विधि विधान से करें लक्ष्मी-गणेश पूजन
अमरोहा : सामान्यत: दीपावली पूजन का अर्थ लक्ष्मी पूजा से लगाया जाता है, ¨कतु इसके अंतर्गत गणेश, गौरी,
अमरोहा : सामान्यत: दीपावली पूजन का अर्थ लक्ष्मी पूजा से लगाया जाता है, ¨कतु इसके अंतर्गत गणेश, गौरी, नवग्रह षोडशमातृका, महालक्ष्मी, महाकाली, महासरस्वती, कुबेर, तुला, मान व दीपावली की पूजा भी होती है।
वासुदेव तीर्थ के पुजारी पंडित विद्यानंद झा ने बताया कि दीपावली के अवसर पर शुभ मुहूर्त पर गणेश व लक्ष्मी का पूजन फलदायी माना जाता है। पूजन के लिए आवश्यक सामग्री में लक्ष्मी व गणेश की मूर्तियां, लक्ष्मी सूचक सोने अथवा चांदी का सिक्का, लक्ष्मी स्नान के लिए स्वच्छ कपड़ा, लक्ष्मी सूचक सिक्के को स्नान के बाद पोछने के लिए एक बड़ी व दो छोटी तौलिया। बहीखाते, सिक्कों की थैली, लेखनी, काली स्याही से भरी दवात, तीन थालियाँ, एक साफ कपड़ा, धूप, अगरबत्ती, मिट्टी के बड़े व छोटे दीपक, रुई, माचिस, सरसों का तेल, शुद्ध घी, दूध, दही, शहद, शुद्ध जल व पंचामृत, केसर, सिन्दूर, कुंकुम, गिलास, चम्मच, प्लेट, कड़छुल, कटोरी, तीन गोल प्लेट, द्वार पर टांगने के लिए वन्दनवार आदि की जरूरत होती है। लक्ष्मीजी की पूजा में चावल का प्रयोग नहीं करना चाहिए। लक्ष्मीजी के हवन में कमलगट्टों को घी में भिगोकर अर्पित करना चाहिए। कमलगट्टों की माला द्वारा किए गए मां लक्ष्मीजी के जप का विशेष महत्व बताया गया है। निर्धारित मुहूर्त पर चौकी पर लक्ष्मी व गणेश की मूर्तियां इस प्रकार रखें कि उनका मुख पूर्व या पश्चिम में रहे। लक्ष्मीजी, गणेशजी की दाहिनी ओर रहें। पूजनकर्ता मूर्तियों के सामने की तरफ बैठें। कलश को लक्ष्मीजी के पास चावलों पर रखें। नारियल को लाल वस्त्र में इस प्रकार लपेटें कि नारियल का अग्रभाग दिखाई देता रहे व इसे कलश पर रखें। यह कलश वरुण का प्रतीक है। घी के एक दीपक को चौकी के दाईं ओर व दूसरा मूर्तियों के चरणों में रखें। इसके अतिरिक्त एक दीपक गणेशजी के पास रखें। मूर्तियों वाली चौकी के सामने छोटी चौकी रखकर उस पर लाल वस्त्र बिछाएं। कलश की ओर एक मुट्ठी चावल से लाल वस्त्र पर नवग्रह की प्रतीक नौ ढेरियाँ बनाएं। गणेशजी की ओर चावल की सोलह ढेरियां बनाएं। ये सोलह मातृका की प्रतीक हैं। नवग्रह व षोडश मातृका के बीच स्वस्तिक का चिह्न बनाएं। इसके बीच में सुपारी रखें व चारों कोनों पर चावल की ढेरी। सबसे ऊपर बीचों-बीच ॐ लिखें। लक्ष्मीजी की ओर श्री का चिह्न बनाएं। गणेशजी की ओर त्रिशूल, चावल का ढेर लगाएं। सबसे नीचे चावल की नौ ढेरियाँ बनाएं। इन सबके अतिरिक्त बहीखाता, कलम-दवात व सिक्कों की थैली भी रखें। छोटी चौकी के सामने तीन थाली व जल भरकर कलश रखें।
ऐसे करें पूजन
पंडित विद्यानंद झा ने बताया कि पवित्रीकरण करने के बाद हाथ में पूजा के जलपात्र से थोड़ा सा जल ले लें और अब उसे मूर्तियों के ऊपर छिड़कें। साथ में मंत्र पढ़ें। इस मंत्र और पानी को छिड़ककर आप अपने आपको पूजा की सामग्री को और अपने आसन को भी पवित्र कर लें। आचमन आदि के बाद आंखें बंद करके मन को स्थिर कीजिए और तीन बार गहरी सांस लीजिए। यानी प्राणायाम कीजिए क्योंकि भगवान के साकार रूप का ध्यान करने के लिए यह आवश्यक है फिर पूजा के प्रारंभ में स्वस्ति वाचन करके पूजा का संकल्प किया जाता है। सबसे पहले गणेश जी व गौरी का पूजन कीजिए। उसके बाद वरुण पूजा यानी कलश पूजन करना चाहिए। हाथ में थोड़ा-सा जल ले लीजिए और आह्वाहन व पूजन मंत्र बोलिए और पूजा सामग्री चढ़ाइए। फिर नवग्रहों का पूजन कीजिए। हाथ में अक्षत और पुष्प ले लीजिए और नवग्रह स्तोत्र बोलिए। इसके बाद षोडश मातृकाओं का पूजन किया जाता है। हाथ में गंध, अक्षत, पुष्प ले लीजिए। सोलहमाताओं को नमस्कार कर लीजिए और पूजा सामग्री चढ़ा दीजिए। सोलह माताओं की पूजा के बाद रक्षाबन्धन होता है। रक्षाबंधन विधि में मौली लेकर भगवान गणपति पर चढ़ाइए और फिर अपने हाथ में बंधवा लीजिए और तिलक लगा लीजिए। अब आनन्दचित्त से और निर्भय होकर महालक्ष्मी का पूजन प्रारंभ करें।
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