Move to Jagran APP

पूजन में आचमन है जरूरी लेकिन क्या है सही विधि जानने के लिए पढ़ें

मनुस्मृति के अनुसार आचमन हमेशा ब्रह्मतीर्थ से करना चाहिए। आचमन करने से पहले अंगुलियां मिलाकर एकाग्रचित्त यानी एकसाथ करके पवित्र जल से बिना शब्द किए तीन बार आचमन करने से महान फल मिलता है। आचमन हमेशा तीन बार करना चाहिए।

By Tanu GuptaEdited By: Published: Sat, 04 Dec 2021 02:01 PM (IST)Updated: Sat, 04 Dec 2021 02:01 PM (IST)
पूजन में आचमन है जरूरी लेकिन क्या है सही विधि जानने के लिए पढ़ें
तीन बार आचमन करने से महान फल मिलता है। आचमन हमेशा तीन बार करना चाहिए।

आगरा, जागरण संवाददाता। पूजा, यज्ञ आदि आरंभ करने से पूर्व शुद्धि के लिए मंत्र पढ़ते हुए जल पीना ही आचमन कहलाता है। इससे मन और हृदय की शुद्धि होती है। सनातन धर्म की जानकार विनीता मित्तल के अनुसार धर्मग्रंथों में तीन बार आचमन करने के संबंध में कहा गया है। 

loksabha election banner

प्रथमं यत् पिवति तेन ऋग्वेद प्रीणाति । यद् द्वितीयं तेन यजुर्वेदं प्रीणाति यद् तृतीयं तेन सामवेदं प्रीणाति ॥

अर्थात् तीन बार आचमन करने से तीनों वेद यानी-ऋग्वेद, यजुर्वेद व सामवेद प्रसन्न होकर सभी मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं। मनु महाराज के मतानुसार

त्रिराचामेदपः पूर्वम् ।

-मनुस्मृति 2/60

सबसे पहले तीन बार आचमन करना चाहिए। इससे कंठशोषण दूर होकर, कफ़ निवृत्ति के कारण श्वसन क्रिया में व मंत्रोच्चारण में शुद्धता आती है। इसीलिए प्रत्येक धार्मिक कृत्य के शुरू में और संध्योपासन के मध्य बीच-बीच में अनेक बार तीन की संख्या में आचमन का विधान बनाया गया है। इसके अलावा यह भी माना जाता है कि इससे कायिक, मानसिक और वाचिक तीनों प्रकार के पापों की निवृत्ति होकर न दिखने वाले फल की प्राप्ति होती है।

अंगूठे के मूल में ब्रह्मतीर्थ, कनिष्ठा के मूल प्रजापत्यतीर्थ, अंगुलियों के अग्रभाग में देवतीर्थ, तर्जनी और अंगूठे के बीच पितृतीर्थ और हाथ के मध्य भाग में सौम्यतीर्थ होता है, जो देवकर्म में प्रशस्त माना गया है। आचमन हमेशा ब्रह्मतीर्थ से करना चाहिए। आचमन करने से पहले अंगुलियां मिलाकर एकाग्रचित्त यानी एकसाथ करके पवित्र जल से बिना शब्द किए तीन बार आचमन करने से महान फल मिलता है। आचमन हमेशा तीन बार करना चाहिए।

आचमन के मंत्र

जल लेकर तीन बार निम्न मंत्र का उच्चारण करते हैं:- हुए जल ग्रहण करें-

ॐ केशवाय नम:

ॐ नाराणाय नम:

ॐ माधवाय नम:

ॐ ह्रषीकेशाय नम:, बोलकर ब्रह्मतीर्थ (अंगुष्ठ का मूल भाग) से दो बार होंठ पोंछते हुए हस्त प्रक्षालन करें (हाथ धो लें)। उपरोक्त विधि ना कर सकने की स्थिति में केवल दाहिने कान के स्पर्श मात्र से ही आचमन की विधि की पूर्ण मानी जाती है।

सही विधि

आचमन करने के बारे में मनुस्मृति में भी कहा गया है कि ब्रह्मतीर्थ यानी अंगूठे के मूल के नीचे से इसे करें अथवा प्राजापत्य तीर्थ यानी कनिष्ठ उंगली के नीचे से या देवतीर्थ यानी उंगली के अग्रभाग से करें, लेकिन पितृतीर्थ यानी अंगूठा व तर्जनी के मध्य से आचमन न करें, क्योंकि इससे पितरों को तर्पण किया जाता है, इसलिए यह वर्जित है। आचमन करने की एक अन्य विधि बोधायन में भी बताई गई है, जिसके अनुसार हाथ को गाय के कान की तरह आकृति प्रदान कर तीन बार जल पीने को कहा गया है।

आचमन के बारे में स्मृति ग्रंथ में 

प्रथमं यत् पिबति तेन ऋग्वेद प्रीणाति।

यद् द्वितीयं तेन यजुर्वेद प्रीणाति।

यत् तृतीयं तेन सामवेद प्रीणाति।

पहले आचमन से ऋग्वेद और द्वितीय से यजुर्वेद और तृतीय से सामवेद की तृप्ति होती है। आचमन करके जलयुक्त दाहिने अंगूठे से मुंह का स्पर्श करने से अथर्ववेद की तृप्ति होती है। आचमन करने के बाद मस्तक को अभिषेक करने से भगवान शंकर प्रसन्न होते हैं। दोनों आंखों के स्पर्श से सूर्य, नासिका के स्पर्श से वायु और कानों के स्पर्श से सभी ग्रंथियां तृप्त होती हैं। माना जाता है कि ऐसे आचमन करने से पूजा का दोगुना फल मिलता है l 


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.