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    UP News: हर सवाल का जवाब हूं, मैं महाभारत का बरनावा हूं...यह है लाक्षागृह का 53 साल पुराना पूरा मामला

    Baghpat News In Hindi बरनावा गांव में सड़क किनारे ऊंचे टीले पर लाक्षागृह है। बरनावा गांव के रहने वाले मुकीम खां ने 31 मार्च 1970 में मेरठ की अदालत में वाद दायर कर इसे कब्रिस्तान और बदरुद्दीन की दरगाह बताते हुए दावा ठोक दिया कि यहां पर लाक्षागृह कभी था ही नहीं। अदालत में प्रतिवादी कृष्णदत्त जी महाराज ने प्राचीन टीले को लाक्षागृह होने का दावा करते हुए साक्ष्य दिए।

    By Jagran News Edited By: Abhishek Saxena Updated: Wed, 07 Feb 2024 07:59 AM (IST)
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    कौरवों ने पांडवों को जिंदा जलाने के लिए लाख का घर बनवाया था।

    राजीव पंडितl बड़ौत−बागपत। मैं महाभारत का बरनावा हूं। मुझे आज भी याद है जब कौरवों ने पांडवों को जिंदा जलाने के लिए लाख का घर बनवाया था।

    मैं यह दाग अपने ऊपर नहीं लेना चाहता था सत्य का साथ देना चाहता था मैं, तभी तो लाक्षामंडप यानी लाक्षागृह से मैंने पांडवों को गुफा के रास्ते सुरक्षित निकाल दिया था। उसके हजारों साल बाद सब कुछ ठीक ठाक तो चलता रहा, लेकिन 700 साल पहले कुछ लोग मेरे घर में घुस गए, जिसके बाद मैं विचलित हो गया। उनसे मैं मुक्त होना चाहता था।

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    मुझे मुक्त कराने के लिए 60 साल पहले श्रीकृष्णदत्त जी महाराज मेरे पास आ गए और उन्हीं के आर्शीवाद से आज मैं आजाद हो गया हूं क्योंकि मैं महाभारत का बरनावा हूं और लाक्षागृह भी मेरा ही है। अदालत ने जो फैसला सुनाया है उस पर किसी को भी सवाल नहीं उठाने चाहिए, लेकिन कुछ लोग हैं जो फिर विवाद खड़ा करना चाहते हैं, तभी तो आज जब मैं नींद से जागा तो मेरे गांव में अजीब सी हलचल हो रही थी।

    यह भी पढ़ेंः जहां महाभारत के पांडवों को जिंदा जलाने की हुई साजिश...जानिए बागपत के इस लाक्षागृह का केस; 53 बरस लगे धरोहर पाने में

    गांव की गलियों में जश्न का माहौल

    गांव की गलियों में जश्न का माहौल था। ऐसा लगा जैसे नया सवेरा हो, मेरे अपने सब कह रहे थे कि अदालत ने सही किया, लेकिन कुछ लोगों को दबी जुबान में यह भी कहते सुना कि नहीं, यह नहीं होना चाहिए था। इसी गहमागहमी के बीच हिंडन और कृष्णी नदी के संगम पर स्थित ऊंचे टीले लाक्षागृह पर मेरी नजर गई तो वहां पुलिस की छावनी बनी हुई थी। मैं संगीनों के साये में घिरा हुआ था। जो लोग हर रोज लाक्षागृह पर जाया करते थे उन्हें पुलिस चेकिंग के बाद ही लाक्षागृह पर जाने दे रही थी।

    अदालत का फैसला

    मैं समझ गया कि यह सब उन लोगों की वजह से हो रहा था जो मेरे पक्ष में 53 साल बाद आए अदालत के फैसले को चुनौती देने की बात कर रहे थे। मैं उन लोगों से अपील करता हूं कि मैं ही महाभारत का बरनावा हूं और लाक्षागृह भी मेरा ही एक अंग है जिसके पुरावशेष आज भी इसकी गवाही दे रहे हैं कि इसी टीले पर कौरवों ने पांडवों को जिंदा जलाने का षडयंत्र रचा था... 

    53 बरस का मामला...

    बरनावा गांव निवासी मुकीम खां ने 31 मार्च 1970 में मेरठ की अदालत में वाद दायर किया था, जिसमें उन्होंने ब्रह्मचारी कृष्णदत्त को प्रतिवादी बनाया था। मुकीम खां ने दावा किया था कि बरनावा में प्राचीन टीले पर शेख बदरुद्दीन की दरगाह और बड़ा कब्रिस्तान है, जो सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड यूपी में बतौर वक्फ दर्ज व रजिस्टर है। ब्रह्मचारी कृष्णदत्त कब्रिस्तान को खत्म कर इसको हिंदुओं का तीर्थ बनाना चाहते हैं।

    मेरठ के बाद यह वाद वर्ष 1997 में बागपत की अदालत में ट्रांसफर हो गया था। जबकि प्रतिवादी कृष्णदत्त की ओर से प्राचीन टीले पर शिव मंदिर और लाखामंडप होने का दावा करते हुए इसे महाभारत काल का लाक्षागृह बताया गया था। चार फरवरी को सिविल जज जूनियर डिवीजन प्रथम शिवम द्विवेदी ने प्राचीन टीले पर फैसला सुना दिया है, जिसमें प्राचीन टीले को महाभारात काल का लाक्षागृह ही माना है।