Sanjhi art: क्या है सांझी कला और कैसे बनती है ये पेटिंग, समझिए इसकी खूबी, श्रीकृष्ण लीलाओं से जुड़ी ये लोककला हो रही विलुप्त
Sanjhi art सांझी ब्रज का एक ऐसा उत्सव है जो उस समय मनाया जाता है जब कोई पर्व नहीं मनता है। सांझी कला काफी प्राचीन है और अब विलुप्त होने के कगार है। इसके बारे में काफी कम लोगों को जानकारी है।

आगरा, जागरण टीम। सांझी कला की शुरुआत ब्रज में हुई। भगवान श्रीकृष्ण की लीलाओं से जुड़ी ये कला के जानकार अब कम हैं। विलुप्त होती ब्रज की इस प्राचीन कला को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मंगलवार को विश्व पटल पर नई पहचान दिलाई।
उन्होंने अमेरिकी राष्ट्रपति जो वाइडन को सांझी की कृति भेंट कर इसे नई ऊंचाई दी है। जो वाइडन को भेंट की गई सांझी पेपर कटिंग की कृति मथुरा के स्वर्गीय चैनसुख दास वर्मा के हाथों की बनाई है।
सांझी ब्रज की ठेठ प्राचीन कला है। भगवान श्रीकृष्ण की लीलाओं से जुड़ी यह कला पूरी तरह से विलुप्त हो रही थी। करीब तीन दशक से मंदिरों तक सीमित रह गई इस कला को जीवंत करने के लिए द ब्रज फाउंडेशन ने करीब दस साल पहले प्राचीन ब्रह्मकुंड पर सांझी मेला का आयोजन किया। वृंदावन में सांझीकारों में राधारमण मंदिर और राधावल्लभ मंदिर के सेवायतों के अलावा भट्ट घराना जुड़ा है।
सांझी पेपर कटिंग
प्रधानमंत्री ने जो सांझी की कृति जो वाइडन को दी, उसे सांझी पेपर कटिंग कहते हैं। मथुरा शहर के मुहल्ला कंसखार बाजार निवासी आशुतोष वर्मा बताते हैं कि ये सांझी पेपर कटिंग का खाका उनके बाबा स्वर्गीय चैनसुख दास वर्मा के हाथों बनाया गया है। ये गोवर्धन के प्रसिद्ध कुसुम सरोवर की डिजाइन है। इसकी एक कृति आशुतोष के पास सुरक्षित है।
ऐसे बनती है सांझाी
आशुतोष बताते हैं कि वर्ष 1979 में उनके बाबा का देहांत हो गया था। 1992 से 1997 के बीच नेशनल क्राफ्ट म्यूजियम दिल्ली के तत्कालीन डायरेक्टर ज्योतवेंद्र जैन इसे खरीदकर उनके ताऊ विजय कुमार वर्मा से ले गए थे। आशुतोष बताते हैं कि उनके परिवार में छह पीढ़ियों से सांझी पेपर कटिंग का काम होता है। किसी एक कृति को पहले पेंसिल के जरिए कागज पर उकेरा जाता है, इसके बाद उसे हैंडमेड कैंची के जरिए डिजाइन काटी जाती है। इस डिजाइन को फ्रेम में सजाया गया है।
ये है ब्रज का सांझी उत्सव
श्राद्ध पक्ष में जब कोई उत्सव नहीं होते, तब ब्रज में सांझी उत्सव मनाया जाता है। शहरी इलाकों में रंग व फूल, जल की सांझी बनाई जाती है। ग्रामीण अंचलों में गोबर से सांझी बनाकर महोत्सव मनाया जाता है। ब्रज के मंदिरों, कुंज और आश्रमों में मिट्टी के ऊंचे अठपहलू धरातल पर रखकर छोटी-छोटी पोटलियों में सूखे रंग भर कर इस कला का चित्रण किया जाता है।
श्राद्धपक्ष में ठा. राधावल्लभ मंदिर, राधारमण मंदिर में नित नए तरीके की सांझी बनाई जाती है। पुराणों में उल्लेख है कि द्वापर में शाम के समय जब भगवान श्रीकृष्ण गोचारण करके आते थे, तो ब्रजगोपियां उनके स्वागत के लिए फूलों की चित्रकला (सांझी) सजाकर स्वागत करती थीं। तभी से ब्रज में सांझी कला की शुरुआत पड़ी।
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