Global Warming: बढ़ते तापमान के बीच तेजी से पिघल रहा है गंगाेत्री ग्लेशियर, RTI में आई जानकारी सामने
Global Warming पिछले 61 वर्षों में 1147 मीटर पिघल चुका है गंगोत्री ग्लेशियर। आगरा से मांगी गई आरटीआइ में भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण के निदेशक ने दी जानकारी। 1935 में पहली बार और 1996 में अंतिम बार हुआ था ग्लेशियर का सर्वे। इंतजाम नहीं आ रहे काम।

आगरा, निर्लाेष कुमार। दुनिया में बढ़ती ग्लोबल वार्मिंग का असर ग्लेशियरों पर भी पड़ रहा है। 61 वर्षाें में गंगोत्री ग्लेशियर 1147 मीटर पिघल चुका है। वर्ष 1935 से 1996 की अवधि में ग्लेशियर प्रतिवर्ष करीब 18.8 मीटर पिघला है। भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण (जीएसआइ) उत्तरी क्षेत्र, लखनऊ के निदेशक राकेश मिश्रा ने यह जानकारी सूचना का अधिकार (आरटीआइ) में उपलब्ध कराई है।
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जीएसआइ से मांगी थी जानकारी
नूरी दरवाजा स्थित कालीबाड़ी निवासी डा. देवाशीष भट्टाचार्य ने आरटीआइ में जीएसआइ से जानकारी मांगी थी। उन्होंने पूछा था कि पिछले 50 वर्षों में गंगोत्री व यमुनोत्री ग्लेशियर कितने पिघले हैं? हिमालयन रेंज में ग्लेशियर्स के पिघलने की दर क्या है? गंगोत्री व यमुनाेत्री ग्लेशियर को भविष्य के लिए सुरक्षित रखने को क्या कदम उठाए गए हैं? डा. भट्टाचार्य द्वारा आरटीआइ में मांगी गई जानकारी पर जीएसआइ उत्तरी क्षेत्र, लखनऊ के निदेशक राकेश मिश्रा ने सूचना उपलब्ध कराई है।
यमुनाेत्री ग्लेशियर का नहीं रिकॉर्ड
मिश्रा ने अवगत कराया है कि भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण ने पिछले 50 वर्षों में गंगोत्री ग्लेशियर की निरंतर निगरानी नहीं की है। गंगोत्री ग्लेशियर की सबसे पहले निगरानी आडेन ने वर्ष 1935 में की थी। वर्ष 1956, 1971, 1974, 1975, 1976, 1977, 1990 और 1996 में गंगोत्री ग्लेशियर की निगरानी की गई। जीआइएस के पास उपलब्ध रिकार्ड के अनुसार वर्ष 1935 से 1996 के बीच गंगोत्री ग्लेशियर प्रतिवर्ष 18.8 मीटर प्रतिवर्ष पिघला है। जीआइएस द्वारा यमुनोत्री ग्लेशियर की निगरानी नहीं की जाती है।
जीआइएस ने बड़े पैमाने पर संतुलन का आकलन करते हुए ग्लेशियरों के पिघलने पर अध्ययन किया है और ग्लेशियरों की मंदी की प्रगति की समीक्षा की है। अध्ययन में पता चला है कि हिमालयन रेंज में ग्लेशियरों के पिघलने की दर अलग-अलग है। जीआइएस ने ग्लेशियरों को पिघलने से बचाने को कोई विशेष अध्ययन नहीं किया है।
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