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    Ramlila 2022 : बोले अलीगढ़ के लोग - रामलीला देखने का आनंद पंडाल में है टीवी पर नहीं

    By Jagran NewsEdited By: Anil Kushwaha
    Updated: Tue, 04 Oct 2022 10:33 AM (IST)

    Ramlila 2022 रामलीला देखने का जो आनंद पंडाल में है वो टीवी पर नहीं है। ये कहना है 62 वर्षीय जयप्रकाश शर्मा का। युवावस्‍था में वे अकेले जाते थे और आज अपने नाती के साथ रामलीला देखने जाते हैं।

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    रामलीला देखने के आज भी लोगों की हुजूम उमड़ रहा है।

    अलीगढ़, जागरण संवाददाता। Ramlila 2022 : महगौरा के जयप्रकाश शर्मा का होश संभालने के साथ शुरू हुआ रामलीला देखने का सिलसिला 62 की उम्र होने पर भी नहीं टूटा है। अंतर बस इतना कि बचपन में दादी -दादा के साथ रामलीला देखने जाते थे। युवावस्था में अकेले और अब नाती को लेकर। वे नाती को कभी मंच की सजावट समझाते हैं, तो कभी दरबार और राजमहल के बारे में बताते हैं। राम का चरित्र और आदर्श बताते हुए मर्यादा की बातें सिखाते हैं। इसी को संस्कार मानते हैं। कहते हैं, रामलीला मंचन मनोरंजन का साधन तो बिल्कुल नहीं है। यह साधना है। संस्कार हैं, जो नई पीढ़ी को दिए जाते हैं। यही सिलसिला तो हमारी मजबूत संस्कृति है। इसीलिए Ramlila Maidan में भीड़ है। वह भी उस दौर में जब internet media पर घर बैठे सब देख सकते हैं। जो बात पंडाल में देखने में है, वह टीवी या मोबाइल पर कहां?

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    भक्‍ति में डूबा पंडाल

    यह कहकर वे फिर रामलीला की चौपाइयों में खो गए। नाती भी सुर मिलाने लगा। पूरा पंडाल भक्ति में डूबा था। कभी जयश्री राम के जयकारे लगते तो कभी तालियां गूंजतीं। ऐसा नजारा दो साल बाद मिला है। कोरोना संक्रमण के चलते आयोजन बंद थे। इससे उबरने के बाद जिंदगी पटरी पर रफ्तार पकड़ रही है। एक बड़े संकट के समय से गुजरने के बाद लोगों में आस्था भी बढ़ी है। जिलेभर में रामलीला के आयोजन के प्रति दर्शकों में उत्साह दिखाई दे रहा है। यह बात अलग है कि रामलीला के आयोजन में आधुनिकता का समावेश हुआ है। स्थानीय कलाकारों के स्थान पर पेशेवर कलाकार के अलावा उनकी वेशभूषा से लेकर साउंड सिस्टम भी बदला हुआ दिखता है। खैर में अपनी बेटी के साथ रामलीला देखने आए पवन गौतम व नत्थी लाल का कहना था कि मंचन के दौरान कलाकारों की प्रतिभा दिखती है। फिर, कोई साधना करनी हो तो उसके लिए माहौल जरूरी होता है। एक घंटे बैठकर श्रीराम की भक्ति में रहने का यह बड़ा मौका होता है।

    बिछौना के स्थान पर फर्श या कुर्सियां

    खैर के ओमप्रकाश कुशवाहा ने बताया कि पहले रामलीला रात आठ बजे से शुरू होकर रात दो बजे तक चलती थी। उस समय बैठने के लिए बिछौना भी ले जाते थे। जगह घेरने के लिए होड़ मची रहती थी। बच्चे रामलीला शुरू होने से पहले ही अपनी चादर बिछा देते थे। अब रामलीला मैदान में बैठने के लिए चादर का स्थान मेला कमेटी द्वारा फर्स व कालीन व कुर्सियों ने ले लिया है। अब भी रामलीला देखने पर सुख की अनुभूति होती है।

    इनका कहना है

    रामलीला शुरू होती है तब से रोजाना देखने आता हूं। जीवन को नया आयाम नया मोड़ रामलीला ने दिया है। आज जी की कृपा से प्राइमरी स्कूल में अध्यापक हूं।

    - गौरव वशिष्ठ, खैर

    रामलीला में जीवन का सार है। इसे पंडाल में देखने में जो आनंद है, वह टीवी -मोबाइल में नहीं। रामायण की चौपाई सुनने और साथ गाने का मौका मिलता है।

    - देवी प्रसाद शर्मा, महगौरा

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    जब से होश संभाला है। रामलीला होती देखी है। रामलीला से बच्चों को अच्छी सीख मिलती है। परिवार साथ देखते है तो और भी अच्छा लगता है। सभी को देखनी चाहिए।

    - प्रकाश चंद्र गुप्ता, जलाली

    हिंदू-मुस्लिम सभी एकजुट होकर रामलीला देखते हैं। इससे समाज में अच्छा संदेश आता है। हमको आज भी टीवी सीरियल से अच्छा रामलीला को देखना लगता है।

    - गोकुल गोस्वामी, जलाली

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