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    द्वापर युग से जल रही है अखंड ज्योति

    By JagranEdited By:
    Updated: Wed, 21 Mar 2018 10:08 PM (IST)

    बलरामपुर: देवीपाटन मंदिर के गर्भ गृह में द्वापर युग से जल रही अखंड ज्योति अछ्वुत, अलौकिक व अ

    द्वापर युग से जल रही है अखंड ज्योति

    बलरामपुर: देवीपाटन मंदिर के गर्भ गृह में द्वापर युग से जल रही अखंड ज्योति अछ्वुत, अलौकिक व अद्वितीय है। इस ज्योति का काजल पाने के लिए श्रद्धालुओं में होड़ सी रहती है। मान्यता है कि अखंड ज्योति से बना हुआ काजल आंखों के रोगों को ठीक कर देता है। मंदिर की ज्योति अखंड रहे, इसके लिए श्रद्धालु भारी मात्रा में घी का दान करते हैं। बदले में पुजारी से आंखों में लगाने के लिए काजल की मांग करते हैं। बताया जाता है कि महाभारत काल में राजा कर्ण ने मंदिर का जीर्णोद्धार कराकर अखंड ज्योति प्रज्ज्वलित की थी। गुरु गोरक्षनाथ का यह सिद्धासन था। उन्होंने भी इस अखंड ज्योति के साए में रहकर योग व तप किया। यह अखंड ज्योति देवी पाटन मंदिर के गर्भगृह पाताल चबूतरा के दक्षिण तरफ स्थापित है। इसमें घी और बाती मंदिर की पूजा करने के दौरान पुजारी एक हाथ से बदलता है। महंत मिथिलेश नाथ योगी का कहना है कि यह देवी मां की महिमा है कि अखंड ज्योति में घी कभी कम नहीं हुआ। आज भी मंदिर की ज्योति अखंड रूप से जल रही है।

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    श्रद्धालुओं की विशेष आस्था

    -मंदिर में सदियों से जल रही अखंड ज्योति श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र है। नौगढ़ से आए राम रतन कहते हैं कि वह प्रत्येक नवरात्र में अखंड ज्योति के लिए मंदिर पर घी चढ़ाते हैं। इसके लिए वह अपने परिवार की आंखों के लिए काजल लेकर जाते हैं। श्रद्धालुओं के मांग पर पुजारी अखंड ज्योति का काजल नि:शुल्क उपलब्ध कराते हैं। प्रतिदिन करीब डेढ़ से दो किलोग्राम घी अखंड ज्योति में डाली जाती है। साल में तकरीबन 200 किलोग्राम घी अखंड ज्योति में उपयोग की जाती है।