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    Taj Mahal के अलावा शाहजहां की बेगम के नाम पर आबाद हैं आगरा के इलाके, बंदी के नाम से भी जाना जाता है एक तो

    By Nirlosh KumarEdited By: Tanu Gupta
    Updated: Mon, 10 Oct 2022 03:31 PM (IST)

    खंदारी और बाग फरजाना मोती कटरा से यह है संबंध। इतिहासकार राजकिशोर राजे ने अपनी पुस्तक तवारीख-ए-आगरा में जिक्र। शाहजहां की प्रेयसी बेगम फरजाना का निवास था बाग फरजाना में। बेगम कंधारी बेगम का महल था खंदारी पर। शाहजहां की एक बंदी मोती बेगम का निवास था मोती कटरा में।

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    शाहजहां की बेगमों का खंदारी और बाग फरजाना, मोती कटरा से है संबंध।

    आगरा, जागरण संवाददाता। मुगल शहंशाह शाहजहां ने अपनी बेगम अर्जुमंद बानो (मुमताज महल) की याद में ताजमहल की तामीर कराकर दुनिया को मोहब्बत की अनमोल निशानी भेंट की। मुमताज को तो पूरी दुनिया जान गई, लेकिन शाहजहां की अन्य बेगमों, प्रेमिकाओं के मकबरे और उनके नाम पर बसे क्षेत्र इतिहास में कहीं गुम होकर रह गए। समय के साथ कई का नामोनिशान मिट गया और वह किस्से-कहानियों तक सीमित रह गए।

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    मुगल शहंशाह शाहजहां की बेगमों, प्रेमिकाओं और बंदी के नाम पर आगरा में आबाद क्षेत्रों का उल्लेख इतिहासकार राजकिशोर राजे ने अपनी पुस्तक "तवारीख-ए-आगरा' में किया है। उन्होंने अपनी पुस्तक में बाग फरजाना को शाहजहां की प्रेयसी बेगम फरजाना, खंदारी को शाहजहां की बेगम कंधारी और मोती कटरा को शाहजहां की बंदी मोती बेगम से संबंधित बताया है।

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    बाग फरजाना

    बाग फरजाना में वर्तमान में शहर के प्रमुख चिकित्सकों के निवास व चिकित्सालय है। यह स्थान दिल्ली गेट के नजदीक है। यहां शाहजहां की प्रेयसी बेगम फरजाना का निवास था। वह जफर खां की पत्नी थी। उसके नाम पर ही इस जगह का नाम बाग फरजाना पड़ा। ब्रिटिश काल में यहां स्थित शाही इमारत क्रिश्चियंस के अधिकार में आ गई।

    खंदारी

    बाग फरजाना से कुछ दूरी पर शाहजहां की एक अन्य बेगम कंधारी बेगम का महल था। इसमें एक बड़ा सरोवर था। ब्रिटिश काल में यह महल अंग्रेजों द्वारा भरतपुर के राजा को बेच दिया गया था। भरतपुर के राजा ने मुगलकालीन निर्माण को तुड़वाकर अपना अपना महल बनवाया था, जिसे भरतपुर हाउस कहते थे। भरतपुर हाउस की जगह पर वर्तमान में पाश कालोनी विकसित हो चुकी है। खंदारी चौराहा के नजदीक आरबीएस कालेज की चहारदीवारी पर उस काल के गुंबद व अन्य चिह्न बने हुए हैं। कालांतर में यह जगह कंधारी बेगम के नाम पर ही खंदारी के नाम से प्रसिद्ध हो गई। कंधारी बेगम का मकबरा ताजमहल के पूर्वी गेट के नजदीक स्थित संदली मस्जिद (काली मस्जिद) के पीछे बना हुआ है। यह पर्यटकों के लिए बंद है।

    मोती कटरा

    एसएन मेडिकल कालेज के नजदीक स्थित मोती कटरा घनी आबादी वाला क्षेत्र है। यहां मुगल शहंशाह शाहजहां की एक बंदी मोती बेगम का निवास था। उस समय इस जगह को मोती बेगम का कटरा कहा जाता था। कालांतर में यह जगह मोती कटरा के नाम से प्रसिद्ध हो गई। मोती बेगम के लिए शाहजहां ने यमुना पार में बाग लगवाया था। बाग में मोती बेगम के नाम पर मस्जिद भी बनवाई थी। इसका पश्चिमी भाग यमुना पुल के मार्ग में आने के कारण अंग्रेज अफसर मैकेंजी ने तुड़वा दिया था।

    ताजमहल में दफन हैं चार बेगमें

    ताजमहल में मुमताज के अलावा शाहजहां की तीन अन्य बेगमों के मकबरे भी हैं। पूर्वी गेट के नजदीक सरहिंदी बेगम, पश्चिमी गेट के नजदीक फतेहपुरी बेगम के मकबरे हैं। संदली मस्जिद के नजदीक कंधारी बेगम का मकबरा है।

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    इन बेगमों का मिलता है जिक्र

    एएसआइ के आगरा सर्किल में अधीक्षण पुरातत्वविद् डी. दयालन ने अपनी पुस्तक "ताजमहल एंड इट्स कंजर्वेशन' में शाहजहां की बेगमों का जिक्र किया है।

    -कंधारी बेगम: यह कंधार के शासक मिर्जा मुजफ्फर हुसैन की बेटी थीं। इन्हें कंधारी बेगम के साथ ही अकबराबादी महल के नाम से भी जाना जाता है। कंधारी बेगम के साथ शाहजहां का निकाह आठ या नौ अक्टूबर, 1610 को हुआ था

    -मुमताज-अल-जमानी: यह आसफ खां की बेटी और मुगल साम्राज्ञी नूरजहां की भतीजी थीं। 10 मई, 1612 को शाहजहां का इनके साथ निकाह हुआ था। दोनों का राेका पांच अप्रैल, 1607 को हुआ था।

    -शाह नवाज खान की बेटी: शाह नवाज खान की बेटी से शाहजहां ने तीन सितंबर, 1617 को निकाह किया था।

    -इतिहासकारों ने अकबराबादी महल, फतेहपुरी महल और कंधारी बेगम का जिक्र शाहजहां की बेगमों के रूप में किया है, लेकिन इतिहासकारों में इनकी स्थिति को लेकर विवाद है। अकबराबादी महल को ऐयाज-उन-निसा के नाम से जाना जाता है। शाहजहांनाबाद के बाहर बनवाए गए बदली उद्यान को ऐजाबाद के नाम से जाना जाता था। अकबराबादी महल ने शाहजहां को उसके 64वें जन्मदिन पर हीरे की अंगूठी भेंट की थी, जिसका मूल्य करीब 30 हजार रुपये था। मआसिर-ए-आलमगीरी के अनुसार अकबराबादी महल की मृत्यु 1677 में हुई थी। फतेहपुरी बेगम ने दिल्ली में पश्चिमी चांदनी चौक में वर्ष 1650 में मस्जिद बनवाई थी, जिसे फतेहपुरी मस्जिद के नाम से जाना जाता है। ताजमहल पश्चिमी गेट के नजदीक स्थित मस्जिद को भी फतेहपुरी बेगम के नाम से जाना जाता है। फतेहपुरी बेगम का दफन ताजमहल परिसर में पश्चिमी गेट के नजदीक किया गया था।