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    उपजाऊ भूमि चाहिये तो अपनायें हरी व कम्पोस्ट खाद

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    Updated: Mon, 27 Feb 2012 10:14 PM (IST)

    आजमगढ़: सघन कृषि पद्धति अपनाये जाने एवं रासायनिक उर्वरकों के अंधाधुन प्रयोग के कारण मृदा में जीवांश पदार्थ की निरन्तर कमी होती जा रही है जिससे उत्पादन बुरी तरह प्रभावित हो रहा है। उर्वरा शक्ति को कायम रखने के लिए मृदा में पर्याप्त जीवांश का होना आवश्यक है। ऐसे में अच्छे उत्पादन के लिए किसान कुछ देशी प्रबन्ध कर जीवांश का स्तर बढ़ायें ताकि फसल को आवश्यक तत्व प्राप्त हो सके। गोबर, पौधों व जीवों के अवशेष का प्रयोग खाद के रूप में करने से भूमि में जीवांश की पूर्ति होती है। जीवांश खाद के प्रयोग से पौधों को समस्त जीवांश प्राप्त हो जाते हैं।

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    कृषि विज्ञान केन्द्र कोटवा के कृषि वैज्ञानिक डा. रणधीर नायक बताते हैं कि यदि मिट्टी में जीवांश का स्तर 0.5 प्रतिशत से कम है तो न्यून, 0.5 से 0.75 प्रतिशत तक मध्यम तथा 0.75 प्रतिशत से अधिक है तो उत्तम माना जाता है। वर्ष 2008 में हुए सरकारी सर्वेक्षण के मुताबिक पूर्वाचल के जनपदों में जीवांश का स्तर 0.1 प्रतिशत तक के स्तर तक पाया गया है। ऐसे में भूमि को बंजर होने से बचाने के लिए तत्काल प्रबन्ध जरूरी है। किसान कुछ देशी तरीके अपनाकर अपनी भूमि में जीवांश का स्तर बढ़ा सकते है।

    खेत की मिट्टी खेत में--

    खेत की मिट्टी खेत में तथा खेत का पानी खेत में बनाये रखने के लिए खेतों की मेड़बंदी करायें ताकि बरसात में उपजाऊ मिट्टी को बहने से बचाया जा सके।

    खेती में हरी खाद का समावेश-

    अप्रैल- मई माह में खाली खेत में ढैंचा, सनई, उर्द, मूंग आदि की बोआई करे। फसल बड़ी होने पर इसे खेत में पलट दें। एक बीघा में 6 किलो ढैंचा का प्रयोग करे।

    जैविक खाद के प्रयोग को बढ़ावा दें-

    खेत में गोबर की सड़ी खाद, वर्मी कम्पोस्ट, वर्मी वाश, नाडेप कम्पोस्ट, मटका की खाद, जानवरों की सींग की खाद, फसलों के अवशेष तथा काऊ पिट पैट आदि जैविक खादों का प्रयोग करे। क्योंकि इसमें पोषक तत्वों की उपलब्धता के साथ ही जीवांश तत्व प्रचुर मात्रा में पाये जाते है।

    ट्राइकोडर्मा उपचारित खाद का प्रयोग-

    50 किग्रा गोबर की खाद व दो किग्रा ट्राइकोडर्मा अच्छी तरह मिलाकर छायादार स्थान पर गोल ढेर लगाएं। 15 दिन तक इसे पालीथिन से ढककर रखें फिर इसे खेत में डालें। इससे गोबर की खाद में पोषक तत्व सात से आठ गुना बढ़ जाता है।

    राइजोवियम कल्चर-

    यह दलहनी फसलों में नत्रजन उपलब्ध कराने वाला यह महत्वपूर्ण कल्चर है।

    एजोटोवैक्टर व एजोस्पाइरिलम कल्चर-

    यह गेहूं, जौ, मक्का, ज्वार, तिलहन, गन्ना, कपास, सब्जी, बागवानी तथा वानिकी पौधों को नत्रजन उपलब्ध कराता है।

    नील हरित शैवाल-

    नील हरित शैवाल जैव उर्वरक धान की फसल को नत्रजन उपलब्ध कराता है।

    फास्फेट विलायक जैव उर्वरक-

    यह फास्फेटिक के नाम से जाना जाता है। सभी प्रकार की फसलों में इसका प्रयोग कर 20-25 प्रतिशत तक फासफोरस रासायनिक उर्वरक की बचत कर 10-20 प्रतिशत उत्पादन बढ़ाया जा सकता है।

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