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    Ayodhya: हनुमानगढ़ी की कहानी... नवाब ने करवाया था भव्य मंदिर का निर्माण, हनुमान जी के लिए 52 बीघा जमीन का दिया था दान

    Updated: Tue, 23 Jan 2024 07:00 AM (IST)

    Ayodhya Hanuman Garhi Temple History Significance Facts 18वीं शताब्दी के प्रारंभिक काल में नवाब पुत्र की असाध्य बीमारी से क्लांत कातर हो यहां विराजमान बजरंगबली के अर्चक बाबा अभयरामदास के आशीर्वाद से यदि नवाब के पुत्र को असाध्य बीमारी से मुक्ति मिली तो बदले में नवाब ने हनुमान जी का भव्य मंदिर निर्मित कराया और हनुमान जी के लिए 52 बीघा का परिसर दान कर दिया।

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    Ayodhya: हनुमानगढ़ी की कहानी... नवाब ने करवाया था भव्य मंदिर का निर्माण (File Photo)

    रघुवरशरण, अयोध्या। रामलला की स्थापना के साथ उनके परम प्रिय दूत बजरंगबली की प्रधानतम पीठ हनुमानगढ़ी का भी मान बढ़ गया। पौराणिक मान्यता के अनुसार लंका विजय के बाद श्रीराम के साथ अनेक वानर वीर भी श्रीराम के साथ अयोध्या आए। इनमें स्वाभाविक रूप से हनुमान जी भी शामिल थे। माता सीता की खोज से लेकर रावण के विरुद्ध सामरिक अभियान में हनुमान जी ने अति महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। उनकी इसी योग्यता के अनुरूप श्रीराम ने राजप्रासाद के आग्नेय कोण पर हनुमान जी को अयोध्या के रक्षक के रूप में स्थापित किया।

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    17वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में तीन अखाड़ों का गठन

    यह भी मान्यता है कि अजर-अमर के वरदान से युक्त हनुमान जी आज भी यहां सूक्ष्म रूप से विद्यमान हैं। एक मार्च 1528 को राम मंदिर तोड़े जाने जैसी घटनाओं के चलते घर-परिवार त्याग कर राम भक्ति में लीन रहने वाले विरक्त वैष्णव आचार्यों ने 17वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में जिन तीन अखाड़ों का गठन किया, उनमें से एक निर्वाणी अखाड़ा भी था। हनुमानगढ़ी इस अखाड़ा के विरक्त साधुओं के केंद्र के रूप में स्थापित हुई।

    हनुमानगढ़ी के संतों ने चलाया रामजन्मभूमि मुक्ति का अभियान

    पुजारी रमेशदास के अनुसार, इस निर्णय के पीछे हनुमान जी से भक्ति, वैराग्य, बल-विक्रम और रामकाज की प्रेरणा भी थी। ऐसी ही प्रेरणा और विरासत से प्रवाहमान हनुमानगढ़ी के संतों ने रामजन्मभूमि की मुक्ति का अभियान आगे बढ़ाया। यदि एक ओर इस पीठ की आध्यात्मिक विरासत अवध के नवाब मंसूर अली खां से प्रतिपादित है, दूसरी ओर महंत अभिरामदास से भी अनुप्राणित है।

    नवाब ने करवाया था भव्य मंदिर का निर्माण

    18वीं शताब्दी के प्रारंभिक काल में नवाब पुत्र की असाध्य बीमारी से क्लांत कातर हो यहां विराजमान बजरंगबली के अर्चक बाबा अभयरामदास के आशीर्वाद से यदि नवाब के पुत्र को असाध्य बीमारी से मुक्ति मिली, तो बदले में नवाब ने हनुमान जी का भव्य मंदिर निर्मित कराया और हनुमान जी के लिए 52 बीघा का परिसर दान कर दिया। हनुमानगढ़ी मुस्लिमों की भी आस्था के केंद्र में रही, किंतु जब भी रामजन्मभूमि मुक्ति के प्रति न्याय की बारी आई हनुमानगढ़ी हनुमानजी की विरासत के अनुरूप डटी मिली।

    हनुमानगढ़ी भी फूली नहीं समा रही

    22-23 दिसंबर 1949 की रात जिस महंत के पराक्रम से रामजन्मभूमि पर प्रकटे रामलला को हटाया नहीं जा सका, वह यहीं से जुड़े महंत अभिरामदास थे। कालांतर में उन्हीं के शिष्य महंत धर्मदास एवं यहीं से जुड़े एक अन्य शीर्ष महंत ज्ञानदास रामजन्मभूमि मुक्ति के लिए अपने-अपने स्तर से प्रयासरत रहे। आज जब रामजन्मभूमि पर सदियों बाद भव्य मंदिर निर्माण और उसमें रामलला की स्थापना का चिर स्वप्न साकार हो रहा है, तब हनुमानगढ़ी भी फूली नहीं समा रही है।

    बजरंगबली का श्रृंगार

    राम मंदिर निर्माण के साथ न केवल हनुमानगढ़ी के नवीनीकरण का प्रयास चल रहा है, समय-समय पर इस पीठ का उल्लास भी प्रस्फुटित होता है। रामलला की स्थापना के उत्सव में सोमवार के दिन बजरंगबली का श्रृंगार उनके प्रिय दिन मंगलवार की व्यवस्था के हिसाब से किया गया। उन्हें स्वर्ण छत्र, स्वर्ण मुकुट-कुंडल से सज्जित किया गया। जबकि गर्भगृह सहित हनुमानगढ़ी का संपूर्ण आंतरिक प्रांगण भांति-भांति के पुष्पों से सुशोभित रहा।

    कनकभवन में विराजे कनकबिहारी के दर्शन का विधान

    बजरंगबली का दरबार उन विशिष्ट जनों की श्रद्धा से भी सज्जित हुआ, जो रामलला की प्राण प्रतिष्ठा में शामिल होकर लौट रहे थे। यद्यपि सोमवार को अति प्रतिष्ठापरक समारोह में शामिल होने की आपाधापी अपवाद सिद्ध हुई, नहीं तो पहले हनुमान जी के दर्शन और उसके बाद उनके आराध्य रामलला अथवा कनकभवन में विराजे कनकबिहारी के दर्शन का विधान है। इस समीकरण के चलते रामलला के दर्शनार्थियों में दो से तीन गुणा वृद्धि के साथ हनुमान जी के दर्शनार्थियों में भी अपूर्व वृद्धि हुई है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी सोमवार को राम मंदिर में भगवान रामलला की प्राण प्रतिष्ठा के बाद अपने संबोधन में हनुमानगढ़ी को प्रणाम किया।

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