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    Agra News: हंडा की रोशनी से चांदी के रथ तक, बहुत रोचक है आगरा में राम बरात का इतिहास

    By Tanu GuptaEdited By:
    Updated: Sun, 18 Sep 2022 09:21 AM (IST)

    सवा सौ साल से अधिक के इतिहास में बस दो बार ही निकली सकी है राम बरात। कोविड के कारण रोका गया था भव्य आयोजन। पुराने शहर के मुख्य मार्गों से होते हुए जनकपुरी तक पहुंचती है राम बरात।

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    1954 में राम लीला के दौरान का फोटो। दूसरा फोटो 2019 की राम बरात का है।

    आगरा, अजय दुबे। देवता और मनुष्य मंगलायन कर रहे हैं रसीले राग से शहनाई बज रही हैं रामबरात ऐसी बनी है कि उसका वर्णन करते नहीं बन रहा। सभी दिशाओं में सुंदर में सुंदर और शुभदायक शगुन हो रहे हैं मर्यादा पुरुषोत्तम राम को दूल्हे के रूप में देख देव सुंदरियां भी घरों की छतों से फूल बरसाकर गीत गा रही हैं देवता तक नगाड़े बजा रहे हैं। घोड़े और हाथी गरज रहे हैं। बारात में बैंड-बाजे बज रहे हैं। पशु पक्षी नर नारी देव सब सिया को ब्याहने आ रहे मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम को निहार रहे हैं। उधर, जनकपुरी में रामबरात की अगवानी की तैयारी चल रही हैं। सतरंगी रोशनी से नहाए जनक महल की शोभा देखते ही बनती है।

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    पुराने शहर रावतपाड़ा के व्यापारियों ने रामलीला और रामबरात की परिकल्पना की। वर्ष 1885, लाला चन्नौमल की बारहदरी, श्री मनकामेश्वर मंदिर गली में पहली बार रामलीला का मंचन हुआ। बेलगाड़ी पर रामबरात निकली। इसके बाद भारत पाकिस्तान युद्ध और कोरोना काल के दो साल में रामबरात नहीं निकली, दो साल बाद रामलीला का मंचन हो रहा है, 21 सितंबर को राम बरात निकलेगी। 21 से 23 सितंबर को दयालबाग में जनकपुरी का आयोजन किया जाएगा। आठ अक्टूबर को समापन होगा। 142 वीं बार रामलीला महोत्सव मनाया जा रहा है।

    रामलीला महोत्सव की लोकप्रियता बढ़ी, इससे लाला चन्नौमहल की बारहदरी निकलकर रामलीला रावतपाड़ा चौराहा (बारह टोंटी चौराहा) पर पहुंच गई। 1930 में छावनी परिषद से रामलीला मैदान को श्री रामलीला कमेटी ने लिया और रामलीला के लिए मंच तैयार कराए गए। इसके बाद से रामलीला का मंचन रामलीला मैदान में शुरू हो गया। 1940 में बारहदरी में भवन बनाया गया, इसी में रामलीला का सामान रखा जाता है।

    हंडा की रोशनी, बेलगाड़ी भरतपुर नरेश के हाथी और अब रथ पर निकलती है रामबरात

    पहले रामबरात हंडां की रोशनी में बेलगाड़ी पर निकलती थी, स्वर्गीय लाला चन्नौमल की बारहदरी मनकामेश्वर मंदिर से प्रारंभ होकर रावतपड़ा, अग्रसेन मार्गए सुभाष बाजार, दरेसी नंबर एक व दो, छत्ता बाजार, बेलनगंज, पथवारी, धुलियागंज, सेब का बाजार, बिनारी बाजार, कसरेट बाजार, रावतपाड़ा होते हुए स्वर्गीय लाला चन्नौमल की बारहदरी पर रामबरात का समापन होता था। इसके बाद हाथी पर रामबरात निकलने लगी, भरतपुर नरेश के हाथी आते थे, इन हाथियों पर प्रभु श्रीराम के साथ चारों भाई बैठकर निकलते थे। 2010 11 में हाथियों के राम बरात में शामिल करने पर प्रतिबंध लगा दिया गया, इसके बाद रथ पर सवारी निकलेने लगी। रत्न जड़ित रथों पर प्रभु श्रीराम निकलते हैं और 15 बैंड शामिल होते हैं। रामबरात में 100 से अधिक झांकियां शामिल होती हैं।

    1973 में बनवाया चांदी का रथ, विष्णु की सवारी

    श्रीरामलीला कमेटी द्वारा 1973 74 में चांदी का रथ बनवाया गया। इस रथ पर भगवान विष्णु की सवारी निकलती है, बेशकीमती रथ को देखने के लिए लोगों की भीड़ जुटती है।

    रामबरात का रूट

    लाला चन्नौमल की बारहदरी से प्रारंभ होकर रावतपाड़ा, अग्रसेन मार्ग, सुभाष बाजार, कोकामल मार्ग, दरेसी नंबर एक व दो, छत्ता बाजार, कचहरी घाट, बेलनगंज, पथवारी, धुलियागंज, घटिया छिलीईंट, फुलटटी, सेब का बाजार, किनारी बाजार, कसरेट बाजार, रावतपाड़ा होते हुए लाला चन्नाौमल की बारहदरी पर समापन होगा।