन में खड़ा करके गोली मार दी थी। जंगल में सामूहिक हत्याकांड के बाद कटरूआ की सब्जी प्रदेश में काफी प्रचलित हुई थी।
एक्सपर्ट की राय
पूर्व वन अधिकारी राजाराम शर्मा ने बताया कि जंगल में मिलने वाला कटरूआ शाकाहारी वन्यजीवों का भोजन है। लोग अवैध तरीके से जंगलों में घुसकर इसको निकालकर ला रहे हैं। इससे शाकाहारी वन्यजीवों की खाद्य श्रंखला की चेन टूटेगी। स्थिति असामान्य होगी। इस पर रोक लगाई जानी चाहिए।
प्रभागीय वन अधिकारी पीटीआर नवीन खंडेलवाल ने कहा कि जंगल में हिंसक वन्य जीवों का वास है। बरसात के मौसम में लोग कटररूआ के लालच में जंगल में प्रवेश न करें। मानसून गश्त को और ज्यादा प्रभावी बनाया गया है। जंगल में अवैध रूप से घुसपैठ करने पर कड़ी कार्रवाई होगी।

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