Aligarh: बड़े भाई की हत्या करने वाले दोषी को 40 साल बाद मिली उम्रकैद की सजा, 39 वर्ष पहले हुई थी पहली गवाही
अलीगढ़ में जमीन के लिए बड़े भाई की हत्या करने वाले दोषी को 40 वर्ष बाद एडीजे प्रथम मनोज कुमार अग्रवाल की अदालत ने आजीवन कारावास की सजा सुनाई है। साथ ह ...और पढ़ें

अलीगढ़, जागरण संवाददाता। इग्लास क्षेत्र में जमीन के लिए बड़े भाई की हत्या करने वाले दोषी को 40 वर्ष बाद एडीजे प्रथम मनोज कुमार अग्रवाल की अदालत ने आजीवन कारावास की सजा सुनाई है। साथ ही 20 हजार रुपये का जुर्माना लगाया। दोषी की उम्र 80 वर्ष है। इस मामले में पहली गवाही 39 वर्ष पहले हो गई थी, लेकिन हाईकोर्ट से स्टे के चलते इतने लंबे तक कोई कार्यवाही नहीं हो सकी।
इगलास क्षेत्र के गांव नगला चूरा निवासी चंद्रमुखी पत्नी स्व. रघुनाथ सिंह ने चार जून 1983 को मुकदमा पंजीकृत कराया था। इसमें कहा था कि उनके ससुर रेवती सिंह ने अपनी जमीन दोनों बेटों रघुनाथ व जयपाल को बराबर बांट दी थी। लेकिन, जयपाल अपनी जमीन को बड़े भाई रघुनाथ से बदलता चाहता था। रघुनाथ ने यह कहकर मना कर दिया कि बंटवारा बार-बार नहीं होता।
जयपाल जमीन पर कब्जा करना चाहता था। इसे लेकर कई बार झगड़ा हुआ। तीन जून 1983 को सुबह रघुनाथ चक्की से आटा पिसवाकर घर लौटे थे। गांव का सोहन सिंह उनके साथ था। रघुनाथ खाना खाने के बाद बाहर निकले तो सोहन साथ ही निकला। वहां डंडा लेकर खड़े जयपाल ने सोहन के कहने पर हमला कर दिया। जयपाल को डंडों से पीट-पीटकर घायल कर दिया।
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जेएन मेडिकल कालेज में अगले दिन रघुनाथ की मृत्यु हो गई। पुलिस ने जयपाल व सोहन के विरुद्ध मुकदमा पंजीकृत किया। सत्र परीक्षण के दौरान सोहन की मृत्यु हो गई। सोमवार को अदालत ने जयपाल को दोषी करार देते हुए निर्णय सुनाया। डे-टू-डे सुनवाई कर छह माह में निस्तारण के दिए निर्देश एडीजीसी जेपी राजपूत ने बताया कि 10 जुलाई 1984 को एडीजे प्रथम की अदालत में पहली गवाही रघुनाथ की पत्नी चंद्रमुखी की हुई। उसी दिन चश्मदीद खचेर सिंह के बयान हुए। दो अगस्त 1984 को हाईकोर्ट ने स्टे लगा दिया। इसके बाद मुकदमा चार अन्य अदालतों में स्थानांतरित हुआ।
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अदालतों ने हाईकोर्ट में पत्राचार करके जानकारी मांगी। लेकिन, कोई जवाब नहीं आया। 14 मार्च 2023 को बचाव पक्ष ने एडीजे प्रथम को प्रार्थना पत्र देकर दोबारा से जिरह कराने की मांग की। अदालत ने इसे स्वीकार करते हुए वादी चंद्रमुखी को तलब कर लिया। लेकिन, इसके विरुद्ध चंद्रमुखी हाईकोर्ट चली गईं। 16 जून को हाईकोर्ट ने गवाह को तलब करने का आदेश रद कर दिया और डे-टू-डे सुनवाई कर छह माह में केस का निस्तारण करने के निर्देश दिए।
केस में 17 गवाह थे। वादिया की गवाही वर्ष 1984 में हो गई थी। इतना लंबा समय बीत जाने के चलते कुछ गवाहों की मृत्यु हो गई तो कुछ मिले ही नहीं। इस पर सेकेंडरी गवाही सीएमओ दफ्तर के एक चालक की कराई, जिन्होंने पोस्टमार्टम की पुष्टि की थी। कुल पांच लोगों की गवाही हुईं, जिस आधार पर सजा हुई है।- जेपी राजपूत, एडीजीसी

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