Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    'जहां राम हैं, वहां भय नहीं और न ही कभी पराजय', आचार्य किशोर कुणाल ने विशेष साक्षात्कार में राम मंदिर पर खुलकर की बात

    Updated: Thu, 18 Jan 2024 09:56 PM (IST)

    आचार्य किशोर कुणाल की संस्था महावीर मंदिर ट्रस्ट राम मंदिर के प्रवेश मार्ग पर पांच से सात हजार श्रद्धालुओं के लिए निशुल्क भोजनालय चलाती है। उन्होंने राम मंदिर निर्माण के लिए आठ करोड़ रुपये का निधि समर्पण किया है और प्राण प्रतिष्ठा से पूर्व दो करोड़ की एक और किस्त समर्पित करेंगे। आचार्य कुणाल से हमारे संवाददाता ने विस्तार से वार्ता की....

    Hero Image
    आचार्य किशोर कुणाल ने विशेष साक्षात्कार में राम मंदिर पर खुलकर की बात

    रघुवरशरण, अयोध्या। तेज-तर्रार आइपीएस अधिकारी की छाप छोड़ने वाले आचार्य किशोर कुणाल ने गुजरात का एडीजी रहते स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ले ली। इसके बाद के सवा दो दशक की यात्रा में उनका जीवन रामजन्मभूमि मुक्ति के प्रति समर्पित रहा है। उनकी संस्था महावीर मंदिर ट्रस्ट राम मंदिर के प्रवेश मार्ग पर पांच से सात हजार श्रद्धालुओं के लिए निशुल्क भोजनालय चलाती है। उन्होंने राम मंदिर निर्माण के लिए आठ करोड़ रुपये का निधि समर्पण किया है और प्राण प्रतिष्ठा से पूर्व दो करोड़ की एक और किस्त समर्पित करेंगे। आचार्य कुणाल से हमारे संवाददाता ने विस्तार से वार्ता की....

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    सवाल : रामलला के विग्रह की प्राण प्रतिष्ठा के अवसर को किस रूप में देखते हैं?

    जवाब : इस अवसर को मैं चिर प्रतीक्षित स्वप्न साकार होने के रूप में देखता हूं।

    सवाल : व्यक्तिगत तौर पर क्या अनुभव करते हैं?

    जवाब : निश्चित रूप से मैं इतने बड़े विषय से व्यक्तिगत तौर पर जुड़ा रहा। मैं इस दिशा में तीन दशक से प्रयासरत रहा और आज मंदिर निर्माण संभव होना मेरे लिए अति उपलब्धिपूर्ण है।

    सवाल : रामजन्मभूमि मुक्ति के अभियान से किस तरह जुड़े?

    जवाब : बात 1989 ई. की है। उन दिनों मैं संस्कृत में पीएचडी के लिए स्टडी लीव पर था। वाल्मीकि रामायण का पाठ-पारायण और अध्ययन मेरी दिनचर्या में था ही। उन्हीं दिनों मुझे ज्ञात हुआ कि रामजन्मभूमि के पक्ष में प्रमाण खोजे जा रहे हैं। संयोग से तत्कालीन गृह राज्य मंत्री सुबोधकांत सहाय से भेंट हो गई। वह अयोध्या से जुड़ी मेरी समझ और संवेदना से परिचित हो मुझे दिल्ली ले गए और मैंने होम मिनिस्ट्री के अयोध्या प्रकोष्ठ में विशेष कार्याधिकारी का पद भार ग्रहण किया। अयोध्या प्रकोष्ठ का गठन रामजन्मभूमि के विवाद को हल करने के ही लिए हुआ था।

    सवाल : इस भूमिका में आपका प्रयास किस रूप में सामने आया?

    जवाब : हमारा एजेंडा साफ था कि मंदिर के पक्ष में प्रमाण खोजे जाएं। इसी बीच मुझे ज्ञात हुआ कि आठ-नौ वर्ष पूर्व प्रख्यात पुरातत्वविद प्रो. ब्रजवासी लाल ने रामजन्मभूमि के आसपास की सतह पर उत्खनन कराया और उन्हें मंदिर के अवशेष मिले। यह निष्पत्ति प्रतिष्ठित होती, तभी तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने उत्खनन रोकवा दिया था। मैं ब्रजवासी लाल से मिला, उन्होंने इस सच्चाई की पुष्टि की और मुझे तत्कालीन प्रधानमंत्री चंद्रशेखर को संबोधित पत्र सौंपा, जिसमें प्रो. लाल ने दोहराया कि मंदिर की सतह से कसौटी स्तंभों के बेस (आधार पीठ) मिले हैं और पूरी संभावना है कि वहां मंदिर था। इस सत्य के आधार पर प्रयास प्रभावी होने लगा।

    सवाल : आप कह रहे हैं कि प्रयास प्रभावी हुआ, किंतु तब मंदिर का हल क्यों नहीं संभव हो सका?

    जवाब : प्रयास इन अर्थों में प्रभावी हुआ कि प्रधानमंत्री चंद्रशेखर, गृह राज्य मंत्री सुबोधकांत सहाय सहित मुस्लिम पक्ष के भी लोग यह स्वीकार करने लगे कि वहां मंदिर था, जिसे तोड़ कर मस्जिद का आकार देने का प्रयत्न किया गया। बाद में 'अयोध्या रीविजिटेड' एवं 'अयोध्या बियांड एब्यूस्ट एविडेंस' नामक मेरी दो कृतियों को सुप्रीम कोर्ट ने संज्ञान में लिया। यह कृतियां राम मंदिर के पक्ष में निर्णय की आधार बनीं।

    सवाल : आपकी इन कृतियों में उल्लेख है कि राम मंदिर बाबर के नहीं औरंगजेब के आदेश पर तोड़ा गया। इस निष्कर्ष का क्या आधार है?

    जवाब : मेरे पास शुरू से इस प्रश्न का उत्तर नहीं था कि यदि 1528 ई. में बाबर ने मंदिर तोड़ा, तो 1574 ई. में रामचरितमानस की रचना के समय तक गोस्वामी तुलसीदास ने अपने आराध्य का मंदिर तोड़े जाने की घटना का उल्लेख क्यों नहीं किया। ..और मेरी कृति ने इस प्रश्न का उत्तर इस शोध के साथ दिया कि बाबर ने नहीं, बल्कि औरंगजेब के आदेश पर उसके प्रांतीय शासक फिदायी खान ने यह मंदिर 1660 ई. में तोड़ा।

    सवाल : मंदिर निर्माण पूर्णता की ओर है, सोमवार को रामलला की स्थापना भी हो जाएगी। तब रामजन्मभूमि मुक्ति के अभियान की क्या भूमिका होगी?

    जवाब : मेरी दृष्टि से इस अभियान की पूर्णाहुति हो गई। मेरा तो स्वप्न पूरा हो गया। बाकी लोग अपने ढंग से सोचने को स्वतंत्र हो सकते हैं।

    सवाल : आपकी दृष्टि में रामजन्मभूमि मुक्ति के सुदीर्घ संघर्ष का सर्वाधिक प्रेरक पक्ष क्या था?

    जवाब : स्वयं श्रीराम और उनके प्रति अटूट श्रद्धा एवं विश्वास। मैं वाल्मीकि रामायण का चिर अनुरागी हूं और उसमें श्रीराम के बारे में कहा गया है, यत्र रामो भयं नात्र नास्ति तस्य पराभव:। यानी जहां राम हैं, वहां भय नहीं और न ही कभी पराजय हो सकती है।

    ये भी पढ़ें- Ayodhya Ram Mandir: 'प्राण प्रतिष्ठा' को लेकर BJP ने नीतीश कुमार से कर दी ये मांग, सुशील मोदी बोले- राजनीति से ऊपर उठकर...

    ये भी पढ़ें- Ram Mandir Ayodhya: तीसरे दिन का अनुष्ठान हुआ पूरा, गर्भगृह में स्थापित हुए रामलला