उपवास में गर्भवती महिलाएं रखें यह ध्यान, जानें नवरात्र के व्रत की महिमा, खानपान, विधान
बुधवार से शुरू हो रहे हैं शारदीय नवरात्र। 18 अक्टूबर तक चलेगी मां दुर्गा की विशेष आराधना। नौ दिनों तक उपवास के साथ मनाया जाएगा शक्ति की आराधना का पर्व।
आगरा [तनु गुप्ता]: शक्ति की भक्ति का पर्व नवरात्र बुधवार से आरंभ हो रहे हैं। चारों दिशाओं में हवन सामग्री की सुगंध होगी। मंदिरों में घंटें की ध्वनि होगी और श्रद्धा के साथ उपवास की शुरुआत होगी।
हर उम्र और वर्ग का भक्त आदिशक्ति को प्रसन्न करने के लिए व्रत करने की इच्छा रखता है। जगत माता के व्रत करने की यही इच्छा गर्भवती महिलाओं की भी होती है लेकिन गर्भस्थ शिशु की चिंता के चलते बनने वाली मां, भगवती मां की आराधना करने से संकोच भी कर जाती है। डायटिशियन आकांक्षा गुप्ता के अनुसार यदि गर्भवती स्त्रियां व्रत रखना चाहती हैं तो कुछ विशेष बातों का ध्यान रख निश्चिंत होकर व्रत रख सकती हैं। लेकिन इससे पहले अपनी डॉक्टर की सलाह जरूर ले लें।
गरिष्ठ भोजन से रखें परहेज
नवरात्र व्रत का यह मतलब नहीं होता कि आपको पूरे दिन भूखा और प्यासा रहना पड़ेगा। नवरात्र व्रत में आलू, घी, साबूदाना, कुटू और भारी फलाहार खाने का चलन होता है लेकिन गर्भवती और स्तनपान कराने वाली महिलाओं को आलू, खीर, साबूदाना, पकौड़े जैसे विशिष्ट नवरात्र भोजन से परहेज करना चाहिए, क्योंकि ये भोजन आपको मोटा कर सकते हैं साथ ही जटिलताएं भी उत्पन्न कर सकते हैं। कई महिलाएं व्रत के समय नमक नहीं खाती जिससे उनके अंदर कमजोरी पैदा हो जाती है और फिर चक्कर आने लगते हैं।
हेल्दी खाना खाएं
किसी भी अवस्था में अपने शरीर को तकलीफ ना दें। जब आप गर्भवती होती हैं तब आप और आपके बच्चे को एनर्जी की आवश्यकता होती है। इस दौरान ताजे फल और ऐसी सामग्रियां खाती रहें जो व्रत के समय आवश्यक हों। आप ड्राइफूट भी खा सकती हैं।
न रहें लंबे समय तक भूखी
कुछ महिलाएं जोश में आकर लंबे समय तक कुछ नहीं खातीं। ऐसा करने से शरीर में कमजोरी, एसिडिटी, सिरदर्द और खून की कमी हो जाती है। कई महिलाएं व्रत के समय नमक बिल्कुल त्याग देती हैं। गर्भवती महिलाएं गलती से भी ऐसा न करें। नमक ना खाने से बीपी लो होने की संभावना हो जाती है।
न करें शरीर के संकेतों को नजर अंदाज
कभी भी शरीर के संकेतों को नजरअंदाज ना करें। अगर आपको नींद या कमजोरी आ रही है तो अपने शरीर की बात को तुरंत सुनें। व्रत के दौरान बच्चे की मूवेंट पर ध्यान हो, अगर जरा सा भी स्थिति बदलती हुई लगे तो तुरंत डॉक्टर से मिलें।
लेती रहें तरल पदार्थ
व्रत रखते समय केवल ठोस पदार्थो पर ही ना टिकी रहें बल्कि तरल पदार्थ भी लें। छाछ, ताजा जूस, दूध और ढेरा सारा पानी पीना आवश्यक है। नारियल पानी का सेवन भरपूर करें।
कब रख सकती हैं व्रत
डॉक्टर की सहमति और उनके दिए गए निर्देश के अनुसार ही व्रत रखें। यदि पूरी तरह से गर्भवती महिला स्वस्थ हैं और उसे कमजोरी, खून की कमी या किसी भी प्रकार का संक्रमण नहीं है तो वो व्रत रह सकती है। अगर गर्भ तीन महीने से ज्यादा का है तो महिला व्रत रख सकती है लेकिन अगर इससे कम का है तो व्रत रहना सही नहीं है।
जानें क्यों जरूरी है शक्ति पर्व में उपवास
व्रत का अर्थ है संकल्प या दृढ़ निश्चय। उपवास का अर्थ है कि ईश्वर या इष्टदेव के पास बैठना। व्रत-उपवास करने से शारीरिक, मानसिक और धार्मिक लाभ मिलते हैं। नवरात्र में किए गए व्रत से हमारा शरीर स्वस्थ रहता है। ज्योतिषाचार्य डॉ. शोनू मेहरोत्रा के अनुसार एक वर्ष में चार बार नवरात्र आते हैं। जिनमें से दो नवरात्र गुप्त कहलाते हैं। जब दो ऋतुओं के संधिकाल यानी जब एक ऋतु बदलती है और दूसरी ऋतु शुरू होती है तो उन दिनों में नवरात्र मनाया जाता है।
बीमारियों से बचाता उपवास
ऋतुओं के संधिकाल में बीमारियां होने की संभवानाएं काफी बढ़ जाती हैं। इस कारण इन दिनों में खान-पान का विशेष ध्यान रखना चाहिए। खान-पान में किसी प्रकार की गड़बड़ी ना हो, इसलिए नवरात्र में व्रत-उपवास करने की परंपरा बनाई गई है।
व्रत देते हैं सेहतभरी सौगात
व्रत उपवास से शरीर स्वस्थ रहता है। निराहार रहने, एक समय भोजन लेने अथवा केवल फलाहार से पाचनतंत्र को आराम मिलता है। डायटिशियन आकांक्षा कहती हैं कि व्रत करने से कब्ज, गैस, एसिडीटी अजीर्ण, अरूचि, सिरदर्द, बुखार, मोटापा जैसे कई रोगों का नाश होता है। आध्यत्मिक शक्ति बढ़ती है। ज्ञान, विचार, पवित्रता बुद्धि का विकास होता है। इसी कारण उपवास व्रत को पूजा पद्धति को शामिल किया गया है।
क्यों करते हैं व्रत में फलाहार
जो लोग नवरात्र में व्रत करते हैं, वे इन दिनों में अन्न का त्याग करते हैं। अन्न में पौष्टिक तत्व होते है, साथ ही इसमें कई ऐसे तत्व होते हैं जो हमें आलस्य भी बढ़ाते हैं। अन्न खाने के बाद हमें नींद व आलस्य घेर लेते हैं और इस वजह से हम मां की भक्ति में अधिक ध्यान नहीं लगा पाते। पूजा-पाठ के समय आलस्य को दूर करने के लिए इन दिनों सात्विक फलाहार किया जाता है। फलाहार हमारे शरीर को सभी आवश्यक पौष्टिक तत्व देता है और मौसमी बीमारियों से रक्षा करता है।
उपवास सामग्री के दाम
कुट्टू का आटा 100
सिंघाड़े का आटा 100
मखाने 700
समा के चावल 80
साबूदाना 80
माता की लाल चुनरी सितारों वाली
बुधवार से शुरू हो रहे नवरात्र के लिए घरों मेें दुर्गा स्थापना, उनके शृंगार और पूजा के लिए बाजार सजकर तैयार है। हर कोई अपने घर माता रानी के दरबार को खास बनाना चाहता है। उनके शृंगार में कोई कमी न रह जाए, इसके लिए बाजारों में भक्तों की भीड़ आना शुरू हो गई।
माता रानी की पोशाक के साथ उनके लिए छत्र, चक्र और नथ आदि की खरीदारी शुरू हो गई है। बाजार मेें सबसे ज्यादा मांग कुंदन और दबके के वर्क वाली पोशाकों की है। महिलाएं इन्हीं पोशाक को खरीद रही है। कुंदन के वर्क वाली पोशाक 50 से 200 रुपये तक तो दबके के वर्क वाली पोशाक बाजार में सबसे मंहगी है। यह पोशाक 200 से 1000 रुपये तक बाजार में बिक्री हो रही है। शाहगंज स्थित विकास गुप्ता ने बताया कि शृंगार के लिए बॉक्स भी मौजूद है, जो 10 से लेकर 100 रुपये कीकीमत का उपलब्ध है। जरी वर्क वाला लहंगा, चुनरी, चोली, मुकुट भी खरीदे जा रहे हैं।
कलश स्थापना कर करें माता का आह्वान
सनातन हिंदू धर्म से जुड़ी मान्यताओं के अनुसार सभी भगवानों की पूजा और पूजा में इस्तेमाल की जाने वाली सामग्रियों का एक सही समय और प्रक्रिया होती है। इसी तरह मां दुर्गा के इस पर्व पर भी कलश स्थापित किया जाता है। पंडित किशन वाजपेयी के अनुसार लाल रंग का आसन, मिट्टी का पात्र, जौ, कलश के नीचे रखने के लिए मिट्टी, कलश, मौली, लौंग, इलायची, कपूर, रोली, साबुत सुपारी, चावल, अशोका या आम के पांच पत्ते, नारियल, चुनरी, सिंदूर, फल-फूल, माता का श्रृंगार और फूलों की माला पहले ही लाकर रख लें।
ऐसे करें कलश स्थापना
नवरात्रि के पहले दिन खुद नहाकर मंदिर की सफाई करें और हर शुभ काम की तरह सबसे पहले गणेश जी का नाम लें। मां दुर्गा के नाम की अखंड ज्योत जलाएं और मिट्टी के पात्र में मिट्टी डालकर उसमें जौ के बीच डालें। एक तांबे के लोटे (कलश) पर मौली बांधें और उस पर स्वास्तिक बनाएं। लोटे (कलश) पर कुछ बूंद गंगाजल डालकर उसमें दूब, साबुत सुपारी, अक्षत और सवा रुपया डालें। अब लोटे (कलश) के ऊपर आम या अशोक पांच पत्ते लगाएं और नारियल को लाल चुनरी में लपेटकर रखें। अब इस कलश को जौ वाले मिट्टी के पात्र के बीचोबीच रख दें।
क्यों करते हैं कलश की स्थापना
कलश स्थापना को घट स्थापना भी कहा जाता है। मान्यता है कि कलश स्थापना मां दुर्गा का आह्वान है। मान्यता है कि इससे देवी मां घर में विराजमान रहकर अपनी कृपा बरसाती हैं।
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