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    ये है आजादी से पहले की रामलीला...अंग्रेजों के जमाने में होती थी सिर्फ एक दिन

    Updated: Mon, 29 Sep 2025 12:38 PM (IST)

    गजरौला के कांकरठेर गांव में स्वतंत्रता से पहले से रामलीला का मंचन होता आ रहा है। यहां गांव के लोग ही राम लक्ष्मण और रावण के किरदार निभाते हैं। 1942 से चली आ रही इस परंपरा को गांव के युवा पीढ़ी दर पीढ़ी निभा रहे हैं। गांव की रामलीला आसपास के क्षेत्र में प्रसिद्ध है।

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    ये है आजादी से पहले की रामलीला। जागरण

    जागरण संवाददाता, गजरौला । गांव कांकाठेर...। इस गांव में ब्रिटिश दौर में भी रामलीला का मंचन नहीं रूका था। हां, दायरा और सिस्टम जरूर छोटा था मगर, अब उससे कई गुणा बड़ा मंचन होता है। हैरत की बात यह है कि यहां पर रामलीला करने के लिए बाहर से कलाकारों को बुलाना नहीं पड़ता है। हर साल गांव के ही रहने वाले लोग श्रीराम, लक्ष्मण और रावण का किरदार निभाते हैं।

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    हाईवे किनारे स्थित कांकाठेर ग्राम पंचायत ब्लाक की बड़ी ग्राम पंचायतों में शामिल है। इस गांव में प्राचीन परंपराओं को जिंदा रखने की एक अगल पहचान है। चाहे वो होली पर बम्ब बजाने की हो या फिर कांवड़ियों के आगमन से पहले सड़कों पर झाड़ू लगाने परंपरा हो। इसी तरह रामलीला के मंचन की परंपरा हो ग्रामीण यूं ही निभाते आ रहे हैं।

    गांव निवासी 70 वर्षीय डिगंबर दयाल रामलीला समिति के सदस्य हैं। इनका कहना है कि 1942 से गांव में रामलीला चली आ रही है। जब अंग्रेजों का दौर था, तब सिर्फ दशहरे वाले दिन मंचन किया जाता था। बाद में देश आजाद हुआ तो उल्लास बढ़ा। अंग्रेजियत दौर में गांव के बुजुर्ग रहे महाशी नंबरदार, लालसहाय, खूबचंद्र गुप्ता, गुरुदयाल पंडितजी, गंगादास और शिव लाल के साथ-साथ भोजराम बाबू जी अलग-अलग किरदार निभाते थे मगर, इन सभी के निधन के बाद गांव के ही ग्रामीणों ने इस पंरपरा को आगे बढ़ाया।

    पीढ़ियों से निभा रहे किरदार

    पीढ़ियां किरदार निभा रही हैं। जैसे कि लालसहाय का पुत्र खूबचंद्र प्रधान वर्तमान में रावण का रोल अदा करते हैं। बाकी गांव के राकेश कुमार श्रीराम, दुष्यंत कुमार लक्ष्मण, रविंद्र सीताजी, राजू हनुमान, विजेंद्र दशरत और निरंजन कैकई का किरदार निभा रहे हैं। खास बात यह है कि गांव के लोग ही रामलीला में श्रीराम, लक्ष्मण और रावण के साथ हनुमान का रोल अदा करते हैं। मंचन का संचालन महावीर सिंह और रामायण का पाठ भीमसैन राणा करते हैं।

    गांव के प्रधान पति हरिओम सिंह ने बताया कि गर्व कि बात है कि रामलीला में मंचन करने वाले गांव के ही पात्र हैं। यही वजह है कि गांव की रामलीला को देखने के लिए आसपास के गांव से भी लोग पहुंचते हैं। गांव की रामलीला प्रसिद्ध है और पुरानी परंपराओं को हिसाब से आगे बढ़ रहे हैं। इस कार्य में गांव के बुजुर्गों की राय और सहयोग भी बेशुमार रहता है।