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    बंदीगृह में भी पृथ्वीराज सिंह चौहान ने नहीं खोया था साहस

    By Sandeep Kumar SaxenaEdited By:
    Updated: Fri, 27 May 2022 07:13 PM (IST)

    दिल्ली के शासक पृथ्वीराज के दादा अंगमराज ने पृथ्वीराज चौहान के साहस और बहादुरी देखकर उन्हें दिल्ली के सिंहासन का उत्तराधिकारी घोषित कर दिया था। पृथ्वीराज का संपूर्ण जीवन वीरता साहस शौर्यवान और निरंतर महत्वपूर्ण कार्य करने की एक श्रृंखला में बँधा था।

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    पृथ्वीराज का संपूर्ण जीवन वीरता, साहस, शौर्यवान में बंधा था।

    अलीगढ़, जागरण संवाददाता। इगलास परोपकार सामाजिक सेवा संस्था द्वारा गांव तोछीगढ़ में दिल्ली के राज-सिंहासन पर बैठने वाले चौहान राजवंश के अंतिम शासक वीर योद्धा पृथ्वीराज चौहान की जयंती मनाई गई|

    इस अवसर पर ग्रामीण युवाओं ने पृथ्वीराज चौहान के छायाचित्र पर पुष्प अर्पित कर उनको श्रद्धांजलि दी।

    संस्था के अध्यछ जतन चौधरी ने कहा कि पृथ्वीराज चौहान बचपन से सैन्य कौशल सीखने में बहुत ही निपुण थे। पृथ्वीराज चौहान में आवाज के आधार पर निशाना लगाने की कुशलता बचपन से ही थी| पृथ्वीराज ने 1179 में पिता के युद्ध में शहीद होने के बाद मात्र 13 वर्ष की उम्र में ही अजमेर के राजगढ़ की गद्दी को संभाला था|

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    दिल्ली के शासक पृथ्वीराज के दादा अंगमराज ने पृथ्वीराज चौहान के साहस और बहादुरी देखकर उन्हें दिल्ली के सिंहासन का उत्तराधिकारी घोषित कर दिया था। पृथ्वीराज का संपूर्ण जीवन वीरता, साहस, शौर्यवान और निरंतर महत्वपूर्ण कार्य करने की एक श्रृंखला में बँधा था।

    बंदीगृह में भी नहीं खाेया था साहस

    पृथ्वीराज चौहान जिस समय अपने साम्राज्य का विस्तार कर रहे थे, उसी समय 1191 में मोहम्मद गोरी ने भारत पर आक्रमण कर दिया था और तराइन के पहले युद्ध में गोरी पराजित हो गया था। मोहम्मद गोरी ने तराइन के द्वतीय युद्ध में पृथ्वीराज चौहान को पराजित करके बंदी बना लिया। बंदीगृह में भी पृथ्वीराज चौहान ने अपना साहस नहीं खोया, उन्होंने अपने दरबारी कवि और मित्र चंदबरदाई की सहायता से मुहम्मद गोरी को मारने की योजना बनाई। पृथ्वीराज चौहान ने मुहम्मद गोरी के द्वारा आयोजित तीरंदाजी प्रतियोगिता के दौरान अपने कौशल को प्रदर्शित किया और जब मोहम्मद गोरी ने उनकी प्रशंसा की तब उन्होंने उसकी आवाज सुनकर शब्दभेदी बाण चला दिया और मोहम्मद गोरी को उसी समय मार गिराया|

    शत्रुओं के हाथों मरने से बचने के लिए पृथ्वीराज चौहान और उनके मित्र चंदबरदाई ने एक दूसरे को वहीं मार दिया और इतिहास में सदैव के लिए अमर हो गए। चंदबरदाई ने अपने महाकाव्य पृथ्वीराज रासो में पृथ्वीराज चौहान की बहादुरी, साहस, देशभक्ति और सिद्धांतों का बखूबी चित्रण कर संकलित किया है। भारत वर्ष के अंतिम क्षत्रिय सम्राट, सनातम धर्म रक्षक, स्वाभिमान के प्रतीक, भारत मां के वीर पुत्र, क्षत्रिय कुल के गौरव चौहान की कृति आज भी जिंदा हैं।

    चार बाँस चौबीस गज अंगुल अष्ट प्रमाण।

    ता ऊपर सुल्तान है मत चूको चौहान।

    हरवीर सिंह ने कहा कि संस्था का उद्देष्य ग्रामीण क्षेत्र के बच्चों को देश के महापुरुषों के जीवन से अवगत कराना हैं, जिससे विद्यार्थी महापुरुषों के जीवन से प्रेरणा लेकर अपने लक्ष्य को प्राप्त करें और अपने सिद्धांतों पर अडिग रहें।इस अवसर पर प्रदीप उपाध्याय, प्रमोद शर्मा, अज़हर अली, धर्मेंद्र सिंह, अमित ठैनुआं, गौरव ठैनुआं, अमन, गुड्डू, अर्पण, लोकेश, रामप्रकाश ठैनुआं, सौनू वार्ष्णेय आदि मौजूद रहे|