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    Menstruation Period: माहवारी पर गांवाें में आज भी मंदिर नहीं जातीं युवतियां, सर्वे में और भी बातें आईं सामने

    By Prabhjot KaurEdited By: Prateek Gupta
    Updated: Sat, 12 Nov 2022 12:56 PM (IST)

    Menstruation Period आगरा के आंबेडकर विवि के गृह विज्ञान संस्थान द्वारा कराए गए सर्वे में सामने आए चौंकाने वाले तथ्य। 77 प्रतिशत लड़कियों का स्कूल जाना होता है प्रभावित। 40 प्रतिशत लड़कियों के जननांगों पर कपड़े से होते हैं घाव।

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    Menstruation Period: ग्रामीण क्षेत्र की लड़कियाें पर माहवारी में होने वाली दिक्कताें पर सर्वे कराया गया है।

    आगरा, जागरण संवाददाता। आज के समय में माहवारी को लेकर माता-पिता भी जागरूक है, वो अपनी बेटियों को इस प्राकृतिक प्रक्रिया के लिए पहले से ही तैयार कर देते हैं। अब टीवी पर सैनिटरी पैड के विज्ञापन देखकर कोई चैनल नहीं बदलता। लड़कियां माहवारी के दौरान हर वो काम कर रही हैं, जो सामान्य दिनों में करती हैं। लेकिन देहात में आज भी माहवारी के दौरान 100 प्रतिशत लड़कियों को मंदिर में जाने की अनुमति नहीं है।

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    77 प्रतिशत लड़कियों का स्कूल जाना प्रभावित होता है। 40 प्रतिशत लड़कियों को कपड़ा इस्तेमाल पर जननांगों पर घाव होते हैं। 85.3 प्रतिशत लड़कियों का माहवारी के दौरान डिप्रेशन होता है। 96.6 प्रतिशत लड़कियों को पेट में दर्द की शिकायत रहती है। यह सारी जानकारी डा. भीमराव आंबेडकर विश्वविद्यालय के गृह विज्ञान संस्थान द्वारा एत्मादपुर तहसील, खंदौली ब्लाक के कुबेरपुर और भागूपुर गांव में 10 से 19 साल की 120 लड़कियों सर्वे में सामने आई है।

    इस तरह की गई सैंपलिंग

    दोनों गांवों में से 120 लड़कियों का चयन लाटरी के आधार पर किया गया। इनसे खान-पान, शिक्षा, सैनिटरी पैड या कपड़े के इस्तेमाल, जननांगों की सफाई, माहवारी के दौरान होने वाली दिक्कतों, सैनिटरी पैड या कपड़ों के निस्तारण, लंबाई, वजन, बाडी मास इंडेक्स, पोषक तत्व संबंधी सवाल पूछे गए। उसके बाद 10 से 13, 14 से 16 और 17 से 19 साल के समूह बना दिए गए।

    सैंपलिंग से निकले तथ्य

    - 50 प्रतिशत लड़कियां संयुक्त परिवार में रहती हैं।

    - 52.5 प्रतिशत लड़कियों के परिवारों की महीने की आमदनी 10 से 15 हजार रुपये है।

    - सिर्फ पांच प्रतिशत लड़कियों का वजन मानक से ज्यादा है।

    - 55.8 प्रतिशत लड़कियां नाश्ता नहीं करती हैं।

    - 85 प्रतिशत लड़कियां जंक फूड खाती हैं।

    - 64.1 प्रतिशत लड़कियां भोजन के अलावा अन्य पोषक तत्व नहीं लेती है।

    - 67.5 प्रतिशत लड़कियां माहवारी के दौरान दर्द-निवारक गोलियां नहीं लेती हैं।

    - 44.1 प्रतिशत लड़कियों को 12 से 14 साल के बीच माहवारी शुरू हुई।

    - 73.3 प्रतिशत लड़कियों को माहवारी के बारे में पहली माहवारी से पहले कुछ नहीं पता था।

    - 55.8 प्रतिशत लड़कियों को माहवारी के दौरान रसोई में जाने की अनुमति नहीं है।

    - 96.6 प्रतिशत लड़कियों को अचार नही छूने दिया जाता है।

    - 81.6 प्रतिशत लड़कियों को खाना नहीं बनाने दिया जाता है।

    - 93.3 प्रतिशत लड़कियों को खट्टा नहीं खाने को दिया जाता है।

    एक दिन में पूरी दुनिया में 880 करोड़ महिलाएं हर रोज माहवारी से गुजरती हैं। यह सामान्य प्रक्रिया है। अभी भी इसे लेकर भ्रम है। देहात में जागरूकता नहीं है। शहरों में भी सर्वे कराएंगे, तो 40 प्रतिशत लड़कियां सैनिटरी पैड ही इस्तेमाल करती हैं। इससे यूटरस में संक्रमण होता है। स्कूल-कालेजों में कार्यशालाओं की जरूरत है। माहवारी के दौरान सफाई सबसे जरूरी है। जागरूकता अभियान की जरूरत है।

    - डा. नरेंद्र मल्होत्रा, स्त्री रोग विशेषज्ञ

    माहवारी के दौरान लड़कियों को जानकारी नहीं होती। कई बार गंभीर दर्द होता है, लेकिन शर्म और पारंपरिक मान्यताओं के कारण खुलकर बात नहीं कर पाती हैं। माहवारी के दौरान अगर सफाई न रखी जाए तो संक्रमण भी होता है। मैंने और फूड एंड न्यूट्रिशन विभाग की विषय विशेषज्ञ प्रिया यादव ने इस सर्वे को कराया। हमने अपने संस्थान में ही यह समस्या देखी है, सर्वे के बाद जागरूकता अभियान भी चलाया गया।

    - प्रो. अर्चना सिंह, विभागाध्यक्ष, फूड एंड न्यूट्रिशन विभाग

    मैंने और मेरी सहेलियों ने माहवारी के दौरान आने वाली समस्याओं को झेला है और झेल रहे हैं। यही वजह है कि इस विषय पर सर्वे किया। यह सर्वे सिर्फ दो गांवों का है, लेकिन स्थिति शहर में भी खराब है।

    - शुभांगी वर्मा, सर्वेक्षक