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    Agra Fort: कभी शान था तख्त-ए-ताउस, एक हजार किलो शुद्ध सोने के साथ जड़े थे हीरे, सबसे पहले बैठा था शाहजहां

    By Nirlosh KumarEdited By: Abhishek Saxena
    Updated: Mon, 03 Oct 2022 06:36 PM (IST)

    Agra Fort तख्त-ए-ताउस था कभी आगरा किला की शान। 1150 किग्रा शुद्ध सोने से बना था वर्ष 1648 में राजधानी परिवर्तन पर दिल्ली ले जाया गया था। वर्ष 1739 में ईरान का शाह नादिरशाह लूटकर ले गया था।

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    Agra Fort: आगरा किला की शान था तख्त-ए-ताउस।

    आगरा, (निर्लोष कुमार)। कला प्रेमी मुगल शहंशाह शाहजहां ने दुनिया को मोहब्बत की अनमोल निशानी ताजमहल देने के साथ तख्त-ए-ताउस का निर्माण कराया था। 1150 किग्रा शुद्ध सोने से बना और बेशकीमती हीरों व अन्य रत्नों से जड़ा तख्त-ए-ताउस कभी आगरा किला की शान हुआ करता था।

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    शहंशाह शाहजहां आगरा किला में ही सबसे पहले तख्त-ए-ताउस पर बैठा था। राजधानी परिवर्तन पर यह दिल्ली ले जाया गया। बाद में वर्ष 1739 में ईरान का शाह नादिरशाह इसे लूटकर अपने साथ ले गया था। वर्ष 1747 में उसकी मौत के बाद तख्त-ए-ताउस गायब हो गया और वह एक रहस्य बनकर रह गया।

    तख्त-ए-ताउस को मयूर सिंहासन भी कहते हैं

    शहंशाह शाहजहां का तख्त-ए-ताउस जिसे मयूर सिंहासन भी कहा जाता है, शुद्ध सोने का बना था। इतिहासकार राजकिशोर राजे ने अपनी पुस्तक "तवारीख-ए-आगरा' में लिखा है कि तख्त-ए-ताउस में बेशकीमती रत्न जड़े हुए थे।

    • यह सिंहासन पलंग के समान था।
    • इसमें लगा मीनाकारी युक्त सुंदर चंदोबा पन्ने के बने बारह खंबों पर टिका था।
    • प्रत्येक खंबे पर दो रत्नजड़ित मोर बने थे।
    • प्रत्येक मोर के मध्य में हीरे, मोती आैर पन्ने से लदा एक पेड़ था।
    • तख्त-ए-ताउस की छत के भीतरी हिस्से पर दिलकश मीनाकारी थी।
    • इसकी बाहरी छत पर भी कीमती रत्न जड़े हुए थे।
    • तख्त-ए-ताउस पर चढ़ने के लिए सोने की बनी तीन ठोस सीढ़ियां थीं।
    • तख्त-ए-ताउस के मध्य में जहांगीर को फारस के शाह द्वारा उपहार में दिया गया सुंदर लाल लगा था।

    बादशाहनामा में मिलता है जिक्र

    अब्दुल हमीद लाहौरी के "बादशाहनामा' में शाहजहां के तख्त-ए-ताउस पर बैठने का जिक्र मिलता है। लाहौरी ने लिखा है कि आगरा किला में शाहजहां पहली बार तीन फरवरी, 1632 को तख्त-ए-ताउस पर बैठा था। तख्त-ए-ताउस का निर्माण शाहजहां के निर्देशों पर उस समय के आगरा के जौहरी बेबादल की देखरेख में किया गया था। कुछ इतिहासकारों ने इसकी अलग-अलग तिथियां बताई हैं।

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    मुगल कवि कुदसी ने 20 दोहों की कविता शहंशाह शाहजहां की प्रशंसा करते हुए तख्त-ए-ताउस पर लिखी थी। इसमें शाहजहां के सिंहासन पर बैठने की तिथि 12 मार्च, 1635 लिखी है। जार्ज फ्रेडरिक कुंज की वर्ष 1908 में प्रकाशित पुस्तक "द बुक आफ द पर्ल' में भी शाहजहां के तख्त-ए-ताउस पर बैठने की तिथि 12 मार्च, 1635 दी गई है।

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    टेवर्नियर ने किया है वर्णन

    मुगल काल में भारत की यात्रा पर आए प्रसिद्ध फ्रेंच यात्री जीन बेप्टिस्ट टेवर्नियर ने तख्त-ए-ताउस का आंखों देखा हाल लिखा है। टेवर्नियर ने वर्ष 1630 से 1668 के मध्य भारत की छह यात्राएं की थीं। टेवर्नियर 12 सितंबर, 1665 से 11 नवंबर, 1665 तक दिल्ली में औरंगजेब के दरबार में रहा था। तब उसने तख्त-ए-ताउस को देखा था।

    वर्ष 1648 में दिल्ली पहुंचा

    शाहजहां ने वर्ष 1648 में दिल्ली को अपनी राजधानी बनाया था। तब तख्त-ए-ताउस को आगरा से दिल्ली ले जाया गया था। इसे दिल्ली के लाल किले में रखा गया था। वर्ष 1739 में ईरान के शाह नादिरशाह ने मुगल शहंशाह मुहम्मद शाह रंगीला के समय दिल्ली पर आक्रमण किया था। दिल्ली की लूट में वह तख्त-ए-ताउस को भी अपने साथ ले गया था। वर्ष 1747 में नादिरशाह की मृत्यु के बाद तख्त-ए-ताउस गायब हो गया।