Aligarh Lok Sabha Seat: अलीगढ़ के चुनावी मैदान में इस बार नहीं कोई मुस्लिम चेहरा, पढ़ें क्या कहता है पिछला रिकॉर्ड
अब से पहले चुनाव में सपा और बसपा मुस्लिम प्रत्याशियों पर दांव खेलती आई हैं। आजादी के बाद से अब तक हुए 17 लोकसभा चुनाव में भाजपा ने छह कांग्रेस ने चार बसपा ने एक बार जीत हासिल की है। सपा खाता नहीं खोल सकी है। 1951-52 से 1980 तक भाजपा गठन से पहले हुए चुनावों में कांग्रेस का बोलबाला रहा।
संतोष शर्मा, अलीगढ़। लोकसभा चुनाव में किसी भी प्रमुख दल से किसी मुस्लिम नेता को मैदान में नहीं उतारा है। पीडीए (पिछड़ा, वंचित और अल्पसंख्यक) का नारा लेकर चुनाव में उतरी सपा ने भी यहां अल्पसंख्यक प्रत्याशी नहीं उतारा। प्रमुख दल भाजपा और बसपा के साथ सपा ने हिंदू चेहरों पर दांव खेला है। जिले में अनुमानित मुस्लिम मतदाताओं की संख्या साढ़े तीन लाख से अधिक है।
अब से पहले चुनाव में सपा और बसपा मुस्लिम प्रत्याशियों पर दांव खेलती आई हैं। आजादी के बाद से अब तक हुए 17 लोकसभा चुनाव में भाजपा ने छह, कांग्रेस ने चार, बसपा ने एक बार जीत हासिल की है। सपा खाता नहीं खोल सकी है। 1951-52 से 1980 तक भाजपा गठन से पहले हुए चुनावों में कांग्रेस का बोलबाला रहा। इस अवधि में हुए सात चुनावों में से दो में कांग्रेस ने और बाकी में छोटे दलों ने जीत दर्ज की।
1980 से 2019 तक हुए 10 चुनावों में भाजपा ने छह बार जीत दर्ज की। 1996 में सबसे पहले मुख्य दल के रूप में बसपा ने अब्दुल खालिक को प्रत्याशी बनाया था। भाजपा की शीला गौतम ने जीत दर्ज करते हुए 46.60 प्रतिशत वोट हासिल किए। अब्दुल खालिद को 28.40 प्रतिशत मत मिले। 2009 सपा ने पूर्व विधायक जफर आलम को मैदान में उतारा था। बसपा प्रत्याशी राजकुमारी चौहान ने जीत दर्ज की।
जफर आलम दूसरे नंबर पर रहे। लोकसभा चुनाव में यह पहला मौका था जब सपा ने कड़ी टक्कर दी। 25.56 प्रतिशत पाकर जफर दूसरे नंबर पर रहे। 2014 में फिर से सपा ने जफर आलम को प्रत्याशी बनाकर मुस्लिम कार्ड खेला। मगर, मोदी लहर में भाजपा प्रत्याशी सतीश गौतम ने शानदार जीत दर्ज की। 2019 के चुनाव में भी कोई मुस्लिम प्रत्याशी नहीं था। भाजपा ने दूसरी बार सतीश गौतम को मैदान में उतारा तो बसपा ने अजीत बालियान और कांग्रेस ने चौ. बिजेंद्र सिंह को।
इस चुनाव में भाजपा ने तीसरी बार सतीश गौतम पर दांव खेला है। वहीं, गठबंधन में सपा के खाते में आई सीट पर चौ. बिजेंद्र सिंह को उतारा। बसपा ने पहले गुफरान नूर को प्रत्याशी घोषित किया था, लेकिन चार दिन बाद ही उनका टिकट काटकर भाजपा छोड़कर आए हितेंद्र कुमार उर्फ बंटी उपाध्याय को मैदान में उतार दिया।
हर चुनाव में निर्दलीय उतरे मुस्लिम प्रत्याशी
निर्दलीय मुस्लिम प्रत्याशियों की बात करें तो 1952, 67 और 77 को छोड़कर हर चुनाव में भाग्य आजमाया। 1980 में तीन, 1984 में एक, 1989 में दो, 1991 में तीन, 1998 में चार, 1999 में दो, 2004 में एक, 2009 में एक, 2014 में एक और 2019 में एक निर्दलीय मुस्लिम प्रत्याशी था।
पहले मुस्लिम सांसद बने थे जमाल ख्वाजा
आजादी के बाद दूसरी बार वर्ष 1957 में हुए लोकसभा चुनाव में अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में कला संकाय के पूर्व डीन अहमद जमाल यूसुफ ख्वाजा जीते थे। वे महात्मा गांधी के अति करीबी थे। ख्वाजा वर्ष 1962 तक सांसद रहे।