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    जहां महाभारत के पांडवों को जिंदा जलाने की हुई साजिश...जानिए बागपत के इस लाक्षागृह का केस; 53 बरस लगे धरोहर पाने में

    महाभारतकालीन लाक्षागृह और दरगाह के विवाद में अदालत ने फैसला हिंदू पक्ष में सुनाया है। अदालत ने प्राचीन टीले को लाक्षागृह (लाखामंडप) माना है। कोर्ट ने एएसआइ की रिपोट्र और राजस्व रिकार्ड में उल्लेखित शिवमंदिर व लाखामंडप के साक्ष्यों को फैसले का आधार मानते हुए प्राचीन टीले पर दरगाह और कब्रिस्तान के दावे को खारिज कर दिया। लाक्षागृह की सुरक्षा व्यवस्था बढ़ा दी गई।

    By Jagran News Edited By: Abhishek Saxena Updated: Tue, 06 Feb 2024 12:06 PM (IST)
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    Baghpat News in Hindi: बरनावा का प्राचीन टीला ही लाक्षागृह

    जागरण संवाददाता, राजीव पंडित, बड़ौत। अपनी ही प्राचीन धरोहर को पाने के लिए 53 साल आठ महीने 20 दिन का समय लग गया, तब जाकर सिद्ध हुआ कि यह महाभारतकाल का लाक्षागृह ही है। इतने लंबे समय में अदालत में लगभग 875 तारीखें लगीं, जिनमें वादी और पैरोकार तर्क-वितर्क में लगे रहे। इनमें से कई लोगों की मौत भी हो चुकी है।

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    यह भी इत्तेफाक ही है कि प्राचीन काल से जुड़े इस मामले में भी फैसला अयोध्या में श्रीराम की प्राण प्रतिष्ठा और वाराणसी में ज्ञानवापी परिसर में हिंदू पक्ष को पूजा का अधिकार मिलने के बाद बाद आया है।

    ऊंचे टीले पर लाक्षागृह

    बरनावा गांव में सड़क किनारे ऊंचे टीले पर लाक्षागृह है। बरनावा गांव के रहने वाले मुकीम खां ने 31 मार्च 1970 में मेरठ की अदालत में वाद दायर कर इसे कब्रिस्तान और बदरुद्दीन की दरगाह बताते हुए दावा ठोक दिया कि यहां पर लाक्षागृह कभी था ही नहीं। अदालत में प्रतिवादी कृष्णदत्त जी महाराज ने प्राचीन टीले को लाक्षागृह होने का दावा करते हुए साक्ष्य पेश किए।

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    वादी-प्रतिवादी अदालत में साक्ष्य समय-समय पर पेश कर इस लड़ाई को लड़ते रहे। वादी और प्रतिवादी की मौत होने के बाद केस की पैरवी दूसरे लोगों ने करनी शुरू कर दी। वर्ष 1997 में मेरठ को विभाजित कर बागपत को जनपद बनाया गया तो यह वाद बागपत की अदालत में ट्रांसफर हो गया। यानी दोनों ही जनपदों में वाद की सुनवाई लगभग 27-27 साल हुई।

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    31 मार्च 1970 में दर्ज इस वाद की सुनवाई पांच फरवरी 2024 को पूरी हुई। जानकारी लगी है कि दोनों जनपदों की अदालतों में इस दौरान 875 तारीखें लगाई गईं। इतिहास में झांकें तो यह केस मंगलवार के दिन दर्ज हुआ था जबकि इसका फैसला सोमवार के दिन आया है। प्रतिवादी पक्ष के पैरोकार विजयपाल बताते हैं कि चाहे कुछ भी हो, वह हर तारीख पर अदालत में पहुंचते थे।

    अदालत में प्रतिवादी पक्ष की ओर से दाखिल दस्तावेज 

    खसरे की नकल, जिल्द बंदोबस्त गैलन साहब, तहसीलदार और नायब तहसीलदार सरधना की रिपोर्ट, एसडीओ के फैसले की प्रति, विद्युत कनेक्शन, एएसआइ की सर्वे रिपोर्ट आदि के अलावा एएसआइ के ओपी कपूर, बरनावा के लेखपाल बलवीर सिंह के अलावा छिद्दा सिंह, लक्ष्मीचंद, जयवीर शास्त्री, राजपाल त्यागी, आदेश शर्मा, विजयपाल सिंह ने गवाही दी।

    तैनात रहा पुलिस बल 

    न्यायालय का फैसला आने के बाद बरनावा लाक्षागृह पर सुरक्षा की दृष्टि से सोमवार शाम पुलिस बल की तैनाती की गई।

    मनाई खुशी

    बरनावा लाक्षागृह स्थित श्री महानंद संस्कृत विद्यालय गुरुकुल के प्रधानाचार्य योगाचार्य अरविंद शास्त्री, आचार्य गुरुवचन शास्त्री, संजीव आर्य, जयकृष्ण आचार्य, विहिप प्रांत मार्गदर्शक मंडल सदस्य स्वामी प्रद्युमन महाराज, पप्पन राणा, सुनील पंवार आदि ने खुशियां मनाईं। कुमार, विजय कुमार भाईजी, देवेंद्र शास्त्री, शोदान शास्त्री, निमेष शर्मा, राहुल त्यागी आदि ने भी हर्ष व्यक्त किया।

    वादी-प्रतिवादी समेत नौ पैरोकारों की हो चुकी मौत

    वादी पक्ष के मुकीम खान, महजर अहमद खां की मौत हो चुकी है। खालिद खां जिंदा हैं। प्रतिवादी पक्ष के कृष्णदत्त जी महाराज, जयकिशन, जगमोहन, लहरी सिंह, कन्हैया, जयचंद, चरण सिंह की मौत हो चुकी है। राजपाल सिंह, राजेंद्र, ईश्वर सिंह, राजपाल त्यागी, निरंजन सिंह, चंद्रो, धनवंतरी, रज्जो आदि पैरोकार रहे हैं।