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ढाई दशक से एक ही परिवार में रही प्रधानी, अब निकली हाथ से

बीएल साहू नरैनी (बांदा) आरक्षण ने बड़े-बड़ों के समीकरण बिगाड़ दिए हैं। गांव की सर

By JagranEdited By: Published: Thu, 04 Mar 2021 11:19 PM (IST)Updated: Thu, 04 Mar 2021 11:19 PM (IST)
ढाई दशक से एक ही परिवार में रही प्रधानी, अब निकली हाथ से

बीएल, साहू, नरैनी (बांदा)

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आरक्षण ने बड़े-बड़ों के समीकरण बिगाड़ दिए हैं। गांव की सरकार चलाने वाले ऐसे भी परिवार हैं, जिनके यहां आजादी के बाद से आज तक कमान रही। इनमें ही नरैनी विकास खंड के मूड़ी गांव का द्विवेदी परिवार है। दावा है कि जब हाथ उठाकर गांव के मुखिया चुने जाते थे, तब से आज तक प्रधानी उनके ही परिवार में रही। पच्चीस सालों का सिजरा इसका गवाह है। दादा, फिर उनके छोटे भाई और उसके बाद बेटे और बहू के हाथ ही गांव की सरकार रही। इस बार फिर दावा ठोंकते लेकिन आरक्षण ने निराश कर दिया। ऐसा नहीं कि जीत बिना काम के मिलती रही, बल्कि ग्रामीण भी परिवार के हाथ ही कमान सौंपते रहे।

मूड़ी गांव के द्विवेदी परिवार में बाबा दादा के जमाने से चली आ रही प्रधानी पर आरक्षण में पूर्ण विराम लगा दिया। पंचायती राज व्यवस्था लागू होने के बाद एक ही परिवार में लगातार प्रधानी चली आ रही है। लगातार सामान्य सीट रही। पंचायती राज व्यवस्था लागू के बाद इस बार प्रधान पद के चुनाव में पहली बार सीट आरक्षित हुई। पूर्व प्रधान सीताशरण द्विवेदी का कहना है कि विकास कार्यों को प्राथमिकता और समय-समय पर नुक्कड़ बैठक कर आमजन की समस्याओं को हल कराना ही जीत का राज रही।

एक सवाल के जवाब में कहते हैं कि पहले आरक्षण में बड़े गांव लिए जाते थे, जिसमें हमारा गांव बच जाता था। इस बार भी सामान्य सीट रहती तो खुद या महिला होने पर पत्नी की चुनाव लड़तीं। बताते हैं कि दादा (ताऊ) के पिताजी और उनके वृद्ध होने पर गांव वालों ने वह माला मेरे गले पहना दी। महिला सीट हुई तो पत्नी को लड़ाया और गांव वालों ने जिता दिया। बताते हैं कि दादा कलम दवात और पिताजी का चुनाव निशान घंटी और ट्रैक्टर रहा। अब बुजुर्ग नहीं बचे हैं, दादा बताते थे कि शुरू से ही गांव की कमान मेरे ही परिवार में रही।

सीताशरण के मुताबिक पंचायती राज एक्ट लागू होने के पहले चुनाव में दादा गिरजा शंकर द्विवेदी सन 1995 में सामान्य सीट में पहली बार चुने गए थे। सन 2000 के चुनाव में फिर विजयी हुए। उनकी लगातार जीत के बाद वह वृद्ध हुए तो सन 2005 में उनके छोटे भाई व मेरे पिता भूरेलाल द्विवेदी चुने गए। इसके बाद 2010 में वह खुद प्रधान हुए। महिला सीट होने पर सन 2015 में पत्नी मीरा देवी चुनी गईं। बताते हैं कि लगातार 25 वर्ष से प्रधानी उनके ही परिवार के कब्जे में रही।

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प्रधानी कार्यकाल

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दादा- गिरजा शंकर द्विवेदी 1995-2005- (दो बार जीते)

भूरेलाल द्विवेदी 2005-2010

भूरेलाल के पुत्र सीताशरण 2010-2015

सीताशरण की पत्नी मीरा देवी 2015-2020

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प्रतिक्रिया----

इस ग्राम सभा में काफी विकास कार्य कराए गए, जिनकी वजह से बार-बार यहां के वोटरों ने इन्हें मत देकर प्रधान बनाया।

कामता प्रसाद ग्राम सभा के मजरा अमल्लकपुर में नाली, खड़ंजा, दो कुओं की खोदाई जैसे कार्य कराकर गांव के लोगों को सुविधा मुहैया कराई गई। जिस कारण लोगों ने हर बार इन्हीं को चुना।

विजय उर्फ गुदवा इस परिवार द्वारा समय-समय पर बैठक कर लोगों की समस्या को सुना और दूर कराया। समस्या का समाधान करना इनकी पहली प्राथमिकता थी। जिस कारण परिवार की सौम्यता व कार्यशैली के कारण हर बार विजयी हुए।

छोटलाल


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