Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    अफसोस, कोडिय़ागंज की गलियां भी पूछती हैं...जैनेंद्र कुमार कौन? Aligarh News

    By Sandeep kumar SaxenaEdited By:
    Updated: Sat, 02 Jan 2021 10:19 AM (IST)

    जैनेंद्र कुमार..? कौन जैनेंद्र? क्या काम करते हैं? ये जवाब कौडिय़ागंज में नगर पंचायत दफ्तर के पास से गुजर रहे कुछ युवाओं ने हिंदी के विख्यात साहित्यकार व उपन्यासकार जैनेंद्र कुमार के बारे में पूछने पर दिए। अपनी ही माटी के लाल से अनजान हैं।

    Hero Image
    युवाओं ने हिंदी के विख्यात साहित्यकार व उपन्यासकार जैनेंद्र कुमार के बारे में पूछने पर दिए।

    अलीगढ़, जेएनएन। जैनेंद्र कुमार..? कौन जैनेंद्र? क्या काम करते हैं? ये जवाब कौडिय़ागंज में नगर पंचायत दफ्तर के पास से गुजर रहे कुछ युवाओं ने हिंदी के विख्यात साहित्यकार व उपन्यासकार जैनेंद्र कुमार के बारे में पूछने पर दिए। किसी को पता नहीं था कि वे अपनी ही माटी के लाल से अनजान हैं। कुसूर उनका भी नहीं था। जैनेंद्र? कुमार..? जिन्होंने  हिंदी  को प्रयोगशीलता का पाठ पढ़ाया। उसे नई दशा-दिशा दी। भारत सरकार ने जिन्हें पदमभूषण की उपाधि से सम्मानित किया। उनके उपान्यास त्यागपत्र पर फिल्म भी बनी। ऐसी शख्सियत के बारे में बताने के लिए कभी कोई पहल हुई ही नहीं। यही वजह है कि जनपद के ही लोग  साहित्य जगत में उनके योगदान तो छोडि़ए, नाम तक से अपरिचित हैं। आज  हिंदी  के सच्चे साधक जैनेंद्र? का जन्मदिवस है। तो आइए, उनके बारे में कुछ जानें।

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    जैनेंद्र यानी आनंदी लाल

    वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. प्रेम कुमार ने बताया कि  जैनेंद्र कौडिय़ागंज के मोहल्ला छिपैटी में दो जनवरी 1905 को प्यारेलाल व रामदेवी बाई के घर पैदा हुए। उस दिन सकट चतुर्थी थी, सो बच्चे का नाम मिला सकटुआ। बाद में पिता ने चेहरे की चमक और सुंदरता पर रीझकर आनंदीलाल नाम दिया। दो वर्ष के हुएए तभी पिता चल बसे। मां उन्हें लेकर मामा के पास चली गईं। हस्तिनापुर के गुरुकुल में प्रारंभिक शिक्षा हुई। 1919 में पंजाब से मैट्रिक पास किया। उच्च शिक्षा काशी ङ्क्षहदू विश्वविद्यालय में हुई। 1921 में कॉलेज की पढ़ाई छोड़कर गांधीजी के असहयोग आंदोलन में शामिल हो गए। पढ़ाई तो छूटी ही कारावास भी भुगतना पड़ा। पत्रकारिता करनी चाही। व्यापार में हाथ आजमायाए लेकिन सब व्यर्थ। 1927 में भगवती देवी के साथ विवाह हो गया। 

    थामी लेखनी, मिली नई दिशा  

    डॉण् प्रेम कुमार के अनुसार दुख और निराशा के दिनों में जैनेंद्र ने लेखनी थामी। पहली कहानी जन्मी खेल। 1927 में आए पहले कहानी संग्रह फांसी से मिली ख्याति ने तय करा दिया कि उन्हें तो लेखक ही बनना है। उसके बाद वातायनए नीलम देश की राजकन्या, दो चिडिय़ा, पाजेब, जयसंधि आदि संग्रहों में उनकी 300 से अधिक कहानियां आईं। 1927 में पहले उपन्यास परख के प्रकाशन में ख्याति और चर्चाओं को और अधिक बढ़ाया फैलाया। उसके बाद सुनीताए कल्याणी, त्यागपत्र, विवर्त, सुखदा, अनाम स्वामी, मुक्तिबोध, दशार्क आदि एक दर्जन से अधिक उपन्यास आए। कथा साहित्य के अलावा निबंध, आलोचना, संस्मरण, गद्य काव्य, बाल साहित्य, पत्रकारिता विषयक जैनेंद्र का लेखन भी अत्यंत समा²त हुआ। उनका निबंध लेखन अपेक्षाकृत अधिक बौद्धिक, विचारक, दार्शनिक व नागरिक दायित्वों के प्रति सजग दिखता है। इस लेखन पर उन पर गांधी, फ्रायड, मॉक्र्स व बुद्ध का प्रभाव भी स्पष्ट दिखता है। 

    मिले सम्मान और पुरस्कार 

    जैनेंद्र कुमार को उनके लेखन के लिए 1966 में साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला। 1971 में भारत सरकार ने पदमभूषण सम्मान से नवाजा। फिर, 1974 में  साहित्य अकादमी फेलोशिप मिली। इसके अलावा हस्तीमल डालमिया पुरस्कार (नई दिल्लीद), उत्तर प्रदेश राज्य सरकार (समय और हम,1970),उत्तर प्रदेश सरकार का शिखर सम्मान भारत-भारती, मानद डी लिट्् उपाधि (दिल्ली विश्वविद्यालय 1973, आगरा विश्वविद्यालय, 1974) हिन्दी साहित्य सम्मेलन, प्रयाग ने साहित्य वाचस्पति (1973), विद्या वाचस्पति की उपाधि ( गुरुकुल कांगड़ी) साहित्य अकादमी की प्राथमिक सदस्यता, प्रथम राष्ट्रीय यूनेस्को की सदस्यता, भारतीय लेखक परिषद की अध्यक्षता, दिल्ली प्रादेशिक हिंदी साहित्य सम्मेलन का सभापतित्व समेत तमाम सम्मान जैनेंद्र को मिले।  24 दिसंबर 1988 को उनका निधन हो गया। 

    डीएमस कॉलेज में हुआ भाषण 

    यह सौभाग्य ही रहा कि जैनेंद्र कुमार अंतिम दिनों में अलीगढ़ भी आए। यहां धर्म समाज महाविद्यालय के पुस्तकालय भवन में उनका व्याख्यान हुआ था। डेढ़ घंटे से अधिक तक वे यहां रहे और फिर लौट गए, कभी न लौटने के लिए। ऐसे महान व्यक्तित्व का नाम तो अलीगढ़ और कौडिय़ागंज के लोगों को पता होना ही चाहिए।