Zakir Hussain: आगरा में बोले थे उस्ताद, 'किस्मत वालों को मिलता है ताजमहल...' स्मारक को बताया था रूमानियत वाली जगह
उस्ताद जाकिर हुसैन का मानना था कि शास्त्रीय संगीत का भविष्य डिस्को हिप-हॉप आदि से बेहतर है। शास्त्रीय संगीत पहले केवल राजा-महाराजा के दरबारों तक सीमित था लेकिन अब बड़े-बड़े उत्सवों में इसके कार्यक्रम होते हैं। वे सूफी संगीत को शास्त्रीय संगीत का ही एक रूप मानते हैं और उनका कहना है कि जो लोग सूफी संगीत को शास्त्रीय संगीत नहीं मानते वे संगीत का अपमान करते हैं।

जागरण संवाददाता, आगरा। 15 जनवरी, 2014। एक ओर मोहब्बत की अनमोल निशानी ताजमहल तो दूसरी ओर संगीत से बेपनाह मोहब्बत करने वाले उस्ताद जाकिर हुसैन। सांझ ढल रही थी और पक्षी अपने घौंसलों की ओर लाैट रहे थे। कंपकंपी छुड़ा देने वाली सदीं में ताज नेचर वाक में जब तबले पर उस्ताद जाकिर हुसैन की अंगुलियां थिरकनी शुरू हुईं तो दर्शक सब कुछ भूल गए।
उसके बाद तो डेढ़ घंटे तक मंच पर उस्ताद और उनके पार्श्व में नजर आता ताजमहल ही छाए रहे। तबले की थाप से कभी उस्ताद ने रेल की छुकछुक तो कभी तोप की आवाज निकाली थी। तबले पर उन्होंने शंख ध्वनि, राधे-कृष्णा और नाचत नंद किशोर... के सुर साधे थे तो ताजमहल भी 'वाह उस्ताद' कह उठा था। मौका था ताज नेचर वाक समिति द्वारा वन विभाग के ताज नेचर वाक में आयोजित तबला वादन कार्यक्रम 'धा'' का।
शाम करीब चार बजे पदम पुरस्कार से अलंकृत उस्ताद यहां पहुंचे तो संगीत और कला प्रेमियों ने करतल ध्वनि से उनका स्वागत किया था। पक्षियों की चहचाहट के मध्य तबले पर अंगुलियों से थाप छेड़ते उस्ताद का करिश्मा देख लोग विस्मित हो उठे थे। उन्होंने कभी तबले की थाप से भगवान शिव के रौद्र रूप की कथा तो कभी जंगल में शिकारी को देखकर भागते हिरन की रफ्तार उन्होंने सुनाई थी।
नटवरी नृत्य को तो तबले और सारंगी ने जीवंत कर दिया था। संगीत प्रेमियों की फरमाइश पर अंत में उन्होंने रूपक ताल सुनाकर मंच से विदा ली थी। गजल गायक सुधीर नारायन बताते हैं कि उस्ताद जाकिर हुसैन वर्ष 1980 और 1990 के दशक में आइटीसी संगीत सम्मेलन में भाग लेने प्रतिवर्ष आते थे। इसमें देश के सभी बड़े संगीतज्ञ आते थे।
ताज नेचर वॉक में दी प्रस्तुति
ताज नेचर वाक में प्रस्तुति में उन्होंने संगीतप्रेमियों पर ऐसी अमिट छाप छोड़ी, जो वह ताजिंदगी नहीं भुला सकेंगे। वह हमेशा आइटीसी मुगल होटल में ही रुकते थे। जनवरी में ग्यारह सीढ़ी उद्यान में उनका कार्यक्रम कराने के प्रयास किए थे, लेकिन उनकी व्यस्तता के चलते वह यहां नहीं आ सके थे। 2019 में ताजमहल देखने आए थे तबला वादक उस्ताद जाकिर हुसैन आखिरी बार चार फरवरी, 2019 को आगरा आए थे। पांच फरवरी की सुबह उन्होंने पत्नी एंटोनियाे और पत्नी की दोस्त जूडी के साथ ताजमहल निहारा था। ताजमहल की खूबसूरती को वह एक घंटे तक निहारते रहे थे। यहां से वह आगरा किला होते हुए फतेहपुर सीकरी गए थे।
ताजमहल के साए में दी थी प्रस्तुति
ताजमहल के साये में प्रस्तुति का मौका किस्मत वालों को ही मिलता है। मैं भी किस्मत वाला हूं। यह बड़ी रूमानियत वाली जगह है। संगीत में भी रूमानियत का मजा होता है। ताजमहल मोहब्बत की दास्तां कहता है। पदम पुरस्कार से अलंकृत तबला वादक उस्ताद जाकिर हुसैन ने यह बात 15 जनवरी, 2014 को ताज नेचर वाक में प्रस्तुति के बाद होटल क्लार्क शीराज में मीडिया से रूबरू होते हुए कही थी।
सूफी संगीत को शास्त्रीय नहीं मानने वालों को बताया था संगीत का अपमान
उस्ताद ने बड़े आत्मविश्वास के साथ कहा था कि शास्त्रीय संगीत के कद्रदान कभी कम नहीं होंगे। पूरे विश्व में भारतीय शास्त्रीय संगीत को सुनने वालों की संख्या बढ़ी है। लंदन में शास्त्रीय संगीत सुनने फ्रेंच और ब्रिटिश आते हैं, लेकिन जब बालीवुड का कार्यक्रम होता है तो केवल हिंदुस्तानी पहुंचते हैं। डिस्को, हिपहाप आदि से अच्छा भविष्य शास्त्रीय संगीत का है। जाकिर हुसैन का कहना था कि, शास्त्रीय संगीत पहले केवल राजा-महाराजा के दरबारों तक सीमित था, लेकिन अब बड़े-बड़े उत्सवों में इसके कार्यक्रम होते हैं। उन्होंने कहा था कि शास्त्रीय संगीत की तुलना पाश्चात्य या फिल्मी संगीत से नहीं की जा सकती।
उन्होंने कहा था कि विश्व के अधिकांश कलाकार सूफी हैं। गजल, भजन, ठुमरी सभी शास्त्रीय संगीत पर आधारित हैं। ऊपर वाले को याद करना सूफीज्म है। इसलिए जो लोग सूफी संगीत को शास्त्रीय संगीत नहीं मानते वे संगीत का अपमान करते हैं। जाकिर हुसैन ने कहा था कि अमीर खुसरो ने कई दशक पूर्व हवेली संगीत और कब्बाली का मिश्रण कर ख्याल गायकी की शुरूआत की थी। उसी विरासत को मैं संभाल रहा हूं। रियलिटी शो को वे अच्छा मानते थे। उनका कहना था कि इससे नई पीढ़ी में सुर और ताल की समझ आ रही है। नई पीढ़ी का संगीत के प्रति रुझान बढ़ रहा है। -आदर्श नंदन गुप्त, वरिष्ठ पत्रकार
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