Chaturmas 2025 अंतिम शुभ मुहूर्त आज, गुरु अस्त और चातुर्मास से लगेगा मांगलिक कार्यों पर विराम
चातुर्मास से पहले 8 जून को अंतिम शुभ मुहूर्त है। गुरु अस्त होने और चातुर्मास लगने के कारण लगभग साढ़े पांच महीने तक शुभ कार्य नहीं होंगे। 15 नवंबर तक विवाह समारोह नहीं होंगे अगला विवाह योग 2 नवंबर के बाद शुरू होगा। चातुर्मास 6 जुलाई से शुरू होकर 1 नवंबर तक चलेगा जिसमें भगवान विष्णु के शयन मुद्रा में होने के कारण शुभ कार्य वर्जित रहेंगे।

जागरण संवाददाता, आगरा। चातुर्मास से पूर्व आठ जून को अंतिम शुभ मुहूर्त है। इसके बाद गुरु के अस्त होने और फिर चातुर्मास लगने के कारण करीब साढ़े पांच महीने के लिए शुभ व मांगलिक कार्यों पर रोक लग जाएगी। सनातन धर्म में धार्मिक मान्यताओं और पंचांगीय गणनाओं के अनुसार विवाह, गृह प्रवेश, नामकरण जैसे शुभ कार्य विशिष्ट मुहूर्त में ही होते हैं।
इसके बाद गुरु अस्त और चातुर्मास के कारण 15 नवंबर तक विवाह समारोह नहीं हो सकेंगे। यानी लगभग साढ़े पांच महीने तक मांगलिक कार्यों पर विराम रहेगा। अगला विवाह योग देवउठनी एकादशी पर दो नवंबर के बाद ही प्रारंभ होगाष
12 जून से नौ जुलाई तक गुरु ग्रह रहेंगे अस्त
ज्योतिषाचार्य पं. चंद्रेश कौशिक ने बताया कि ज्योतिषीय दृष्टिकोण से विवाह मुहूर्त में गुरु (बृहस्पति) और शुक्र की स्थिति अत्यंत महत्वपूर्ण होती है। गुरु का अस्त होना अशुभ माना जाता है और इस दौरान विवाह जैसे शुभ कार्य वर्जित हो जाते हैं। वर्ष 2025 में 12 जून से नौ जुलाई तक गुरु ग्रह अस्त रहेंगे। यह अवधि कुल 27 दिन तक चलेगी। इस खगोलीय घटना के चलते चातुर्मास से पूर्व आठ जून को अंतिम विवाह मुहूर्त होगा। पंचांगीय गणना अनुसार चातुर्मास के बाद पहला शुभ मुहूर्त 15 नवंबर के बाद आएगा।
चातुर्मास छह जुलाई से, एक नवंबर तक नहीं होंगे शुभ कार्य
12 जून से नौ जुलाई तक गुरु अस्त रहेंगे। इस अवधि के पूर्ण होने से पूर्व ही आषाढ़ शुक्ल एकादशी को छह जुलाई चातुर्मास प्रारंभ हो जाएंगे, जो एक नवंबर को देवोत्थान एकादशी तक चलेंगे। सनातन धर्म में चातुर्मास अत्यंत पवित्र माने जाने हैं क्योंकि मान्यता है कि इन चार माह के काल के लिए भगवान विष्णु शयन मुद्रा में चले जाते हैं इसलिए इस दौरान विवाह, मुंडन, गृह प्रवेश, जैसे सभी शुभ कार्यों पर पूर्ण रोक रहती है।
पौराणिक मान्यता भी है कि भगवान के विष्णु क्षीर सागर में योगनिद्रा में जाने से देवता भी तप में लीन हो जाते हैं इसलिए यह समय साधना, व्रत, तप और भक्ति के लिए उपयुक्त होता है, न कि उत्सवों और मांगलिक आयोजनों के लिए।
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