World Environment day 2022: अगर आपने कभी नहीं रोपा है बरगद तो इस पर्यावरण दिवस पर लगाएं जरूर, ये 8 फायदे चौंका देंगे आपको
World Environment day 2022 बरगद के पेड़ की पत्तियां देती हैं एक घंटे में पांच मिली लीटर ऑक्सीजन। दिन में 20 घंटे से ज्यादा समय तक बरगद का पेड़ ऑक्सीजन देता है। बरगद को भारत का राष्ट्रीय वृक्ष होने का गौरव प्राप्त है।

आगरा, जागरण संवाददाता। आज विश्व पर्यावरण दिवस है। पर्यावरण संरक्षण, पर्यावरण प्रदूषण जैसी तमाम भेड़ चाल या औपचारिक बातों से इतर आज बात करते हैं सनातन धर्म में देवतुल्य माने गये वृक्षाें की। जिनमें सबसे प्रमुख है बरगद का पेड़। ये प्रमुख इसलिये भी है क्योंकि इसे हमारे देश का राष्ट्रीय वृक्ष होने का गौरव भी प्राप्त है। विश्व पर्यावरण दिवस की पूर्व संध्या पर हम आपको बताने जा रहे हैं बरगद के पेड़ की वो विशेषताएं जिन्हें जानकर आप कल सुबह ही इसकी पौध को रोपेंगे जरूर।
जीवन उपयोगी वनों, औषधियों, पदार्थों और जीवों को देवतुल्य माना गया है। वनस्पतियों में पीपल, बरगद, तुलसी और केला का महत्व अतुलनीय है। यह चारों ही वनस्पतियां औषधीय होने के साथ-साथ पवित्र और देवत्व धारण करने वाली भी हैं। बरगद यानि वट के वृक्ष को पूजा में महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। भारत का राष्ट्रीय वृक्ष होने के साथ यह धार्मिक और वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण है। इस पेड़ के पत्ते, फल और छाल शारीरिक बीमारियों को दूर करने के काम आते हैं।
इन महत्वों को कर नहीं सकेंगे अनदेखा
1- वट वृक्ष ज्ञान व निर्माण का प्रतीक है।
2- वट एक विशाल वृक्ष होता है, जो पर्यावरण की दृष्टि से एक प्रमुख वृक्ष है, क्योंकि इस वृक्ष पर अनेक जीवों और पक्षियों का जीवन निर्भर रहता है।
3- इसकी हवा को शुद्घ करने और मानव की आवश्यकताओं की पूर्ति में भी भूमिका होती है।
4- दार्शनिक दृष्टि से देखें तो वट वृक्ष दीर्घायु व अमरत्व के बोध के नाते भी स्वीकार किया जाता है।
5- इसके नीचे बैठकर पूजन, व्रत कथा आदि सुनने से मनोकामना पूरी होती है।
6- वट वृक्ष का पूजन और सावित्री-सत्यवान की कथा का स्मरण करने के विधान के कारण ही यह व्रत वट सावित्री के नाम से प्रसिद्घ हुआ।
7- धार्मिक मान्यता है कि वट वृक्ष की पूजा लंबी आयु, सुख-समृद्घि और अखंड सौभाग्य देने के साथ ही हर तरह के कलह और संताप मिटाने वाली होती है।
8- प्राचीनकाल में मानव ईंधन और आर्थिक जरूरतों को पूरा करने के लिए लकड़ियों पर निर्भर रहता था, किंतु बारिश का मौसम पेड़-पौधों के फलने-फूलने के लिए सबसे अच्छा समय होता है। साथ ही अनेक प्रकार के जहरीले जीव-जंतु भी जंगल में घूमते हैं। इसलिए मानव जीवन की रक्षा और वर्षाकाल में वृक्षों को कटाई से बचाने के लिए ऐसे व्रत विधान धर्म के साथ जोड़े गए, ताकि वृक्ष भी फलें-फूलें और उनसे जुड़ी जरूरतों की अधिक समय तक पूर्ति होती रहे। इस व्रत के व्यावहारिक और वैज्ञानिक पहलू पर गौर करें तो इस व्रत की सार्थकता दिखाई देती है।
बरगद काटना पुत्र हत्या के समान
संतान के लिए इच्छित लोग इसकी पूजा करते हैं। इस कारण से बरगद काटा नहीं जाता है। धार्मिक मान्यता है कि वट वृक्ष की पूजा लंबी आयु, सुख-समृद्घि और अखंड सौभाग्य देने के साथ ही हर तरह के कलह और संताप मिटाने वाली होती है। वट वृक्ष दीर्घायु व अमरत्व के बोध को भी दर्शाता है।
ये है धार्मिक महत्व
सनातन धर्म में मान्यता है कि वट वृक्ष की छाल में विष्णु, जड़ों में ब्रह्मा और शाखाओं में शिव विराजते हैं। जैन धर्म में मान्यता है कि तीर्थंकर ऋषभदेव ने अक्षय वट के नीचे तपस्या की थी। यह स्थान प्रयाग में ऋषभदेव तपस्थली के नाम से जाना जाता है।
ये है वैज्ञानिक महत्व
माना जाता है कि पेड़ की पत्तियां एक घंटे में पांच मिली लीटर ऑक्सीजन देती हैं। यह वृक्ष दिन में 20 घंटे से ज्यादा समय तक ऑक्सीजन देता है। इसके पत्तों से निकलने वाले दूध को चोट, मोच और सूजन पर दिन में दो से तीन बार मालिश करने से काफी आराम मिलता है। यदि कोई खुली चोट है तो बरगद के पेड़ के दूध में हल्दी मिलाकर चोट वाली जगह बांध लें, घाव जल्द भर जाएगा।
ये है पुराणा के अनुसार वृक्ष के उत्पन्न होने की कहानी
वामनपुराण में वनस्पतियों की व्युत्पत्ति को लेकर एक कथा भी आती है। आश्विन मास में विष्णु की नाभि से जब कमल प्रकट हुआ, तब अन्य देवों से भी विभिन्न वृक्ष उत्पन्न हुए। उसी समय यक्षों के राजा 'मणिभद्र' से वट का वृक्ष उत्पन्न हुआ। यक्ष से निकट सम्बन्ध के कारण ही वट वृक्ष को 'यक्षवास', 'यक्षतरु', 'यक्षवारूक' आदि नामों से भी पुकारा जाता है। पुराणों में ऐसी अनेक प्रतीकात्मक कथाएं, प्रकृति, वनस्पति व देवताओं को लेकर मिलती हैं। जिस प्रकार अश्वत्थ यानी पीपल को विष्णु का प्रतीक कहा गया, उसी प्रकार इस जटाधारी वट वृक्ष को साक्षात जटाधारी पशुपति शिव का रूप माना गया है।
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