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    यूपी का ये शहर है सुहाग नगरी के नाम से फेमस, पढ़िए सौ साल पुराना फिरोजाबाद की चूड़ियों का इतिहास

    By Abhishek SaxenaEdited By:
    Updated: Mon, 18 Jul 2022 09:05 PM (IST)

    Glass Bangles सुहागन के हाथों में खनकने वाली चूड़ी यूपी के शहर की याद दिलाती है। चूड़ी सुहाग का प्रतीक है और फिरोजाबाद को सुहाग नगरी के नाम से भी जानते हैं। आज देश के हर हिस्से में फिरोजाबाद की चूड़ी पहुंचती है।

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    Glass Bangless: फिरोजाबाद में सौ साल पुराना है चूड़ी का कारोबार, जागरण

    आगरा, जागरण टीम। चूड़ी जो खनकी हाथों में याद पिया की आने लगी... पहना दे मुझे हरी-हरी चूड़ियां... जैसे गाने जब भी सुनने को मिलते हैं तब यूपी के शहर फिरोजाबाद की खनक इन चूड़ी या कंगनों में आती है। फिरोजाबाद में सौ साल पहले ये कारोबार शुरू हुआ था। कभी भट्ठी पर शुरू हुआ काम आज अपडेट मोड़ में है और नेचुरल गैस से चूड़ी बनाई जाती है।

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    ऐसे बनती है चूड़ियां

    चूड़ी के कारखाने में भट्ठी में तकरीबन 1300 डिग्री ताप पर कांच के रूप में चूड़ी पिघलती है। इसके बाद रॉड पर खींची जाती है और हीरे से काटी जाती है। ठेलों में लदकर अंधेरे कमरों में रखने के बाद ये लड़कियों और महिलाओं के हाथों में खनकती है।

    देश में सबसे अधिक फिरोजाबाद में बनती हैं चूड़ियां

    चूड़ी के काम का इतिहास करीब सौ साल पुराना है। फिरोजाबाद में पहला कारखाना रुस्तम जी ने शुरू किया और धीरे-धीरे ये कारोबार बढ़ता चला गया। पहले कोयले और लकड़ी से भट्ठी धधकती थी और ताप को मेंटेन करने में कई दिन लगते थे।

    वर्ष 1996 में कारखानों को नेचुरल गैस का कोटा मिला तो भट्ठियाें की तापमान की समस्या खत्म हो गई। शहर में इस वक्त पौने दो सौ के करीब कारखाने संचालित हैं। जहां रोजाना सुबह छह बजे से काम शुरू हो जाता है।

    चूड़ी बनाने में होती है इनका इस्तेमाल

    सुहागन के हाथों में खनकने वाली चूड़ी बनाने के लिए सबसे पहले सिलिका सेंड, सोडा एश और कैल्साइट का मिश्रण तैयार कर फर्नेश भट्ठियों के पॉट में डाला जाता है। जिस रंग की चूड़ी तैयार करनी है उस हिसाब से रंग का केमिकल मिलाया जाता है। करीब 12 घंटे बाद 1300 डिग्री तापमान पर कांच पिघलकर तैयार होता है। इसके बाद प्रोसेस शुरू होता है। कारखानों में सुबह छह बजे से काम शुरू होता है।

    हाथों से होता है कांच का काम

    एक लोहे की रॉड में चूड़ी मजदूर भट्टी के होल में पिघला हुआ कांच निकालता है और वहां से अड्डे पर आता है। कांच के टुकड़े को शेप देकर ठंडा किया जाता है। मजदूर फिर से उसी कांच पर भट्ठी से नया कांच लेता है। कांच पर कांच चढ़ाने की यह प्रक्रिया तीन से चार बार दोहराई जाती है।

    इसके बाद यह बेलन पर जाता है। बेलन चलाने वाला करीगर मेकिंग की महत्वपूर्ण कड़ी होता है। हाथों से रॉड का बैलेंस इस तरह का बनाता है कि बेलन पर चलने वाले कांच की डोर एक सी रहे। यहां गोल लच्छे में तैयार होती है चूड़ी

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    हीरे के टुकड़े से काटते हैं तोड़ा

    गोल लंबे लच्छे की तरह तैयार होने वाली चूड़ियों को बेलन से उठाकर दूसरे स्थान पर रख दिया जाता है। जहां पर मजदूर लच्छों को हीरे के टुकड़े से काटते हैं। इससे चूड़ियां अलग-अलग हो जाती है और फिर लगभग 300 चूड़ियों को एक सुतली में बांधकर तोड़ा बना दिया जाता है। बाद में ये तोड़े कारखाने से हाथ ठेलों के जरिए छटाई और चिपकाई के लिए भेज दिए जाते हैं।

    त्योहार के हिसाब से रंग की आती है डिमांड

    आरएस ग्लास इंड्रस्टीज संचालक रीतेश जिंदल बताते हैं कि चूड़ी का रंग त्योहार के हिसाब से तय होता है। सावन के सीजन के लिए बिहार से सबसे ज्यादा हरी चूड़ी की डिमांड होती है। वहीं करवा चौथ पर लाल चूड़ी की डिमांड आती है। सबसे ज्यादा लाल चूड़ियां पंजाब जाती हैं।