Ramlila 2022: रामलीला देख सम्राट अकबर की आंखें भी छलछला गई थीं, रामलीला से जुड़े अनछुए पहलू
Ramlila 2022 श्रीपथरचट्टी की रामलीला का पुराना इतिहास है। बताते हैं कि 16वीं शताब्दी में इसे शुरू किया गया था। कहा तो यहां तक जाता है कि मुगल शासक अकबर भी रामलीला देखते थे। एक बार सीता विदाई का मार्मिक मंचन देख अकबर की आंखें नम हो उठी थीं।

प्रयागराज, जेएनएन। प्रयागराज की रामलीला ऐतिहासिक और भव्य है। अपने आप में इतिहास भी समेटे है। रामलीला की भव्यता के सभी कायल थे। मुगलकाल से लेकर अंग्रेजों के शासन काल में भी रामलीला का मंचन होता था। अकबर की आंखाें में आंसू आने का जिक्र आइना-ए-अकबरी में है। अंग्रेजों के शासनकाल में भी रामलीला का यहां मंचन होता था। प्रयागराज की रामलीला के कुछ अनछुए पहलू इस खबर के माध्यम से प्रस्तुत है।
पथरचट्टी की रामलीला : श्रीपथरचट्टी की रामलीला का पुराना इतिहास है। बताते हैं कि 16वीं शताब्दी में इसे शुरू किया गया था। कमौरीनाथ महादेव मंदिर हीवेट रोड के निकट स्थित मैदान में यह रामलीला पूर्व में होती थी। कहा तो यहां तक जाता है कि मुगल शासक अकबर भी रामलीला के शौकीन था। वे रामलीला का मंचन देखने जाते थे। कहते हैं कि एक बार सीता विदाई का मार्मिक मंचन देख अकबर की आंखें नम हो उठी थीं। कमेटी से जुड़े लोग बताते हैं कि इसका जिक्र आइना-ए-अकबरी में है। इसके बाद 1837 में शहर के उस स्थान पर रामलीला शुरू हुई, आसपास पत्थर थे। तभी से इसका नाम पथरचट्टी रामलीला पड़ गया। समय के साथ हाईटेक युग में रामलीला कमेटी ने अब भव्य तरीके से आयोजन शुरू किया।
कटरा रामलीला कमेटी : प्रयागराज की प्राचीन रामलीला में से एक कटरा इलाके की भी है। श्रीकटरा रामलीला कमेटी की रामलीला में प्राचीनता के साथ आधुनिक पुट भी दिया गया है। यहां रावण को आदर से देखा जाता है। पितृपक्ष की एकादशी के दिन यहां रावण की शोभायात्रा निकलती है। कमेटी से जुड़े लोग बताते हैं कि 1857 में भारद्वाज आश्रम पर रहने वाले नाथ सम्प्रदाय के श्रृंगारिया (श्रृंगार करने वाले) समुदाय के लोगों ने रामलीला की शुरूआत की। राम, लक्ष्मण व अन्य रामायण पात्रों को श्रृंगारिया परिवार के लोग कंधे पर बैठाकर रामलीला मैदान तक ले जाते थे। 1924 में अंग्रेजी हुकूमत ने रामलीला के मंचन पर रोक लगाई। 1930 में एक बार फिर रामलीला शुरू हुई।
पजावा रामलीला : प्राचीन रामलीला के क्रम में प्रयागराज में पजावा की रामलीला है। महंत बाबा हाथीराम पजावा रामलीला कमेटी की रामलीला 1801 से शुरू होना बताया जाता है। पहले शहर के शाहगंज स्थित राम मंदिर के तत्कालीन महंत बाबा हाथीराम ने रामलीला की शुरूआत की थी। वह मंदिर से राम, लक्ष्मण और हनुमान को कंधे पर लेकर अतरसुइया के रामलीला मैदान तक जाते थे। उनके निधन के बाद रामलीला कमेटी का गठन किया गया था।
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