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    शहर सीट : दद्दा के आने से बिगड़े समीकरण

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    Updated: Wed, 18 Jan 2012 09:36 PM (IST)

    कमलेश शर्मा, बदायूं : शहर सीट पर पूर्व मंत्री भूपेंद्र सिंह दद्दा के मैदान में उतर जाने से समीकरण एक बार फिर बदले हुए दिखाई दे रहे हैं। सपा से टिकट न मिलने के बाद यह बसपा से टिकट की जुगत में थे लेकिन अब महान दल के टिकट पर मैदान में उतरे हैं। इनके महान दल से चुनाव मिलने की संभावना जागरण ने सप्ताह भर पहले ही जता दी थी जो सही साबित हुई।

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    दद्दा अबतक बिनावर विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ते आ रहे थे। नये परिसीमन में बिनावर सीट खत्म हो जाने के बाद इनकी राजनीतिक जमीन भी खिसक गयी है। चूंकि बिनावर क्षेत्र का अधिकांश हिस्सा बदायूं विधानसभा क्षेत्र में शामिल हुआ है इसलिए चुनाव लड़ने बदायूं आना इनकी मजबूरी हो गयी। इनके राजनीतिक इतिहास पर एक नजर डालें तो 1996 में यह बसपा के टिकट पर चुनाव लड़े थे जिसमें इन्हें 31573 वोट मिले थे। भाजपा के टिकट पर रामसेवक सिंह पटेल 50690 वोट पाकर विधायक बने थे। दद्दा 2002 के चुनाव में भी बसपा के टिकट पर मैदान में उतरे और 33484 वोट पाकर विधायक निर्वाचित हुये। वर्ष 2007 में हुये पिछले विधानसभा चुनाव में सपा के टिकट पर चुनाव लड़े थे। इसमें भारतीय जन शक्ति पार्टी के टिकट पर रामसेवक सिंह पटेल 34856 वोट पाकर विधायक बने। बसपा उम्मीदवार उमेश सिंह राठौर 33508 वोट पाकर दूसरे स्थान पर रहे थे जबकि दद्दा 23352 वोट पाकर तीसरे स्थान पर रहे थे। बसपा से ताल ठोंक रहे रामसेवक सिंह पटेल भी बिनावर से ही चुनाव लड़ते रहे हैं। बिनावर से वह पांच बार विधायक रहे हैं और इस बार सीट खत्म हो जाने से बदायूं से चुनाव लड़ रहे हैं। इनके अलावा शहर से सपा के टिकट पर नगर पालिका के चेयरमैन आबिद रजा मैदान में हैं तो भाजपा के सीटिंग एमएलए महेश चन्द्र गुप्ता ताल ठोंक रहे हैं। जबकि कांग्रेस के टिकट पर शहर सीट से लगातार चौथी बार चुनाव लड़ रहे फखरे अहमद शोबी हैं। पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह की पार्टी जन क्रांति पार्टी से माधवी साहू मैदान में उतरी हैं। दद्दा के भी मैदान में उतर जाने से शहर सीट का चुनाव बहुत पेंचीदा होता दिखाई दे रहा है। नये परिसीमन के बाद शहर सीट का भूगोल ही नहीं बल्कि राजनीतिक जमीन भी इधर-उधर हुयी है। बिनावर क्षेत्र का अधिकांश हिस्सा शहर में जुड़ने से प्रत्याशी नये जुड़े क्षेत्र के मतदाताओं को अपने पाले में करने के लिए अतिरिक्त प्रयास कर रहे हैं। जबकि रामसेवक सिंह और भूपेंद्र सिंह के लिए शहर के वोटरों में अपनी पैठ बनानी पड़ रही है। बहरहाल, सभी के अपने-अपने समीकरण हैं, अपना अपना वोट बैंक है। इसलिए किसी को भी कमजोर नहीं आंका जा सकता। अपने-अपने गणित से सभी जीत रहे हैं लेकिन जीत का सेहरा किसके सिर सजेगा यह तो मतगणना के बाद ही पता चलेगा।

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