शव के सौदेबाज! बरेली के अस्पताल ने इकलौते बेटे की लाश को बनाया बंधक, पिता ने मांगी दर-दर भीख
बरेली के निजी अस्पताल की बेरहमी: 3 लाख के बिल के लिए बंधक बनाया इकलौते बेटे का शव, बेबस पिता ने झोली फैलाकर मांगी भीख। इलाज के लिए घर गिरवी रखने के बा ...और पढ़ें

प्रतीकात्मक चित्र
जागरण संवाददाता, बदायूं। डाक्टरों को भले ही भगवान का दूसरा रूप माना जाता है लेकिन अब वह चिकित्सा व्यवस्था नहीं रही। अब घायलों या मरीजों का उपचार करने से पहले लाखों रुपये पहले जमा करा लिए जाते हैं, जिन लोगों के पास रुपये नहीं होते वह सरकारी अस्पतालों में उपचार कराते हैं।
हजरतपुर इलाके एक परिवार ने अपने सदस्य की जान बचाने को सब कुछ किया और जब उसकी मृत्यु हो गई तो शव लेने के लिए लोगाें से भीख मांगी लेकिन रुपये पूरे न होने पर अस्पताल वालों ने उसका शव नहीं दिया। तब उसने पुलिस से शव दिलाने की गुहार लगाई। उसके बाद कहीं शव मिल सका और उन्होंने अंतिम संस्कार किया।
हजरतपुर थाना क्षेत्र के गांव नगरिया खनू निवासी 25 वर्षीय धर्मवीर पुत्र श्यामलाल वाल्मीकि करीब 20 दिन पहले मूसाझाग थाना क्षेत्र मे एक बरात में जाते समय हादसे में घायल हो गए थे। पहले उन्हें जिला अस्पताल भेजा गया था, यहां से मेडिकल कालेज रेफर कर दिया गया लेकिन यहां उपचार की इतनी अच्छी व्यवस्था नहीं थी और परिवार के पास भी कोई ज्यादा धनराशि नहीं थी।
धर्मवीर अपने माता-पिता का इकलौता बेटा था। वही घर में कमाने वाला था। इससे परिवार वाले भी उसे बचाना चाहते थे। उसे बरेली के एक निजी अस्पताल में भर्ती करा दिया गया था। उसका खर्चा भी ज्यादा था। इससे स्वजन ने डेढ़ लाख रुपये में अपना घर गिरवी रखा दिया था। उनके पास और जमीन नहीं थी।
मजदूरी करने वाला परिवार था। इससे अस्पताल का खर्चा वहन नहीं कर पाया। वहां अस्पताल में रुपये जमा कराने के चक्कर में तीन बार उपचार तक रोक दिया गया। इससे धर्मवीर के उपचार को बहुत बड़ा झटका लगा और 15 दिन बाद उसकी मृत्यु हो गई। अस्पताल वालों ने तीन लाख रुपया बकाया बताया था। इससे स्वजन को धर्मवीर का शव भी नहीं दिया।
उसके पिता श्यामलाल ने तमाम लोगों से भीख मांगी, तमाम लोगों से मदद मांगी लेकिन तीन लाख रुपये जमा करना उनके सामने टेड़ी खीर थी। काफी मिन्नतें करने के बाद भी अस्पताल वालों ने जब उसका शव नहीं दिया तो उन्होंने पुलिस से मदद की गुहार लगाई। तब कहीं धर्मवीर का शव दिलाया गया। इसको लेकर परिवार काफी टूट गया है। अब उनके पास न तो दौलत है, न घर है और न ही धर्मवीर है।
धर्मवीर बच जाता तो कर लेता मजदूरी
धर्मवीर के तीन छोटे-छोटे बच्चे हैं। उसकी पत्नी आरती है। उनका पालन पोषण करना बूढ़े श्यामलाल के वश में नहीं है। हालांकि उन्होंने इसके बावजूद धर्मवीर को बचाने का काफी प्रयास किया। उन्होंने सोचा था कि अगर बेटा बच गया तो वह अपने परिवार पालन-पोषण कर लेगा। वह किसी तरह मजदूरी करके लोगों का कर्ज भी चुका देगा लेकिन परिवार के सामने और ज्यादा मुसीबत खड़ी हो गई है।
जिले में ट्रामा सेंटर होता तो बच सकती थी धर्मवीर की जान
जिले में काफी लंबे समय से ट्रामा सेंटर की मांग होती आ रही है। सरकार लगातार ट्रामा सेंटर बनाने को कह रही है लेकिन अभी तक जिले में ट्रामा सेंटर नहीं बनाया गया है। अगर यहां ट्रामा सेंटर होता तो उसे बरेली रेफर करने की जरूरत नहीं पड़ती और उसकी जान भी बच सकती थी।

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