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प्रयागराज के कवि श्लेष गौतम के नया काव्य संग्रह 'नई सदी को पढ़ो कबीरा' पर परिचर्चा

डॉक्‍टर कुमार विश्वास ने कहा है कि यह कविता कबीर से लेकर कैलाश गौतम की जनवादी परंपरा और मूल्य बोध की कविता है। वस्तुतः जन चेतना को आगे ले जाने वाली कविता के वंश परंपरा के कर्तव्य बोध की कविता है नई सदी को पढ़ो कबीरा।

By Brijesh SrivastavaEdited By: Published: Fri, 19 Feb 2021 02:30 PM (IST)Updated: Fri, 19 Feb 2021 02:30 PM (IST)
कवि श्‍लेष गौतम की पुस्‍तक 'नई सदी को पढ़ो कबीरा' पर परिचर्चा में कवियों ने विचार दिए हैं।

प्रयागराज, जेएनएन। प्रयागराज के कवि डॉक्‍टर श्लेष गौतम की पुस्तक 'नई सदी को पढ़ो कबीरा' पर परिचर्चा हुई। इस पुस्‍तक में सुप्रसिद्ध साहित्यकार ममता कालिया, सुविख्यात कवि प्रोफेसर अशोक चक्रधर, वरिष्ठ नवगीतकार यश मालवीय, साहित्यकार डॉक्‍टर बुद्धिनाथ मिश्रा ने भूमिकाएं लिखी हैं।

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कुमार विश्वास ने कहा-आज के समय की एक ज़रूरी कविता है 'नई सदी को पढ़ो कबीरा'

डॉक्‍टर कुमार विश्वास ने कवि श्लेष गौतम के काव्य संग्रह 'नई सदी को पढ़ो कबीरा' की कविताओं पर लिखा-आज के समय की एक ज़रूरी कविता है 'नई सदी को पढ़ो कबीरा'। यह कविता कबीर से लेकर कैलाश गौतम की जनवादी परंपरा और मूल्य बोध की कविता है। वस्तुतः जन चेतना को आगे ले जाने वाली कविता के वंश परंपरा के कर्तव्य बोध की कविता है 'नई सदी को पढ़ो कबीरा'। इस काव्य संग्रह की शीर्षक कविता 'नई सदी को पढ़ो कबीरा' के पहले परिच्क्षेद(पैराग्राफ) को पूरा पढ़ते हुए पंक्तियों में प्रयुक्त तथ्य,सत्य और व्यंग्य बोध पर अपनी सहमति व्यक्त करते हैं।

कवि कैलाश गौतम की परंपरा को याद दिलाने वाली कविताओं का संग्रह : नीलोत्‍पल

लेखक एवं कवि नीलोत्पल मृणाल ने 'नई सदी को पढ़ो कबीरा' के संदर्भ में कहा कि-इस काव्य संग्रह को ले करके मैंने मन में बहुत रोमांच है। जहां तक मेरी समझ है यह काव्य संग्रह मेरे भी प्रिय जन कवि कैलाश गौतम की परंपरा को याद दिलाने वाली कविताओं का संग्रह है। साहित्यकार ममता कालिया ने संक्षिप्त भूमिका में लिखा है कि- श्लेष मंच पर स्थापित हो चुके हैं और उनका काव्य संग्रह 'नई सदी को पढ़ो कबीरा' कैलाश गौतम की जनवादी परंपरा को आगे ले जाने वाला है। उनकी कविताएं लोक की ओर मुंह करके खड़ी हैं सामाजिक जन चेतना के भाव के साथ। श्लेष जनमानस में अपनी पैठ बना रहे हैं परंतु आलोचना के निष्कर्ष पर अभी कसा जाना शेष है।

कवि पद्मश्री अशोक चक्रधर ने यह लिखा

कवि पद्मश्री अशोक चक्रधर ने इस पुस्तक की भूमिका में लिखा है कि- श्लेष गौतम की यह पुस्तक अपने अंदर के कबीर को खोजती है, अपने समय के साथ मुठभेड़ करते हुए सच के साथ खड़ी रहती है श्लेष गौतम की कविताएं।

नवगीतकार यश मालवीय कहते हैं कि- श्लेष गौतम को साहित्य की कसौटी की गहरी समझ है। वह अपने पुरखे कवियों को अपने रचना संसार में प्रकाश स्तंभ की तरह स्थापित करते हैं। श्लेष के पास नवगीत की विलक्षण भाषा है,वह निराला के नवगति को अपने नवगीतों से जोड़ते हैं।

सुप्रसिद्ध साहित्यकार डॉ बुद्धिनाथ मिश्र कहते हैं

साहित्यकार डॉ बुद्धिनाथ मिश्र ने इस संग्रह के संदर्भ में अपनी भूमिका में कहा है लिखा है कि, संस्कारों परंपराओं के साथ-साथ सच के साथ खड़ी कविताएं हैं जो आज के समय को, विद्रूपताओं विडंबनाओं को आईना दिखाने का काम करती हैं पूरे साहस के साथ।


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