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Paryushan Parva 2020: आत्मशुद्धि के साथ वैज्ञानिक आधार भी है पर्युषण पर्व का, जानिए महत्व

Paryushan Parva 2020 15 अगस्त से आरंभ हो रहा है जैन समाज का पवित्र पर्व। 22 अगस्त को होगा समापन।

By Tanu GuptaEdited By: Published: Fri, 14 Aug 2020 02:51 PM (IST)Updated: Fri, 14 Aug 2020 02:51 PM (IST)
Paryushan Parva 2020: आत्मशुद्धि के साथ वैज्ञानिक आधार भी है पर्युषण पर्व का, जानिए महत्व
Paryushan Parva 2020: आत्मशुद्धि के साथ वैज्ञानिक आधार भी है पर्युषण पर्व का, जानिए महत्व

आगरा, जागरण संवाददाता। भारतीय संस्कृति में पर्वों एवं त्योहारों की समृद्ध परंपरा है। पर्यूषण इसी परंपरा में जैन धर्म का एक महान पर्व है। पर्यूषण का शाब्दिक अर्थ है चारों ओर से सिमट कर एक स्थान पर निवास करना या स्वयं में वास करना। इस अवधि में व्यक्ति आधिए, व्याधि और उपाधि की चिकित्सा कर समाधि तक पहुंच सकता है। आधुनिक वास्तु एस्ट्रो विशेषज्ञ दीप्ति जैन के अनुसार पर्युषण पर्व जैन धर्म अनुयायी का अदभुत आत्म शुद्धि व उत्थान का पर्व है । यह पर्व 8-10 दिन के लिए भादों के महीने में होता है। श्वेतांबर जैन इसे 8 दिन तक अठाइयों के नाम से व दिगंबर जैन से 10 दिन तक दस लाक्षण  के नाम से मनाते हैं। 

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होती है आत्मशुद्धि

दीप्ति के अनुसार  यह पर्व पूर्ण आत्मशुद्धि के लिए मनाया जाता है। हर व्यक्ति अपनी क्षमता अनुसार इसे व्रत, पत, जप, संयम व साधना द्वारा पूर्ण करता है। जैन धर्म में सादगीपूर्ण, अहिंसावादी जीवन जीने को प्रेरित करता है । केवल आत्म उत्थान ही नहीं, यह धर्म पूर्ण वैज्ञानिक दृष्टि से भी व्यक्ति को शुद्धि प्रदान करता है। इस पर्व के दौरान अनुयायी फल सब्जी का त्याग कर उच्च प्रोटीन आहार लेते हैं।

क्या है वैज्ञानिक आधार

दीप्ति जैन इस पर्व का वैज्ञानिक बताती हैं। उनका कहना है कि भादों माह में हर फल- सब्जी में कीड़े मकौड़े पनप चुके होते हैं। जिसको खाने से व्यक्ति रोग का शिकार हो सकता है। साथ ही व्रत करने से शरीर का पाचन तंत्र मजबूत होता है।  इस पर्व के दौरान व्यक्ति अपने गुरु के समीप जाकर शास्त्र का वाचन सुनता है। यह शास्त्र मनुष्य के दूषित मन को शुद्ध कर ज्ञानवान बना कर सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह करते हैं। धर्म शास्त्र व्यक्ति को नीतिशास्त्र व आचार शास्त्र का ज्ञान देता है। जिंदगी की भाग दौड़ में न्याय -अन्याय का सामना कर, व्यक्ति अपने मूल आचरण को भूल जाता है। इस पर्व के दौरान वह पुनः अपने संस्कारों को जान पाता है। आत्मविश्लेषण करता है। इससे मानसिक रुप से व्यक्ति मजबूत होकर नीति पूर्वक जीवन जीने के लिए प्रेरित होता है। जैन धर्म में तप को बहुत महत्व दिया जाता है। तप करने से व्यक्ति की बौद्धिक क्षमता बढ़ती है। तप करने  से व्यक्ति परमात्मा के समीप होकर सकारात्मक ऊर्जा प्राप्त करता है। इस प्रक्रिया से व्यक्ति शांति की अनुभूति करता है। जीवन में शांति के अतिरिक्त और क्या चाहिए ?  पर्युषण पर्व के दौरान मंत्रों का निरंतर जाप होता है। इन मंत्रों के जाप से मनुष्य शारीरिक व मानसिक रुप से तनाव मुक्त होता है। मंत्र जाप से मस्तिष्क में मौजूद रसायनों की शुद्धि होती है । व्यक्ति भय, अवसाद व अशांति से मुक्ति पाता है।  यह हमारे अंतः स्रावी प्रणाली, तंत्रिका तंत्र तथा हार्मोन प्रणाली को संतुलित करता है। हमारे दूषित विचारों से मुक्ति दिला कर, हमें एक अनुशासित जीवन जीने के लिए प्रेरित करता है। हमें उच्च स्वास्थ्य व संतुष्टि प्रदान करता है। पयुर्षण पर्व के दौरान रात्रि भोजन निषेध होता है। यह प्रयोजन भी वैज्ञानिक है। देर रात में भोजन करने से हमारा पाचन तंत्र कमजोर होता है। व्यक्ति ना जाने कितनी बीमारियों का शिकार हो जाता है। यह पर्व हमारे भूले हुए संस्कारों व विचारों की पुण्य स्मृति कराता है। 

क्षमा दिवस है महत्वपूर्ण

इस पर्व की सुंदरता तो छुपी हुई है इस पर्व के अंत में होने वाले  'क्षमा दिवस' में। इस दिन हर व्यक्ति अपने समाज, परिवार, मित्र, सहयोगी आदि से वर्ष भर हुई त्रुटियों के लिए क्षमा मांगता है। अपने अहंकार का शमन कर हाथ जोड़कर एक दूसरे से श्रमा मांगते हैं। जब हम झुकते हैं तो हमारा कद और भी ऊंचा हो जाता है।


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