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    Freedom Story : अंग्रेजों की तोप के गोले भी नहीं भेद पाए मिट्टी से बनी किले की दीवारों को

    By Anil KushwahaEdited By:
    Updated: Mon, 15 Aug 2022 12:41 PM (IST)

    Freedom Story अंग्रेजी शासन मे अंग्रेजों ने देशभर में किलों का निर्माण किया था। किले की दीवारें ऐसी हुआ करती थीं जिन्‍हें सैनिकों द्वारा गिराना तो दूर तोप के गोले भी उन्हें भेदने में नाकाम रहते थे। इन्‍हीं किलों में एक एएमयू का किला भी है।

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    अलीगढ़ के किले को उस समय तोप के गोले भी नहीं भेद पाए।

    अलीगढ़, जागरण संवाददाता। Freedom Story : अंग्रेजों से मोर्चा लेने के लिए मुगल बादशाहों और मराठों शासकों द्वारा अपने शासनकाल में देश के विभिन्न कोनों में किले बनाए। किले की दीवारें ऐसी हुआ करतीं थी उन्हें सैनिकों द्वारा गिराना तो दूर तोप के गोले भी नहीं भेद पाते थे।

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    एएमयू का किला : इन्हीं किलों में से अलीगढ़ का किला (AMU Fort) भी शामिल है। इसकी दीवार ईंट-पत्थरों की बजाय मिट्टी से तैयार की गई। उस समय तोप के गोले भी नहीं भेद पाए। फ्रांस के इंजीनियरों की मदद से मराठों द्वारा बनवाए गया यह किला glorious history की गवाह बना हुआ है। किले की दीवार ही ऐसी थीं कि जिन पर कब्जा कराने के लिए अंग्रेजों के पसीने छूट गए थे। अंग्रेजों ने मराठों पर जीत हासिल तो कर ली लेकिन पूरा गुस्सा किले पर उतारा। किले के अंदर के अधिकांश निर्माण को पूरी तरह जमींदोज कर दिया था।

    अंग्रेजों से मिला किला : Aligarh Muslim University (एएमयू) के संस्थापक सर सैयद अहमद को अंग्रेजों से यह किला मिला, जो आज एएमयू के संरक्षण में है। किले की कमान मीर सादत अली के हाथों में थी। मान्यता है कि अली और गढ़ (किला) को जोड़ते हुए शहर का नाम अलीगढ़ पड़ा। पहले शहर कोल के नाम से जाना जाता था। एएमयू ने किले में शानदार बाटेनिकल गार्डन बनाया है। जहां औषधीय पौधों पर शोध भी हो रहा है। किले से किसी बौना चोर की कहानी भी जोड़ी जाती है, हालांकि इतिहासकारों के पास इसका कोई सुबूत नहीं है।

    इतिहास : Eminent historian Prof. Irfan Habib के अनुसार 1524-25 के दौरान शासक इब्राहिम लोदी के कार्यकाल में किले की नींव रखी गई थी। उस समय किला का यह स्वरूप नहीं था। यह मुगलों की छोटी गढ़ी के रूप में जाना जाता था। मुगलों की सेना यहां ठहरा करती थी। मराठों की नजर इस किले पर थी। उन्होंने मुगलों को मात देकर इस किले पर कब्जा कर लिया।

    एएमयू के इतिहास के जानकार डा. राहत अबरार बताते हैं कि इस किले को मराठा शासक ने यूरोपीय स्थापत्य कला में गढ़ने के लिए 1759 में किले का निर्माण कराया। इसकी जिम्मेदारी प्रांस के कमांडर काउंट बोनोइट और कुलीयर पोरोन को दी गई थी। फ्रेंच कमांडेंट कुलीयर पेरोन एएमयू की बिल्डिंग में रहते थे। इस कारण पूरे इलाके को साहब बाग के नाम से भी जाना जाता था। इसके लिए फ्रांस के इंजीनियरों की भी मदद ली गई थी। किले के चारों ओर एेसी दीवारें बनाई गई कि कोई अंदर न जा सके। तोप के गोलों से बचाने के लिए मिट्टी की दीवार बनाई गई। यही इसकी मजबूती का कारण बनीं। मुख्य गेट के दोनों तरफ बीस से अधिक तोपें लगाई गईं थीं, जिसके निशान आज भी हैं। अंग्रेजों ने किले के अंदर का अधिकांश हिस्सा ध्वस्त कर दिया था लेकिन शस्त्रागार आज भी सुरक्षित है।

    ब्रिटिश अफसरों के नाम शिलालेख में दर्ज : इतिहासकारों के अनुसार चार सितंबर 1803 में ब्रिटिश जनरल लेक ने अलीगढ़ किले पर आक्रमण किया था। यह युद्ध कई दिन तक चलता रहा। अंग्रेजों के कई सैनिक मारे गए। इसके बावजूद अंग्रेज किले पर कब्जा करने में सफल रहे। युद्ध में मारे गए ब्रिटिश अफसरों के नाम यहां के शिलालेख पर आज भी दर्ज हैं। समय के बदलने के साथ ही अलीगढ़ किला बोना चोर का किला हो गया। अब यह किला एएमयू की देखरेख में है। इसलिए इसे एएमयू के किले के नाम से भी जाना जाता है।