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    मिल्कीपुर की शिकस्त के बाद क्या बदलेगी सपा की रणीनीति... या 2027 के लिए इसी रफ्तार से दौड़ेगी ‘PDA’ की साइकिल?

    (Milkipur By Election Result 2025) मिल्कीपुर विधानसभा उपचुनाव में भाजपा की जीत से समाजवादी पार्टी के पिछड़ा दलित और अल्पसंख्यक (पीडीए) रणनीति को झटका लगा है। सपा का दावा है कि चुनावी तंत्र के दुरुपयोग के कारण उसे हार का सामना करना पड़ा। पार्टी अब 2027 के चुनाव के लिए अपनी रणनीति को और मजबूत करने की तैयारी में है।

    By Sakshi Gupta Edited By: Sakshi Gupta Updated: Sat, 08 Feb 2025 07:16 PM (IST)
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    मिल्कीपुर में नहीं रुकेगी, ‘27’ के लिए दौड़ेगी ‘पीडीए’ की साइकिल। (तस्वीर जागरण)

    दिलीप शर्मा, लखनऊ। अयोध्या में लोकसभा का रण जीतकर भाजपा पर हमला बोलने वाली समाजवादी पार्टी मिल्कीपुर विधानसभा उपचुनाव की हार के बाद भी अपनी पिछड़ा, दलित और अल्पसंख्यक (पीडीए) की रणनीति पर भरोसा बरकरार रखेगी। सुरक्षित सीट पर पराजय को सपा अपनी रणनीति की असफलता के बजाय भाजपा द्वारा चुनावी तंत्र के दुरुपयोग का परिणाम बता रही है।

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    पार्टी की कोशिश अपने कार्यकर्ताओं से लेकर मतदाताओं तक यही संदेश पहुंचाने की है कि बिना धांधली के चुनाव होता तो भाजपा उनके पीडीए का सामना नहीं कर पाती। सपा मुखिया ने भी नतीजों के बाद साफ कर दिया कि मिल्कीपुर की शिकस्त से ‘पीडीए’ की साइकिल नहीं रुकेगी, बल्कि 2027 के चुनाव के लिए इसी रणनीति पर और तेजी से रफ्तार भरेगी।

    वर्ष 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले सपा ने पीडीए के नारे के साथ संविधान-आरक्षण के खतरे में होने का विमर्श खड़ा किया था। तब सपा के बेहतर प्रदर्शन को इसका ही परिणाम माना गया। पिछले दिनों नौ विधानसभा सीटों के उपचुनाव में एनडीए ने सात को जीतकर इस फॉर्मूले को चुनौती दी थी।

    1998 और 2022 के बीच दो बार उपचुनाव हुए

    इसके बाद मिल्कीपुर विधानसभा सीट पर उपचुनाव को सपा और भाजपा के बीच प्रतिष्ठा की लड़ाई माना जा रहा था। अनुसूचित जाति के मतदाताओं की बहुलता वाली इस सुरक्षित सीट पर सपा का दबदबा माना जाता था। वर्ष 1998 के बाद से 2022 तक हुए दो उपचुनाव और पांच विधानसभा चुनावों में से पांच बार सपा जीती थी। जबकि बसपा ने 2007 और भाजपा ने 2017 में विजय प्राप्त की थी। इस बार बसपा और कांग्रेस के मैदान में न होने से सीधा मुकाबला सपा और भाजपा के ही बीच था।

    सपा ने अयोध्या लोकसभा सीट जीती थी

    सपा ने इस सीट पर 2024 के लोकसभा चुनाव में अयोध्या (फैजाबाद) सीट पर जीत हासिल करने वाले सांसद अवधेश प्रसाद के बेटे अजीत प्रसाद को प्रत्याशी बनाया था। अवधेश प्रसाद 2012 में इसी सीट से विधायक बने थे, इसके बाद वर्ष 2022 में भी उन्होंने जीत हासिल की थी। वहीं 2017 में भाजपा के बाबा गोरखनाथ विधायक बने थे और इस बार पार्टी ने पासी समाज के चंद्रभानु पासवान को मैदान में उतारा था।

    प्रचार में पूरी ताकत पीडीए की रणनीति पर लगाई

    प्रचार में सपा ने पूरी ताकत पीडीए की रणनीति पर ही लगाई। सपा मुखिया अखिलेश यादव ने अधिकारियों की तैनाती में पीडीए की भागीदारी के सवाल उठाए। विकास के नाम पर मिल्कीपुर की जनता के साथ अन्याय के आरोप लगाकर माहौल बनाने की कोशिश की। जातीय समीकरणों को साधने के लिए सजातीय नेताओं को लगाया गया था।

    अखिलेश यादव और उनकी पत्नी सांसद डिंपल यादव ने पार्टी प्रत्याशी के समर्थन में रोड शो किए और सांसद धर्मेंद्र यादव ने भी प्रचार किया था। सपा ने सरकारी तंत्र के दुरुपयोग का मामला भी जोर-शोर से उठाया। मतदान के बाद उन्होंने सीधे निर्वाचन आयोग को को कटघरे में खड़ा किया था।

    शनिवार को जब परिणाम आया तो समाजवादी पार्टी ने इसे धांधली करार दिया। सपा मुखिया अखिलेश यादव ने कहा कि पीडीए की बढ़ती शक्ति का भाजपा सामना नहीं कर सकती। एक विधानसभा सीट पर धांधली कर कर जीता जा सकता है, लेकिन जब 403 सीटों पर चुनाव होगा तो ऐसा नहीं हो पाएगा।

    परिणाम के बाद पार्टी नेताओं को पीडीए अभियान को और तेजी से चलाने के लिए कह दिया गया है। सपा की कोशिश 2027 के विधानसभा चुनावों के पहले इसे गांव-गांव, घर-घर पहुंचाने की है।

    बसपा के वोटरों ने दिया भाजपा का साथ

    मिल्कीपुर उपचुनाव में सबकी निगाहें अनुसूचित जाति के मतदाताओं के रुख पर भी टिकी थीं। बसपा इस चुनाव में मैदान में नहीं थी। ऐसे में भाजपा और सपा, दाेनों ने इन मतदाताओं का साथ पाने के लिए ताकत झोंकी थी। परंतु जिस तरह से भाजपा को जीत मिली, उससे साफ है कि बसपा के कैडर वोट को भी साफ संदेश था कि समाजवादी पार्टी को जीत तक नहीं पहुंचने देना है।

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