परंपरा तोड़ हनुमानगढ़ी से बाहर निकलकर राम लला के दर्शन करेंगे मुख्य महंत, करीब 200 सालों में पहली बार होगा ऐसा
हनुमानगढ़ी के मुख्य महंत प्रेमदास 200 सालों में पहली बार हनुमानगढ़ी से बाहर निकलकर राम लला के दर्शन करेंगे। यह यात्रा अक्षय तृतीया के पावन अवसर पर होगी। हनुमानगढ़ी की आचार संहिता में गद्दीनशीन के लिए इस पीठ के 52 बीघा परिसर से बाहर जाना निषिद्ध है लेकिन हनुमानजी की इच्छा से महंत प्रेमदास यह परंपरा तोड़ेंगे।

रघुवरशरण, अयोध्या। हनुमानगढ़ी के गद्दीनशीन की करीब दो सौ वर्ष की परंपरा में यह पहला अवसर होगा, जब अक्षय तृतीया पर मुख्य महंत गद्दीनशीन प्रेमदास हनुमानजी के प्रतिनिधि के रूप में रामलला का दर्शन करने जाएंगे।
उनके साथ संपूर्ण हनुमानगढ़ी का भी प्रतिनिधित्व होगा, जिसमें हनुमानजी के निशान सहित सभी चार पट्टियों के महंत, सरपंच और अन्य विशिष्ट संत-महंत शामिल होंगे।
हनुमानगढ़ी की आचार संहिता में गद्दीनशीन के लिए इस पीठ के 52 बीघा परिसर से बाहर जाना निषेध होता है और उसके मूल में यही भावना है कि वह हनुमानजी के मुख्य अनुचर व सेवक के रूप में सतत सन्नद्ध रहेंगे। महंत प्रेमदास हनुमानगढ़ी के 20 में से ऐसे दूसरे गद्दीनशीन (उत्तराधिकारी) होंगे, जो 52 बीघा की परिधि का अतिक्रमण करेंगे।
... जब घायल होने पर जाना पड़ा था अस्पताल
चार दशक पूर्व तत्कालीन गद्दीनशीन महंत दीनबंधुदास को गंभीर रूप से घायल होने पर चिकित्सालय ले जाना पड़ा था, इस पर हनुमानगढ़ी की निर्णायक पंचायत को आपत्ति हुई थी और अंतत: तत्कालीन गद्दीनशीन को अति आकस्मिकता व मानवीय आधार पर छूट मिल सकी थी।
वर्तमान गद्दीनशीन का मामला अलग है। उन्हें तो हनुमानजी ने प्रेरित कर अपनी इच्छा से अवगत कराया। गत तीन माह से महंत प्रेमदास हनुमानजी की इच्छापूर्ति का प्रयास करने लगे। पहले उन्होंने शिष्यों से विचार साझा किया। इसके बाद बात पंचायत तक पहुंची।
पंचायत ने गत 21 तारीख को बैठक कर गद्दीनशीन को अनुमति प्रदान की। सरपंच महंत रामकुमारदास ने बताया कि गद्दीनशीन का हनुमानजी के निशान के साथ रामलला का दर्शन करने जाने का विषय हनुमानगढ़ी की भावना व मर्यादा के अनुरूप है और पंचायत अपने निर्णय से अभिभूत है। इसके लिए अक्षय तृतीया यानी 30 अप्रैल की तारीख नियत की गई है।
आस्था की यह गौरवमय यात्रा निर्धारित तिथि पर सुबह हनुमानगढ़ी से शुरू होकर पुण्यसलिला सरयू तट तक जाएगी और वहां स्नान के बाद रामजन्मभूमि पहुंचेगी। प्रेमदास लगभग आठ साल बाद हनुमानगढ़ी परिसर से बाहर निकलेंगे।
गद्दीनशीन के प्रधान शिष्य व हनुमत संस्कृत महाविद्यालय के प्राचार्य डा. महेशदास के अनुसार, यह यात्रा शोभायात्रा के रूप में होगी। यह परंपरा भी है कि हनुमानजी का निशान शोभायात्रा के रूप में ही संचालित होता है।
सोने-चांदी के तारों से निर्मित हनुमान जी का निशान 20 से 25 फीट ऊंचे और 20-25 किलो ग्राम वजनी चांदी के दंड पर स्थापित होता है। निशान के साथ अस्त्र-शस्त्र के प्रतीक रूप में चांदी की 10-12 फीट लंबी छड़ी व बल्लम भी शामिल होते हैं। इनकी संख्या नौ होती है।
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