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    Avadh University: अवध विवि में तैयार होगी बिजली पैदा करने वाली टाइल्स, शोध के लिए टीम तैयार

    Updated: Fri, 12 Sep 2025 10:07 AM (IST)

    डॉ. राममनोहर लोहिया अवध विश्वविद्यालय में बिजली बनाने वाली टाइल्स विकसित करने की तैयारी है। ये टाइल्स दबाव से ऊर्जा उत्पन्न करेंगी। उत्तर प्रदेश विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी परिषद ने 16.08 लाख रुपये की परियोजना स्वीकृत की है। यह तकनीक रेलवे स्टेशन और विश्वविद्यालय जैसे सार्वजनिक स्थलों के लिए उपयुक्त होगी जिससे प्रकाश व्यवस्था और छोटे उपकरण चल सकेंगे।

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    अवध विवि में तैयार होगी बिजली पैदा करने वाली टाइल्स। जागरण फोटो

    प्रवीण तिवारी, जागरण अयोध्या। डॉ. राममनोहर लाेहिया अवध विश्वविद्यालय में अब ऐसी टाइल्स विकसित किए जाने की तैयारी हो रही है, जो बिजली तैयार करने में सहायक होगी। ये वही टाइल्स हैं, जो लोग अपने भवन में लगाते हैं, लेकिन सामान्य टाइल्स से यह थोड़ा अलग होगी। इसमें कुछ यंत्रों का संयोजन कर बिजली बनाई जा सकेगी।

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    यह शोध यदि लक्ष्य प्राप्त करता है तो ऊर्जा आत्मनिर्भरता की दिशा में यह अत्यंत अहम कदम होगा। मुख्य अन्वेषक विवि के आइईटी संस्थान के डॉ. समरेंद्र सिंह हैं। इस शोध के लिए उत्तर प्रदेश विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी परिषद ने 16.08 लाख रुपये की अनुसंधान परियोजना स्वीकृत की है।

    इस शोध के लिए अब आवश्यक मैटीरियल व लैब का सेटअप किया जाना प्रारंभ हो गया है। इसी में टाइल्स की संरचना पर शोध किया जाएगा, जो ट्रांसड्यूसर का सहयोगी बन सके। इसमें टाइल्स पर मनुष्य के पांव पड़ने पर पैदा होने वाले दबाव की स्थैतिक ऊर्जा से बिजली तैयार की जाएगी।

    टाइल्स को ट्रांसडूसर से जोड़ कर शोध किया जाएगा। ट्रांसड्यूसर ऐसा यंत्र है जो ऊर्जा एक रूप को दूसरे रूप में परिवर्तित करता है। इस प्रक्रिया में इस तरह की टाइल विकसित करने का प्रयास होगा, जो मनुष्यों के अधिक दबाव वाले स्थानों पर लगाई जा सकें।

    टाइल्स को ट्रांसड्यूसर से जोड़ कर लोगों के वजन को बिजली में रूपांतरित किया जाएगा। इन संक्रियाओं को क्रियान्वित करते हुए सक्षम टाइल्स बनाने का सूत्र तैयार कर इसको जमीन पर उतारा जाएगा।

    डॉ. समरेंद्र सिंह बताते हैं कि परियोजना का उद्देश्य ऐसी ऊर्जा-सक्षम टाइल्स का विकास करना है, जो अपने ऊपर से गुजरने वाले के दबाव को बिजली में परिवर्तित कर सके। यह तकनीक वहां उपयुक्त होगी जहां ह्यूमन फुट फाल अधिकतम हो, जैसे रेलवे स्टेशन, मेट्रो स्टेशन, बस स्टैंड, माल, विश्वविद्यालय परिसर व अन्य सार्वजनिक स्थल।

    इस तकनीक से उत्पन्न बिजली प्रकाश व्यवस्था एवं छोटे उपकरणों के संचालन के लिए पर्याप्त होगी। सिविल इंजीनियरिंग के दृष्टिकोण से यह टिकाऊ एवं पर्यावरण-अनुकूल संरचना के निर्माण में सहायक होगी। वहीं इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग के दृष्टिकोण से यह ऊर्जा आत्मनिर्भरता की दिशा में एक अभिनव पहल है।

    परियोजना के प्रधान अन्वेषक डॉ. समरेंद्र इंजीनियरिंग कालेज के विद्युत अभियांत्रिकी विभाग में सहायक प्राध्यापक हैं। सह अन्वेषक भौतिकी एवं इलेक्ट्रॉनिक्स विभाग के अध्यक्ष प्रो. गंगाराम मिश्र हैं। अन्य सहअन्वेषक प्रो. प्रभाकर तिवारी हैं, जो गोरखपुर के हैं।

    अविवि के सौहार्द्र ओझा भी इस शोध का हिस्सा होंगे। यह परियोजना मिलने पर कुलपति डॉ. बिजेंद्र सिंह ने विज्ञानियों को बधाई दी हे। वह कहते हैं कि यह परियोजना हमारे विश्वविद्यालय की शोध एवं नवाचार क्षमता को नई ऊंचाई प्रदान करेगी।

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