प्रखर वक्ता थे पं. प्रभात शास्त्री
इलाहाबाद : ज्ञान-गांगीय संस्कृति-परंपरावाले घर में जन्म लेने के कारण बालक प्रभात की आरंभिक शिक्षा 'त्रिवेणी संस्कृत पाठशाला' दारागंज में तथा उच्चशिक्षा 'ज्ञानोपदेश संस्कृत महाविद्यालय' में सम्पन्न हुई थी। जहां से उन्होंने प्रथम श्रेणी में 'साहित्याचार्य' की उपाधि अर्जित की थी। 'सम्पूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय' वाराणसी से 'अध्यात्म रामायण' पर 'वाचस्पति' (डी.लिट्) की उपाधि प्राप्त करने वाले प्रभात मिश्र के मनोमस्तिष्क में छात्र जीवन से ही संस्कृत काव्य रचना के बीज ने अंकुरण का श्रेय प्राप्त कर लिया था। जहां एक ओर वे संस्कृत भाषा के उदात्त कवि के रूप में विश्रुत हो चुके थे। वहीं प्रखर वक्ता के रूप में संस्कृत-साहित्यकाश में उत्तुंग शिखर पर समासीन थे।
'अमरभारतीय', संस्कृतम्, सुप्रभातम् ,ज्योतिष्मती , सूर्याेदय आदि पत्रिकाओं में उनकी संस्कृत कविताओं का प्रकाशन 1938 से 1948 ई. तक अनवरत प्राथमिकता के साथ होता रहा। कालान्तर में उन्होंने संस्कृत भाषा साहित्य के उन्नयन के लिए प्राण-प्रण से अपना योगदान किया था। संपादन और अनुवाद-कला में वे दक्ष थे। 'राग-काव्य-विमर्श', 'राम-गीत गोविन्दम,' 'गीत-गिरीशम्,' 'संगीत रघुनन्दनम्', 'कृष्ण-गीतम्', 'लिंगानुशासनम्' आदि ग्रन्थ उनके द्वारा सम्पादित और अनूदित है। उन्होंने अपनी अन्वेषिणी दृष्टि का ज्वलन्त साक्ष्य उपनयस्त किया था। संस्कृत-साहित्य में उनके लेखन को 'नवलेखन' की संज्ञा दी जा सकती है। पं. प्रभात शास्त्री की प्रभविष्णुता का ही प्रताप था कि 'मानव संसाधन विकास मन्त्रालय' ने उन्हें 'शास्त्र चूड़ामणि अध्येतावृत्ति' तथा तत्कालीन राष्ट्रपति डा. शंकरदयाल शर्मा ने 'राष्ट्र सम्मान' से समलंकृत किया था।
संस्कृत साहित्य के साथ-साथ पं. प्रभात शास्त्री की अभिरुचि हिंदी के प्रति अतीव विकासोन्मुखी रही थी। 1910 ई0 में 'हिंदी साहित्य सम्मेलन' की स्थापना के बाद हिंदी के महाप्राण राजर्षि पुरुषोत्तमदास टंडन के सान्निध्य में आकर पं.प्रभात शास्त्री सक्रिय रूप में सम्मेलन-कार्यो से सम्पृक्त हो चुके थे। वे 1948 में सम्मेलन के प्रचारमन्त्री बने थे। तब उन्होंने देश के कई प्रान्तों में सम्मेलन की शाखा-प्रशाखाओं के विकास करने तथा प्रान्तीय सम्मेलनों के आयोजन में अपना श्लाघ्य योगदान किया था। निष्ठा और सांघटनिक कौशल के बल पर वे सम्मेलन के प्रधानमंत्री पद पर आजीवन अधिष्ठित रहे।
प्रस्तुति : डा. पृथ्वीनाथ पांडेय।
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