Shri Nath Temple in Govardhan: यहां तो रोज 700 किमी का सफर तय करते हैं श्रीनाथ जी, नाथद्वारा में मंगला और जतीपुरा में शयन
गोवर्धन पर्वत पर बनी 700 किमी लंबी गुफा से आराध्य करते हैं आवागमन। शैया पर बिछे बिस्तरों पर रोजाना पड़ती सिलवटें प्रभु की शयन लीला को प्रमाणित करती हैं। अजब कुमारी के प्रेम का समर्पण और विश्वास ने कान्हा को प्रेम गुफा बनाने पर मजबूर कर दिया।

आगरा, रसिक शर्मा। ब्रजभूमि का प्रत्येक मंदिर राधा कृष्ण की किसी न किसी लीला की गवाही है। इनके प्यार भरे पलों का संग्रह ब्रजभूमि के मंदिरों की परिभाषा है। राधा के प्रेम का यशोगान करती ब्रजधरा में अजब प्यार की सुगंध भी घुली है। जतीपुरा का श्रीनाथजी मंदिर अजब कुमारी के गजब प्रेम की गाथा सुना रहा है। मंदिर तक पहुंचने के लिए गिरिराज शिलाओं के ऊपर से ही निकलना पड़ेगा। प्रभु के शयन कक्ष में ही प्रेम गुफा का द्वार बना है। श्रीनाथजी मंदिर में बनी 700 किमी लंबी प्रेम गुफा दो प्रदेशों के अमर प्रेम की कहानी बयां करती हैं। भक्त और भगवान के मिलन के ये पल इतिहास के पन्नों में स्वर्णाक्षरों में अंकित हैं। अजब कुमारी के प्रेम का समर्पण और विश्वास ने कान्हा को प्रेम गुफा बनाने पर मजबूर कर दिया। चाहत उन्हें जतीपुरा से राजस्थान तक खींच ले गई। मान्यता है कि श्रीनाथ जी मंगला नाथद्वारा में करते हैं तो जतीपुरा में शयन करते हैं।
दास्तान प्रेम की
तिरछे नयन और मोहक मुस्कान पर रीझी मेवाड़ की दीवानी सांवरे से मुहब्बत कर बैठी। मेवाड़ की अजब कुमारी के पिता बीमार हुए, वह उनके शीघ्र स्वस्थ होने की मन्नत लेकर श्याम सुंदर के दर्शन को गोवर्धन आईं। प्रभु की बांकी छवि निहार मीरा की तरह उन्होंने ठाकुर को मानसिक रूप से अपना पति मान लिया। तलहटी में रहकर उनकी सेवा करने लगीं। भक्त वत्सल प्रभु ने भक्ति से प्रसन्न हो उन्हें दर्शन दिए। उन्होंने प्रभु से नाथद्वारा चलकर अपने बीमार पिता को दर्शन देने की प्रार्थना की। ब्रजवासियों के प्रेम में बंधे भगवान ने ब्रज के बाहर जाने से मना कर दिया। भक्त के वशीभूत भगवान ने रोजाना सोने के लिए ब्रज में आने की शर्त पर अजब कुमारी की प्रार्थना मान ली।मान्यता है, इस गुफा के रास्ते प्रभु अब भी सुबह नाथद्वारा चले जाते हैं। नयनों में नींद भरते ही वापस गोवर्धन लौट आते हैं।
सेवायत रोजाना प्रभु के शयन को शैया बिछाते हैं। सेवायत कहते हैं कि शैया पर बिछे बिस्तरों पर रोजाना पड़ती सिलवटें प्रभु की शयन लीला को प्रमाणित करती हैं।
इतिहास के झरोखे से
सेवायत सुनील कौशिक के अनुसार, करीब 550 वर्ष पूर्व आन्यौर की नरो नामक लड़की की गाय का दूध गिरिराज शिला पर झरने लगा। उसे जब इस बात का पता चला तो उसने गिरिराज शिला पर आवाज लगाई, अंदर कौन है। अंदर से जवाब में तीन नाम सुनाई दिये, देव दमन, इंद्र दमन और नाग दमन। इसी शिला से श्रीनाथ जी का प्राकट्य हुआ और सबसे पहले उनकी बाईं भुजा का दर्शन हुआ। करीब 450 वर्ष पूर्व पूरनमल खत्री ने जतीपुरा में गिरिराज शिलाओं के ऊपर मंदिर का निर्माण कराया। कन्हैया के गिरिराज पर्वत उठाते स्वरूप के दर्शन श्रीनाथजी में होते हैं। धार्मिक मान्यता के अनुसार गिरिराज महाराज, भगवान श्रीकृष्ण और श्रीनाथजी एक ही देव के अनेक नाम हैं।
ना कछु खावै....धन्य पूंछरी के लौठा
भक्ति की कसौटी पर खरा उतरना साधारण इंसान के लिए कठिन है। लौठा नाम के ये भक्त आज अपने प्रभु की राह में अन्न जल त्यागकर बैठे हैं। उनकी निगाहें अपने कान्हा के आने का इंतजार कर रही हैं।
मान्यता है कि लौठा रोजाना कन्हैया के साथ गाय चराने आते थे। भूख लगने पर सिर्फ कन्हैया का छोड़ा हुआ झूठा भोजन ही करते थे। कन्हैया भी उनकी वजह से ज्यादा भोजन रखकर खाने बैठते थे। ब्रज छोड़कर मथुरा जाते समय कन्हैया दोबारा आने की कहकर गए। कथा के अनुसार, लौठा तब से आज तक कन्हैया के आने का इंतजार कर रहे हैं। उन्होंने तभी से अन्न जल भी छोड़ रखा है। ब्रज में इनके बारे में एक कहावत प्रसिद्ध है कि ''ना कछु खावै, ना कछु पीवै, तऊ कैसौ परौ सिलौंटा, धन्य-धन्य तो कू पूंछरी के लौठा।
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