उपेंद्रनाथ अश्क जन्मतिथि: महान कथाकार के अनछुए पहलुओं को छुएगा उपन्यास 'अश्क जी का कुनबा'
उपन्यास अश्क जी का कुनबा में उनकी तीनों पत्नियां क्रमश शीला (दो साल का साथ) माया (कुछ माह का साथ) और कौशल्या (आजीवन लगभग 50 साल का साथ) से जुड़ी स्मृ ...और पढ़ें
प्रयागराज, जागरण संवाददाता। दिलदार मित्र, बेजोड़ लेखक, रिश्तों में जीवंत करने वाले कथाकार, उपन्यासकार उपेंद्रनाथ 'अश्क' का जीवन उतार-चढ़ाव भरा रहा। घर-बाहर की चुनौतियों से जूझते हुए लेखन करते हुए 'नीलाभ प्रकाशन' का कुशल संचालन किया। अश्क के जीवन के कई अनछुए पहलू हैं, जिससे अधिकतर अनभिज्ञ हैं। उसे उपन्यास 'अश्क जी का कुनबा' में समेटा गया है। अश्क की बहू कथाकार भूमिका अश्क ने दो खंडों में उपन्यास को लिखा है। एक खंड चार सौ पन्ने का है। उसे प्रकाशित कराने की कवायद चल रही है।
उपेंद्रनाथ अश्क
14 दिसंबर 1910 जन्म जालंधर
19 जनवरी 1996 मृत्यु प्रयागराज
साहित्यकारों से आत्मीय रिश्तों को शब्दों में उकेरा गया है
'अश्क जी का कुनबा' में उनकी तीनों पत्नियां क्रमश: शीला (दो साल का साथ), माया (कुछ माह का साथ) और कौशल्या (आजीवन लगभग 50 साल का साथ) से जुड़ी स्मृतियां हैं। वहीं साहित्यकारों से उनके आत्मीय रिश्तों, संवाद व गतिविधियों को शब्दों के जरिए उकेरा गया है। भूमिका बताती हैं कि कौशल्या माता ने अपने रिफ्यूजी फंड से अपने इकलौते पुत्र के नाम से 'नीलाभ-प्रकाशन' खोला। पिताजी (उपेंद्रनाथ) के अलावा मंटो, बेदी, चुगताई, कृशन चंदर, भारती, पंत, निराला, महादेवी, कमलेश्वर, मोहन राकेश जैसे दिग्गजों रचनाकारों की रचनाओं को प्रकाशित प्रकाशित किया।
प्रेमचंद की प्रेरणा से किया हिंदी लेखन : समाचालोचक रविनंदन सिंह
समालोचक रविनंदन सिंह के अनुसार पंजाब के जालंधर में 14 दिसंबर 1910 को जन्में उपेंद्रनाथ 'अश्क' एक आर्य स्कूल में पांचवी कक्षा में पढ़ते समय लाहौर से निकलने वाली पत्रिका 'आर्य भजन पुष्पांजलि' की प्रेरणा से भजन की तुकबंदी करने लगे। आठवीं कक्षा में उर्दू गजल की ओर मुड़े और अपना उपनाम 'अश्क' रख लिया। आजर जालंधरी को उस्ताद बनाकर गजल कहने लगे। हाईस्कूल से उर्दू कहानी की ओर मुड़े और पहली कहानी 'याद है वो दिन' नाम से लिखी। यह कहानी लाहौर के साप्ताहिक समाचार पत्र 'गुरु घंटाल' में छपी। दूसरी कहानी लाहौर की ही पत्रिका 'प्रताप' में छपी। यहीं से अश्क पूरी तरह कथा-लेखन को समर्पित हो गए। मुंशी प्रेमचंद व हरिकृष्ण प्रेमी की प्रेरणा से अश्क 1936 में हिंदी में लिखने लगे। अश्क की पहली हिंदी कहानी खंडवा से माखनलाल चतुर्वेदी के संपादन में प्रकाशित होने वाली पत्रिका 'कर्मवीर' में छपी।
साहित्यकार संसद में ली शरण
वरिष्ठ कथाकार डा. कीर्ति कुमार सिंह बताते हैं कि उपेंद्रनाथ अश्क 1948 में पत्नी व तीन वर्ष के बेटे नीलाभ के साथ प्रयागराज (पुराना नाम इलाहाबाद) आ गए। यहां महादेवी द्वारा रसूलाबाद में स्थापित साहित्यकार संसद में शरण लिया। एक विवाद के कारण तीन महीने बाद ही रसूलाबाद में ही किराए के मकान में रहने लगे। वहीं उपन्यास 'गर्म रख' लिखना शुरू किया। फिर 'नीलाभ प्रकाशन' स्थापित किया।

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