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    कक्षा चार की किताब 'संतूर' में पढ़ाई जाएगी संगीतकार रवींद्र जैन की प्रेरणादायक कहानी, अलीगढ़ में जन्मे थे संगीतकार

    Updated: Tue, 30 Dec 2025 08:52 AM (IST)

    प्रसिद्ध संगीतकार रवींद्र जैन की प्रेरणादायक कहानी अब कक्षा चार की एनसीईआरटी किताब 'संतूर' में पढ़ाई जाएगी। अलीगढ़ में जन्मे नेत्रहीन रवींद्र जैन ने ह ...और पढ़ें

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    संगीतकार रवींद्र जैन

    जागरण संवाददाता, अलीगढ़। हिंदी सिनेमा के प्रसिद्ध संगीतकार, गायक और गीतकार पद्मश्री रवींद्र जैन की प्रेरणादायक कहानी अब परिषदीय स्कूलों में कक्षा चार अंग्रेजी की किताब ‘संतूर’ में पढ़ाई जाएगी। एनसीईआरटी द्वारा पाठ्यक्रम में किए गए बदलावों के तहत यह निर्णय लिया गया है कि बच्चों को कला, संस्कृति और इतिहास के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान देने वाली हस्तियों से परिचित कराया जाए।

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    रवींद्र जैन का जीवन और उनका संघर्ष बच्चों के लिए एक प्रेरणा बनेगा। अगले शैक्षिक सत्र में यह पुस्तक समस्त परिषदीय स्कूलों के बच्चों के हाथों में होगी। अलीगढ़ के लिए यह बेहद गौरव की बात, क्योंकि रवींद्र जैन यहीं पैदा हुए और यहीं पर संगीत की विधिवत प्रारंभिक शिक्षा लेकर देश-दुनिया में छाए।

    बचपन से ही नेत्र दिव्यांग होने के बावजूद हिंदी सिनेमा और टीवी जगत में बनाई पहचान

    रवींद्र जैन का जन्म 28 फरवरी 1944 को अलीगढ़ के कनवरी गंज में हुआ। उनके पिता, इंद्रमणि जैन, एक प्रसिद्ध आयुर्वेदाचार्य थे। रवींद्र जैन के परिवार में सात भाई-बहन थे। जन्म से नेत्र दिव्यांग होने के कारण पिता उनके भविष्य को लेकर चिंतित रहते थे। हालांकि, रवींद्र जैन ने इन मुश्किलों को अपनी ताकत बना लिया और खुद को साबित करने के लिए संगीत की साधना में जुट गए। संगीत में गहरी रुचि के चलते वह कोलकाता गए, जहां उन्हें संगीत का एक बेहतर माहौल मिला। 1969 में मुंबई पहुंचे और फिल्मी दुनिया में कदम रखा। इसके बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा और एक के बाद एक सफलताएं हासिल कीं।

    जीवन, संघर्ष और संगीत की दुनिया में योगदान एनसीईआरटी की किताब (संतूर) में


    रवींद्र जैन का संगीत और गायक के रूप में योगदान अनमोल है। उन्होंने न केवल फिल्मों के लिए संगीत रचनाएं कीं, बल्कि कई हिट गानों के गीत भी लिखे। उनकी रचनाओं में खासकर भक्ति संगीत, हिंदी फिल्मों के गीत और लोक संगीत के तत्व देखने को मिलते हैं। उनकी आवाज़ में एक अद्वितीय मिठास और भावनाओं की गहरी समझ थी, जो उनके गीतों को अमर बना देती है। संगीत के उदाहरण ‘रामायण’ (1987) और ‘महाभारत’ जैसे प्रसिद्ध धारावाहिकों के गाने हैं, जिनका प्रभाव आज भी लोगों के दिलों में बना हुआ है। रामानंद सागर के धारावाहिक ‘कृष्णा’ को भी संगीत और गीत दिए। श्री रामजी की सेना चली...,श्री कृष्ण गोपाल हरे मुरारी...,जय श्री कृष्णा...,उनके गीतों में भक्तिए प्रेम और दिव्यता का अद्भुत संतुलन था, जो लोगों को खूब भाया और घर-घर में पहुंच हो गई।

    मुंबई में था दिग्गजों का दबदबा, तब छाए रवींद्र जैन


    जब रवींद्र जैन मुंबई पहुंचे, उस समय संगीतकारों की दुनिया में एसडी बर्मन, सलिल चौधरी, कल्याणजी-आनंदजी, और लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल जैसे दिग्गजों का दबदबा था। फिर भी, रवींद्र जैन ने भारतीय शास्त्रीय और लोक संगीत की गहरी समझ को अपने संगीत में समाहित किया और उन पर आधारित मधुर गीतों के जरिए जल्द ही लोगों के दिलों में अपनी जगह बना ली। उनकी फिल्मी यात्रा की शुरुआत 1972 में ‘कांच और हीरा’ से हुई, लेकिन असली पहचान उन्हें राजश्री प्रोडक्शंस की फिल्म ‘सौदागर’ से मिली।

    इसके बाद, 1974 में ‘चोर मचाए शोर’ से उन्हें व्यावसायिक सफलता मिली। इसके साथ ही ‘गीत गाता चल’, तपस्या, चितचोर, ‘फकीरा’, ‘दुल्हन वही जो पिया मन भाए’, ‘सुनयना’, ‘आतिश’, ‘राम भरोसे’, ‘आंखों के झरोखे से’, ‘पति पत्नी और वो’, ‘इंसाफ का तराजू’, ‘नदिया के पार’, ‘राम तेरी गंगा मैली, ‘मरते दम तक’, ‘हिना‘ और ‘विवाह’ जैसी सुपरहिट फिल्मों के लिए संगीत दिए। ‘राम तेरी गंगा मैली’ के लिए उन्हें फिल्मफेयर अवार्ड भी मिला। नौ अक्टूबर 2015 को वे दुनिया छोड़ गए। मृत्यु से कुछ समय पूर्व पद्मश्री सम्मान से विभूषित किए गए। नवंबर 2014 में अंतिम बार अलीगढ़ आए। यहां संगीत अकादमी की स्थापना करना चाहते थे, अफसोस वह पूर्ण नहीं हो पाई।




    उनकी जीवनगाथा उनके संघर्ष, समर्पण और सफलता का एक जीवंत उदाहरण है। उनकी कहानी बच्चों को न केवल ज्ञान देगी, बल्कि प्रेरित भी करेगा कि अपने सपनों को साकार करने के लिए मेहनत करें और कभी हार न मानें। मेरा रवींद्र जैन से कई बार मिलना-जुलना हुआ, उनके घर पर रुका। उन्होंने लिखने-पढ़ने के लिए कोई लिपि नहीं सीखी, बस दिमाग में याद रखते थे। उनकी कहानी किताबों में पढ़ाई जाएगी, यह संगीत और अलीगढ़ के लिए बड़े गौरव की बात है। उन्हें कभी भुलाया नहीं जा सकता। - चंदन चटर्जी, संगीतज्ञ एवं पूर्व संगीत शिक्षक, अवंतिका फेज 2