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    Aligarh Muslim University : अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय को अल्पसंख्यक दर्जे पर कब क्या-क्या हुआ? पढ़िए पूरी जानकारी

    Updated: Fri, 08 Nov 2024 09:44 PM (IST)

    कर्मचारियों की नियुक्ति का अधिकार इन संस्थानों को प्रधानाचार्य और शिक्षकों की नियुक्ति में अधिक स्वायत्ता मिलती है। संस्थान कर्मचारियों की नियुक्ति में अपने समुदाय के लोगों को प्राथमिकता दे सकते हैँ। संस्थान स्थापित करना आसान अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थान स्थापित करने की प्रक्रिया सरल है। इसके लिए जरूरी अनापत्ति प्रमाणपत्र हासिल करने के लिए लंबा इंतजार नहीं करना पड़ता है।

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    सर सय्यद अहमद खान ने अलीगढ़ में मोहम्मडन एंग्लो ओरिएंटल कालेज की स्थापना की।

    जागरण संवाददाता, अलीगढ़। सुप्रीम कोर्ट की सात सदस्यीय संविधान पीठ ने शुक्रवार को 1967 के अपने ही फैसले को पलट दिया ,जिसमें कहा गया था कि अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (एमएयू) अल्पसंख्यक संस्थान नहीं है। हालांकि, एएमयू को अल्पसंख्यक दर्जा मिलेगा या नहीं, इस पर फैसला एक अलग पीठ करेगी।

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    आइये जानते हैं, एएमयू को अल्पसंख्यक संस्थान के दर्जे पर विवाद और इससे जुड़े घटनाक्रमों के बारे में।

    1875: मोहम्मडन एंग्लो ओरियंटल कालेज की स्थापना सर सैयद अहमद खान ने अलीगढ़ में मोहम्मडन एंग्लो ओरिएंटल कालेज की स्थापना की। इसका मकसद भारत में मुसलमानों को आधुनिक शिक्षा मुहैया कराना था। मुसलमान उस समय सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े माने जा रहे थे। यही संस्थान बाद में एएमयू का आधार बन गया।

    1920: अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय बना अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय अधिनियम पारित किया गया। इसके तहत मोहम्मडन एंग्लो ओरिएंटल कालेज को विश्वविद्यालय का दर्जा मिला और इसका नाम अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय रखा गया।

    1967: अल्पसंख्यक दर्जा खत्म सुप्रीम कोर्ट ने अजीज बाशा बनाम भारत संघ मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि एएमयू की स्थापना केंद्रीय कानून के तहत की गई है। इसलिए इसे अनुच्छेद 30 के तहत अल्पसंख्यक संस्थान का दर्जा नहीं दिया जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि एएमयू एक केंद्रीय विश्वविद्यालय है और इसकी स्थापना सिर्फ मुस्लिम समुदाय ने नहीं की है।

    1981: अल्पसंख्यक दर्जा देने के लिए अधिनियम में संशोधन 1967 के सुप्रीम कोर्ट के फैसले के जवाब में कांग्रेस की अगुवाई वाली केंद्र सरकार ने 1981 में एमएमयू अधिनियम में संशोधन किया। संशोधन में कहा गया कि एएमयू की स्थापना निश्चित रूप से भारत के मुसलमानों द्वारा की गई है। ऐसा मुसलमानों के शैक्षिक और सांस्कृतिक उत्थान के लिए किया गया था। संशोधन ने एएमयू को अल्पसंख्यक संस्थान का दर्जा दिया।

    2005: आरक्षण विवाद एएमयू ने पोस्टग्रेजुएट मेडिकल कोर्स में मु्िस्लम छात्रों के लिए 50 प्रतिशत आरक्षण लागू किया। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 2006 में आरक्षण नीति को खारिज कर दिया। हाई कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि एएमयू अल्पसंख्यक दर्जे का दावा नहीं कर सकता क्योंकि वह सुप्रीम कोर्ट के 1967 के फैसले के अनुसार अल्पसंख्यक संस्थान नहीं है। 2006 में तत्कालीन यूपीए सरकार ने इलाहाबाइ हाई कोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी।

    2016: मोदी सरकार ने वापस ली अपील प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अगुवाई वाली राजग सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में एएमयू के अल्पसंख्यक दर्जे पर अपनी अपील वापस ले ली। केंद्र सरकार ने तर्क दिया कि एएमयू को अल्पसंख्यक संस्थान के मानकों को पूरा नहीं करता है। सरकार ने कहा कि एएमयू ने अपना धार्मिक स्वरूप उसी समय छोड़ दिया था, जब 1920 में इसकी स्थापना केंद्रीय विश्वविद्यालय के रूप में की गई थी।

    2019: सात न्यायाधीशों की पीठ को भेजा गया मामला सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ ने मामले को सात सदस्यीय पीठ के पास भेज दिया। पीठ को एमयू के अल्पसंख्यक दर्जे को लेकर उठे कानूनी सवालों को सुलझाना था।

    अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थानों के विशेषाधिकार मान्यता की जरूरत नहीं अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थानों को सरकार से विशेष मान्यता लेने की आवश्यकता नहीं। संस्थान खुद अपने लिए नियम बना सकते हैं। आरक्षण नीति से मुक्ति इन संस्थानों को अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़े वर्ग के छात्रों के लिए अलग से सीटें आरक्षित नहीं करनी पड़ती हैं, जैसा कि अन्य शिक्षण संस्थानों को करना पड़ता है।

    समुदाय के लिए आरक्षण ये संस्थान अपने समुदाय के छात्रों के लिए अधिकतम 50 प्रतिशत सीटें आरक्षित कर सकते हैं। कर्मचारियों की नियुक्ति का अधिकार इन संस्थानों को प्रधानाचार्य और शिक्षकों की नियुक्ति में अधिक स्वायत्ता मिलती है। संस्थान कर्मचारियों की नियुक्ति में अपने समुदाय के लोगों को प्राथमिकता दे सकते हैँ। संस्थान स्थापित करना आसान अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थान स्थापित करने की प्रक्रिया सरल है। इसके लिए जरूरी अनापत्ति प्रमाणपत्र हासिल करने के लिए लंबा इंतजार नहीं करना पड़ता है।