आदि न अंत जिनका वो हैं शिव, जानिए क्या है शिव का अर्थ और विज्ञान Agra News
‘शि-व’ मंत्र में एक अंश उसे ऊर्जा देता है और दूसरा उसे संतुलित या नियंत्रित करता है। ब्रम्हांड के 99 फीसदी हिस्से में यही रिक्तता छाई हुई है जिसे हम शिव के नाम से जानते हैं।
आगरा, तनु गुप्ता। सावन और शिव, बिना शिव आराधना के सावन का माह अधूरा है। शिव आराधना से ही सावन माह पवित्र माना जाता है। देशभर में बम भोले की गूंज से यह माह शिवमय रहता है। अभी तक शिव आराधना की महिमा के बारे में आपने पढ़ा या सुना होगा लेकिन शिव, ये एक शब्द क्या है इसके बारे में बहुत ही अल्प साहित्य मिलता है। शिव और शक्ति दो शब्द लेकिन एक अर्थ लिये हैं। धर्म वैज्ञानिक पंडित वैभव जोशी के अनुसार शिव में ‘शि’ ध्वनि का अर्थ मूल रूप से शक्ति या ऊर्जा होता है। भारतीय जीवन शैली में, हमने हमेशा से स्त्री गुण को शक्ति के रूप में देखा है। मजेदार बात यह है कि अंग्रेजी में भी स्त्री के लिए ‘शी’(she) शब्द का ही इस्तेमाल किया जाता है। लेकिन यदि आप सिर्फ 'शि' का बहुत अधिक जाप करेंगे, तो वह आपको असंतुलित कर देगा। इसलिए इस मंत्र को मंद करने और संतुलन बनाए रखने के लिए उसमें 'व' जोड़ा गया। 'व' 'वाम' से लिया गया है, जिसका अर्थ है प्रवीणता। ‘शि-व’ मंत्र में एक अंश उसे ऊर्जा देता है और दूसरा उसे संतुलित या नियंत्रित करता है। दिशाहीन ऊर्जा का कोई लाभ नहीं है, वह विनाशकारी हो सकती है। इसलिए जब हम ‘शिव’ कहते हैं, तो हम ऊर्जा को एक खास तरीके से, एक खास दिशा में ले जाने की बात करते हैं।
धर्म वैज्ञानिक पंडित वैभव जोशी
शिव के बहुरंगी आयाम
जब हम ‘शिव’ कहते हैं तो इसका मतलब अलग अलग लोगों के लिए अलग होता है। यह किसी भी एक व्यक्ति का हो सकने वाला सर्वाधिक बहुआयामी व्याखान है। पंडित वैभव कहते हैं कि शिव को दुनिया का सर्वोत्कृष्ट तपस्वी या आत्मसंयमी कहा जाता है। वह सजगता की साक्षात मूरत हैं। लेकिन साथ ही मदमस्त व्यक्ति भी हैं। एक तरफ तो उन्हें सुंदरता की मूर्ति कहा जाता है तो दूसरी ओर उनका औघड़ व डरावना रूप भी है। शिव एक ऐसे शख्स हैं, जिनके न तो माता-पिता हैं, न कोई बचपन और न ही बुढ़ापा। उन्होंने अपना निर्माण स्वयं किया है। वह अपने आप में स्वयभू हैं। आपने कभी भी कहीं भी उनके माता-पिता, परविार, उनके बचपन और उनके जन्म के बारे में नहीं सुना होगा। दरअसल, वह अजन्मा हैं।
‘शिव’ शब्द की ताकत
पंडित वैभव जोशी कहते हैं कि सिर्फ ‘शिव’... आपको इस शब्द की ताकत पता होनी चाहिए। यह सब सोचते हुए अब आप अपने तार्किक दिमाग में मत खो जाइए। ‘ क्या मैं शिव शब्द का उच्चारण करता हूं तो क्या मेरा धर्म पविर्तन हो रहा है?’ यह सब फिजूल की बातें हैं। यह तो उन मानवीय सीमाओं से परे जाने का एक रास्ता है, जिसमें इंसान अकसर फंसा रह जाता है। जीवन की बहुत गहन समझ के साथ हम उस ध्वनि या शब्द तक पहुंचे हैं, जिसे हम ‘शिव’ कहते हैं। यदि आपमें किसी चीज को ग्रहण करने की अच्छी क्षमता है, तो सिर्फ एक उच्चारण आपके भीतर बहुत शक्तिशाली तरीके से विस्फोट कर सकता है।
'शिव’ का आशय है- रिक्तता या शून्यता
धर्म वैज्ञानिक पंडित वैभव जोशी के अनुसार ‘शिव’ शब्द का वास्तविक अर्थ ही है- जो नही है। ‘जो नहीं है’ से आशय है, जिसका अस्तित्व ही नहीं है। ‘जिसका अस्तित्व ही नहीं है’ का आशय है- रिक्तता, शून्यता। आकाशगंगाएं तो महज एक छोटी सी जगह हैं। सृष्टि का असल सार तत्व तो रिक्तता या कुछ न होने में है। इसी रिक्तता या कुछ न होना के गर्भ से ही तो सृष्टि का जन्म होता है।
शिव की तीसारी आंख का अर्थ
शिव का वर्णन हमेशा से त्रिअंबक के रूप में किया जाता रहा है, जिसकी तीन आंखें हैं। तीसरी आंख वह आंख है जिससे दर्शन होता है। आपकी दो आंखें इन्द्रियां हैं, ये मन को सभी तरह की अनर्गल चीजें पहुंचाती हैं, क्योंकि जो आप देखते हैं वह सत्य नहीं है। ये दो आंखें सत्य को नहीं देख पातीं हैं, इसलिए एक तीसरी आंख, एक गहरी भेदन शक्ति वाली आंख को खोलना होगा। शिव की तीसारी आंख इन्द्रियों से परे है जो जीवन के असली स्वरूप को देखती है। जीवन को वैसे देखती है जैसा कि यह है। तो अगर आपको अपने जीवन में स्पष्टता लाना है तो आपको अपनी तीसरी आंख खोलनी होगी।
योग के जन्मदाता आदियोगी शिव
पंडित वैभव कहते हैं कि भारत में आध्यात्मिक प्रकृति की बात करें तो हर किसी का एक ही लक्ष्य रहा है – मुक्ति। आज भी हर व्यक्ति मुक्ति शब्द का अर्थ जानता है। कभी सोचा है ऐसा क्यों है? दरअसल, इस देश में आध्यात्मिक विकास और मानवीय चेतना को आकार देने का काम सबसे ज्यादा एक ही शख्सियत के कारण है। जानते हैं कौन है वह? वह हैं शिव। आदि योगी शिव ने ही इस संभावना को जन्म दिया कि मानव जाति अपने मौजूदा अस्तित्व की सीमाओं से भी आगे जा सकती है। संसारिकता में रहना है लेकिन इसी का होकर नहीं रह जाना है। अपने शरीर और दिमाग को हर संभव इस्तेमाल करना है, लेकिन उसके कष्टों को भोगने की ज़रूरत नहीं है। कहने का मतलब यह है कि जीने का एक और भी तरीका है। हमारे यहां योगिक संस्कृति में शिव को ईश्वर के तौर पर नहीं पूजा जाता है। इस संस्कृति में शिव को आदि योगी माना जाता है। यह शिव ही थे जिन्होंने मानव मन में योग का बीज बोया।
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