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    Independence Day: आजाद से पुल‍िस मुठभेड़ का गवाह है 'रजिस्टर नंबर-8', ब्रिटिश अफसरों के इशारे पर हुआ था ये खेल

    By Jagran NewsEdited By: Vinay Saxena
    Updated: Mon, 14 Aug 2023 08:23 PM (IST)

    देश 77वां स्वतंत्रता दिवस मना रहा है। इस मौके पर देश की आजादी के लिए हंसते-हंसते अपने प्राण न्यौछावर करने वालों के बलिदान को भुलाया नहीं जा सकता है। अमर बलिदानी चंद्रशेखर आजाद का शौर्य अपनी माटी के प्रति उनके सीने में धधकती ज्वाला अंग्रेजों को अखरती थी। कर्नलगंज थाने के अभिलेखागार में रखा रजिस्टर नंबर आठ इस बात का गवाह है।

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    27 फरवरी 1931 को कंपनी बाग (आजाद पार्क) में हुई घटना के बाद कर्नलगंज थाने में ल‍िखा गया था मुकदमा।

    प्रयागराज, जागरण संवाददाता। अमर बलिदानी चंद्रशेखर आजाद का शौर्य, अपनी माटी के प्रति उनके सीने में धधकती ज्वाला अंग्रेजों को अखरती थी। कर्नलगंज थाने के अभिलेखागार में रखा रजिस्टर नंबर आठ, इस बात का गवाह है क्योंकि इसमें जो लिखापढ़ी हुई थी उसमें आजाद को आईपीसी (भारतीय दंड संहिता) की धारा 307 यानी हत्या के प्रयास का आरोपित बना दिया गया।

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    आजाद को नामजद करते हुए बनाया गया था प्रत‍िवादी

    27 फरवरी 1931 को कंपनी बाग (अब आजाद पार्क) में हुई घटना के बाद तत्कालीन अफसरों के इशारे पर कर्नलगंज थाने में मुकदमा लिखा गया था, जो फारसी भाषा में है। जो अभिलेख पुलिस रिकॉर्ड में रजिस्टर-आठ के नाम से है, ब्रिटिश शासन के दौरान वह ग्रामीण अपराध पुस्तिका होती थी। इसमें चंद्रशेखर आजाद को नामजद करते हुए कुछ अज्ञात लोगों को प्रतिवादी बनाया गया है। इस रजिस्टर के क्रम संख्या एक में कर्नलगंज निवासी यूरोपियन साहबान और बैरिस्टर का उल्लेख है, जबकि दूसरे क्रम में प्रतिवादियों का आपराधिक इतिहास लिखा गया है।

    हमला कब और क‍िस पर क‍िया गया, नहीं क‍िया गया स्‍पष्‍ट

    लिखापढ़ी में कुछ खेल भी हुआ क्योंकि कर्नलगंज तब सिविल लाइंस का मौजा हुआ करता था, जबकि मुकदमा लिखा गया ग्राम अपराध पुस्तिका में। इसमें यह स्पष्ट नहीं किया गया कि मुकदमे का वादी कौन है, हमला कब और किस पर किया गया।

    कभी नष्‍ट नहीं क‍िया जाता रज‍िस्‍टर नंबर-आठ

    कर्नलगंज थाने के इंस्पेक्टर ब्रजेश सिंह का कहना है कि रजिस्टर नंबर आठ ऐसा अभिलेखीय प्रमाण है, जिसे कभी नष्ट नहीं किया जाता। यह व्यवस्था पूरे प्रदेश की है। इसमें चंद्रशेखर आजाद से पुलिस मुठभेड़ की लिखापढ़ी है। बताया कि समय-समय पर इसके पन्ने पलटे जाते हैं ताकि उसका सुरक्षित इतिहास मूलरूप में ही रखा जा सके।