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    Radha Ashtami 2022 Today: चाहिए अगर बृषभान दुलारी की कृपा तो जरूर करें आज ये पाठ, शिव ने खुद की थी इसकी रचना, साथ ही पढ़ें लाभ

    By Tanu GuptaEdited By:
    Updated: Sun, 04 Sep 2022 07:17 AM (IST)

    Radha Ashtami 2022 Today आज राधाष्टमी का पर्व ब्रज में धूमधाम से मनाया जा रहा। लाखाें भक्त बरसाना पहुंचने। श्रीकृष्ण जन्माष्टमी की तरह ही लोगों ने रखा है व्रत। राधा कृपा स्त्रोत को स्वयं भगवान शिव ने मां पार्वती को था सुनाया।

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    इस्कॉन मंदिर में स्थापित राधारानी की प्रतिमा। फोटो इंटरनेट मीडिया

    आगरा, जागरण संवाददाता। आज बृषभान दुलारी राधा रानी का प्राकट्य उत्सव ब्रज में धूमधाम से मनाया जा रहा है। श्रीकृष्ण की आराध्य, प्रेम की देवी की आराधना किये बिना केशव कभी भी अपनी पूजा स्वीकार नहीं करते। मात्र एक राधा नाम से जैसे गोविंद स्वयं दौड़ चले आते हैं। ब्रज में राधे नाम की महिमा कुछ एेसी है कि मंदिर बिहारी जी का होता है लेकिन जयकारे राधे राधे के लगते हैं। राधा नाम की महिमा को स्वयं भगवान शिव ने मां पार्वती के साथ साझा किया था। ज्योतिषशास्त्री पंकज प्रभु के अनुसार तीनो लोकों की स्वामी श्री राधा रानी की कृपा पाने के लिए सबसे सरल साधना है हृदय में शुद्धता के साथ राधा कृपा कटाक्ष का पाठ। अष्टमीृ एकादशी जैसी महत्वपूर्ण तिथियों पर इसके पाठ करने पुण्य फल की प्राप्ति होती है।

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    राधा कृपा कटाक्ष के लाभ

    - जगत जननी राधा को भगवान श्रीकृष्ण की अर्धांगिनी शक्ति माना गया है। इसका मतलब है राधा के कारण श्रीकृष्ण प्रसन्न होते हैं। पद्म पुराण में कहा गया है कि राधा श्रीकृष्ण की आत्मा हैं। महर्षि वेदव्यास ने लिखा है कि श्रीकृष्ण आत्माराम हैं और उनकी आत्मा राधा हैं।

    - राधा कृपा कटाक्ष के स्त्रोत्र का प्रतिदिन पाठ करने से साधक को राधा रानी की असीम कृपा प्राप्त होती हैं। उसके समस्त पापों का नाश हो जाता है और उसकी समस्त मनोकामनायें पूर्ण हो जाती हैं।

    - यह श्री वृंदावन में सबसे प्रसिद्ध स्तोत्र है, जिसे कभी-कभी वृंदावन का राष्ट्रगान कहा जाता है। जो साधक पूर्णिमा के दिन, शुक्ल पक्ष की अष्टमी को, ढलते और घटते चन्द्रमाओं के दसवें, ग्यारहवें और तेरहवें दिन इस स्तोत्र का पाठ करता है, वह अपनी मनोकामनाओं का फल प्राप्त करता है और उसकी कृपा से श्री राधिका की करुणामयी पार्श्व दृष्टि, प्रेमा की विशेषता वाली भक्ति उनके हृदय में अंकुरित हो जाती है।

    राधा कृपा कटाक्ष

    मुनीन्द्र–वृन्द–वन्दिते त्रिलोक–शोक–हारिणि

    प्रसन्न-वक्त्र-पण्कजे निकुञ्ज-भू-विलासिनि

    व्रजेन्द्र–भानु–नन्दिनि व्रजेन्द्र–सूनु–संगते

    कदा करिष्यसीह मां कृपाकटाक्ष–भाजनम् ॥1॥

    अशोक–वृक्ष–वल्लरी वितान–मण्डप–स्थिते

    प्रवालबाल–पल्लव प्रभारुणांघ्रि–कोमले ।

    वराभयस्फुरत्करे प्रभूतसम्पदालये

    कदा करिष्यसीह मां कृपाकटाक्ष–भाजनम् ॥2॥

    अनङ्ग-रण्ग मङ्गल-प्रसङ्ग-भङ्गुर-भ्रुवां

    सविभ्रमं ससम्भ्रमं दृगन्त–बाणपातनैः।

    निरन्तरं वशीकृतप्रतीतनन्दनन्दने

    कदा करिष्यसीह मां कृपाकटाक्ष–भाजनम् ॥3॥

    तडित्–सुवर्ण–चम्पक –प्रदीप्त–गौर–विग्रहे

    मुख–प्रभा–परास्त–कोटि–शारदेन्दुमण्डले।

    विचित्र-चित्र सञ्चरच्चकोर-शाव-लोचने

    कदा करिष्यसीह मां कृपाकटाक्ष–भाजनम् ॥4॥

    मदोन्मदाति–यौवने प्रमोद–मान–मण्डिते

    प्रियानुराग–रञ्जिते कला–विलास – पण्डिते ।

    अनन्यधन्य–कुञ्जराज्य–कामकेलि–कोविदे

    कदा करिष्यसीह मां कृपाकटाक्ष–भाजनम् ॥5॥

    अशेष–हावभाव–धीरहीरहार–भूषिते

    प्रभूतशातकुम्भ–कुम्भकुम्भि–कुम्भसुस्तनि ।

    प्रशस्तमन्द–हास्यचूर्ण पूर्णसौख्य –सागरे

    कदा करिष्यसीह मां कृपाकटाक्ष–भाजनम् ॥6॥

    मृणाल-वाल-वल्लरी तरङ्ग-रङ्ग-दोर्लते

    लताग्र–लास्य–लोल–नील–लोचनावलोकने ।

    ललल्लुलन्मिलन्मनोज्ञ–मुग्ध–मोहिनाश्रिते

    कदा करिष्यसीह मां कृपाकटाक्ष–भाजनम् ॥7॥

    सुवर्णमलिकाञ्चित –त्रिरेख–कम्बु–कण्ठगे

    त्रिसूत्र–मङ्गली-गुण–त्रिरत्न-दीप्ति–दीधिते ।

    सलोल–नीलकुन्तल–प्रसून–गुच्छ–गुम्फिते

    कदा करिष्यसीह मां कृपाकटाक्ष–भाजनम् ॥8॥

    नितम्ब–बिम्ब–लम्बमान–पुष्पमेखलागुणे

    प्रशस्तरत्न-किङ्किणी-कलाप-मध्य मञ्जुले ।

    करीन्द्र–शुण्डदण्डिका–वरोहसौभगोरुके

    कदा करिष्यसीह मां कृपाकटाक्ष–भाजनम् ॥9॥

    अनेक–मन्त्रनाद–मञ्जु नूपुरारव–स्खलत्

    समाज–राजहंस–वंश–निक्वणाति–गौरवे ।

    विलोलहेम–वल्लरी–विडम्बिचारु–चङ्क्रमे

    कदा करिष्यसीह मां कृपाकटाक्ष–भाजनम् ॥10॥

    अनन्त–कोटि–विष्णुलोक–नम्र–पद्मजार्चिते

    हिमाद्रिजा–पुलोमजा–विरिञ्चजा-वरप्रदे ।

    अपार–सिद्धि–ऋद्धि–दिग्ध–सत्पदाङ्गुली-नखे

    कदा करिष्यसीह मां कृपाकटाक्ष–भाजनम् ॥11॥

    मखेश्वरि क्रियेश्वरि स्वधेश्वरि सुरेश्वरि

    त्रिवेद–भारतीश्वरि प्रमाण–शासनेश्वरि ।

    रमेश्वरि क्षमेश्वरि प्रमोद–काननेश्वरि

    व्रजेश्वरि व्रजाधिपे श्रीराधिके नमोस्तुते ॥12॥

    इती ममद्भुतं-स्तवं निशम्य भानुनन्दिनी

    करोतु सन्ततं जनं कृपाकटाक्ष-भाजनम् ।

    भवेत्तदैव सञ्चित त्रिरूप–कर्म नाशनं

    लभेत्तदा व्रजेन्द्र–सूनु–मण्डल–प्रवेशनम् ॥13॥

    राकायां च सिताष्टम्यां दशम्यां च विशुद्धधीः ।

    एकादश्यां त्रयोदश्यां यः पठेत्साधकः सुधीः ॥14॥

    यं यं कामयते कामं तं तमाप्नोति साधकः ।

    राधाकृपाकटाक्षेण भक्तिःस्यात् प्रेमलक्षणा ॥15॥

    ऊरुदघ्ने नाभिदघ्ने हृद्दघ्ने कण्ठदघ्नके ।

    राधाकुण्डजले स्थिता यः पठेत् साधकः शतम् ॥16॥

    तस्य सर्वार्थ सिद्धिः स्याद् वाक्सामर्थ्यं तथा लभेत् ।

    ऐश्वर्यं च लभेत् साक्षाद्दृशा पश्यति राधिकाम् ॥17॥

    तेन स तत्क्षणादेव तुष्टा दत्ते महावरम् ।

    येन पश्यति नेत्राभ्यां तत् प्रियं श्यामसुन्दरम् ॥18॥

    नित्यलीला–प्रवेशं च ददाति श्री-व्रजाधिपः ।

    अतः परतरं प्रार्थ्यं वैष्णवस्य न विद्यते ॥19॥

    ॥ इति श्रीमदूर्ध्वाम्नाये श्रीराधिकायाः कृपाकटाक्षस्तोत्रं सम्पूर्णम ॥ 

    ज्योतिषशास्त्री पंकज प्रभु

    डिसक्लेमर: 'इस लेख में निहित किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना की सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारियां आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता इसे महज सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त, इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी।