सावन में शिव की अनोखी भक्ति, आगरा के चार कोनों में हैं 4 शिवालय; नंगे पैर होती है 40 किलोमीटर की परिक्रमा
Sawan 2023 सावन महीने में आगरा शहर देवाधिदेव महादेव की अद्भुत भक्ति में डूब जाता है। सावन में शहर के चारों कोनों पर स्थित शिव मंदिरों पर भक्तों का तां ...और पढ़ें
आगरा, जागरण डिजिटल डेस्क। सुलहकुल की नगरी श्रावण मास में देवाधिदेव महादेव की भक्ति के रंग में रंग जाती है। शहर के चारों कोनों पर स्थित शिवालयों के साथ ही सभी शिव मंदिर ऊँ नम: शिवाय और बोल बम के जयघोष से गूंज उठते हैं। कहीं कांवड़ चढ़ाई जाती हैं तो कहीं रुद्राभिषेक होता है। शिव मंदिरों में सजने वाले फूल बंगले और बर्फ की झांकियां आकर्षण का केंद्र रहते हैं। आगरा में भगवान शिव की भक्ति का तरीका भी अनोखा है।
शहर के चारों कोनों पर स्थित शिवालयों कैलाश, बल्केश्वर, राजेश्वर और पृथ्वीनाथ के दर्शन करते हुए 30 किमी से अधिक की परिक्रमा की जाती है। यह परिक्रमा अनोखी है।पूरी रात परिक्रमा मार्ग पर बोल बम का घोष करते हुए भक्ति में लीन युवाओं के जत्थे आगरा की सड़कों पर नजर आते हैं। शिव मंदिरों की इस तरह की परिक्रमा उत्तर भारत के किसी अन्य शहर में नहीं लगाई जाती है।
आगरा की परिक्रमा परंपरा
शहर के चारों कोनों पर स्थित शिवालयों कैलाश, बल्केश्वर, राजेश्वर और पृथ्वीनाथ के दर्शन करते हुए 30 किमी से अधिक की परिक्रमा की जाती है। यह परिक्रमा अनोखी है। सदियों से चली आ रही इस परिक्रमा पर कोरोना महामारी के कारण ब्रेक लगा था, लेकिन अब ये एक बार फिर शुरू हो गई है। इस परिक्रमा के ये चारों शिव मंदिर अहम भाग हैं।
शहर के पूर्व में बल्केश्वर पश्चिम में पृथ्वीनाथ, उत्तर में कैलाश और दक्षिण में राजेश्वर शिव मंदिर स्थित हैं। सावन में इन मंदिरों में शिव भक्तों का तांता लगता है। मंदिरों की इस तरह की परिक्रमा उत्तर भारत के किसी अन्य शहर में नहीं होती है। ये परिक्रमा नंगे पैरों से की जाती है।
परिक्रमा की शुरुआत को लेकर हैं अलग-अलग दावे
इतिहासकारों के मध्य काल, मराठा काल और ब्रिटिश काल में परिक्रमा की शुरुआत को लेकर अलग-अलग दावे हैं। डा. भीमराव आंबेडकर विश्वविद्यालय के इतिहास विभाग के अध्यक्ष प्रो. सुगम आनंद बताते हैं कि शहर के प्राचीन शिवालय, राजपूत काल के हैं। हर मंदिर का गौरवमयी इतिहास है। मुगल शहंशाह अकबर के समय राजा मानसिंह ने शिव मंदिरों को आश्रय दिया। राजनीतिक कारणों से मंदिर तोड़े गए, लेकिन परिक्रमा जारी रही।
इतिहासविद् राजकिशोर राजे बताते हैं कि परिक्रमा प्राचीन काल से लग रही है। औरंगजेब के समय परिक्रमा को बंद करा दिया गया था। वर्ष 1775 में मराठाओं का प्रभुत्व बढ़ने के बाद सल्तनत व मुगल काल में ध्वस्त कराए गए 14 मंदिरों का जीर्णोद्धार कराया गया। तब से परिक्रमा पुन: शुरू हो गई।
मध्यकाल के हैं मंदिर
प्रो. सुगम आनंद ने बताया कि शिवालयों की परिक्रमा कब से शुरू हुई, इसका इतिहास में जिक्र नहीं मिलता है। सभी शिव मंदिर मध्यकाल के हैं। संभवत: परिक्रमा तभी से शुरू हुई हो, लेकिन इसके प्रमाण नहीं हैं। मान्यता के अनुसार, 19वीं शताब्दी में परिक्रमा शुरू हुई।
परिक्रमा कर की थी शहर के भले की कामना
मन:कामेश्वर मंदिर के महंत योगेश पुरी बताते हैं कि परिक्रमा का इतिहास बहुत प्राचीन है। चारों कोनों पर विराजमान भगवान शिव शहरवासियों की रक्षा करते हैं। वर्ष 1827 के आसपास देश में प्लेग फैला था, तब उससे बचाव को शिव मंदिरों की परिक्रमा की गई थी। ग्राम की परिक्रमा कर जिस तरह ग्राम देवता से गांव की रक्षा की कामना की जाती है, उसी तरह शिव मंदिरों की परिक्रमा कर शहर के भले की कामना की गई थी।

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