कितना मजबूत है ताजमहल का कलश... गारा खोलेगा मजबूती का राज, एएसआई ने जांचने के लिए लिया नमूना
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) ताजमहल के कलश की मजबूती का आकलन कर रहा है। इसके लिए कलश में लगे गारे का नमूना लिया गया है जिससे उसकी मजबूती और सामग्री की जानकारी मिलेगी। पिछले साल पानी के रिसाव के बाद थर्मल स्कैनिंग की गई थी। एएसआई 76 लाख रुपये की लागत से छत व गुंबद का संरक्षण कर रहा है।

जागरण संवाददाता, आगरा। ताजमहल के कलश (पिनेकल) की मजबूती की जांच भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआइ) की रसायन शाखा करेगी। इसके लिए ताजमहल के कलश में लगे गारा (मोर्टार) का सैंपल लिया गया है। गारे की जांच से उसकी कंप्लसिव स्ट्रेंथ (मजबूती) और कंपोजिशन (प्रयुक्त सामग्री) के बारे में जानकारी सामने आएगी। रिपोर्ट के आधार पर ही कलश के संरक्षण का निर्णय होगा। पिछले वर्ष थर्मल स्कैनिंग में कलश से पानी रिसकर गुंबद में पहुंचने की प्रारंभिक जानकारी सामने आई थी।
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) द्वारा ताजमहल में मुख्य मकबरे की छत व गुंबद का संरक्षण करीब 76 लाख रुपये की लागत से किया जा रहा है। मुख्य मकबरे की छत से गुंबद के ऊपर लगे कलश के शीर्ष तक स्केफोल्डिंग (पाड़) बांधी गई है। कलश 9.29 मीटर यानि करीब 30.47 फीट ऊंचा है।
एएसआइ की रसायन शाखा द्वारा लिया गया है कलश में लगे गारा का सैंपल
पिछले वर्ष 10 से 12 सितंबर तक आगरा में निरंतर वर्षा होने से ताजमहल में शाहजहां व मुमताज की कब्रों वाले कक्ष और गुंबद में पानी का रिसाव हुआ था। पानी टपकने के बाद थर्मल स्कैनिंग व लिडार तकनीक से जांच की गई थी। इसमें दो स्थानों से पानी का रिसाव होने की जानकारी मिली थी। ड्रोन उड़ाकर ली गई थर्मल इमेज में कलश के अंदर पानी पहुंचने की प्रारंभिक जानकारी सामने आई थी।
ताजमहल के गुंबद और छत में पानी का रिसाव रोकने को हो रहा है संरक्षण
दिल्ली से आए रसायन शाखा के निदेशक डॉक्टर एमके भटनागर के नेतृत्व में ताजमहल के कलश के अंदर लगे गारे का सैंपल लिया गया। रसायन शाखा इसकी जांच कर उसकी मजबूती व मसाला बनाने में प्रयोग की गई सामग्री का विश्लेषण कर अपनी रिपोर्ट देगी। कलश की ऊपरी परत तांबे की बनी हुई है, जिसके अंदर गारा भरा हुआ है।
कलश की धातु का भी लिया है सैंपल
रसायन शाखा द्वारा कलश में प्रयुक्त धातु का भी सैंपल लिया गया है। इसकी जांच की जाएगी। मुगल काल में ताजमहल का कलश 466 किलो सोने से बनाया गया था। वर्ष 1810 में अंग्रेज अधिकारी जोसेफ टेलर ने ताजमहल के मूल कलश को बदलवाकर सोने की पालिश किया हुआ तांबे का कलश लगवा दिया था। वर्ष 1876 और 1940 में भी कलश पर काम किया गया था। विभागीय अधिकारी वर्ष 1940 में कलश में ग्राउटिंग (पतला मसाला भरने) का काम किए जाने की बात कहते हैं।
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ताजमहल के कलश की मजबूती की जांच को उसके अंदर लगे गारे का सैंपल जांच के लिए लिया गया है। जांच में एक सप्ताह का समय लग सकता है। - डा. एमके भटनागर, निदेशक रसायन शाखा, एएसआई
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